डियर जिंदगी : कभी एकांत में भी रहिए ....
‘डियर जिंदगी’ पर हम निरंतर तनाव की चर्चा कर रहे हैं, उससे बचने पर संवाद कर रहे हैं. इस बीच मनुष्यता पर सबसे बड़ेखतरे आत्महत्या के खतरनाक स्तर तक हो रहे उभार पर भी हम बात कर रहे हैं.
दयाशंकर मिश्र
यह शोर से लबालब समय है. हर तरफ शोर है. इतना शोर कि हमारी अपनी आवाज और आनंद इस शोर में दफन हो गए हैं. हमें हमारे होने का अंदाजा शोर से लगता है. शोर के साथ रहते-रहते हमारी चेतना और मन (चेतन और अवचेतन) भी शोर के रंग में रंग गए हैं. हमें शोर इस कदर भाने लगा है कि हम उसे ही अपना सखा बना बैठे हैं...
बाहर के शोर, आवाजों के बीच खुद को बचाए रखना उतना ही मुश्किल है, जितना जंगल में किसी कमजोर जानवर को खुद कोदूसरे शक्तिशाली जानवरों से बचाए रखना. हम अवकाश का महत्व भूलते जा रहे हैं. हमने अवकाश के दिन को कुछ ऐसा मानलिया है कि वह केवल नौकरी से अवकाश का दिन है. वह नौकरी से अवकाश भर का दिन नहीं है. वह हमारी चेतना, खुद हमसेमिलने का भी तो दिन है, उससे मिलने का दिन जिसके बूते हमारा संसार चल रहा है.
‘डियर जिंदगी’ पर हम निरंतर तनाव की चर्चा कर रहे हैं, उससे बचने पर संवाद कर रहे हैं. इस बीच मनुष्यता पर सबसे बड़े खतरे आत्महत्या के खतरनाक स्तर तक हो रहे उभार पर भी हम बात कर रहे हैं. कभी ध्यान से देखिएगा जब कोई भी एक काम में डूबा रहता है, तो जैसे ही वह उस काम से बाहर आता है, उसे अक्सर गुस्सा आता है. क्योंकि वह अभी तक उस मनोवस्था से बाहर नहीं आया है, इसके साथ ऐसा इसलिए भी होता है, क्योंकि उसकी नजर में जिस काम में डूबा था, वही श्रेष्ठ है. उसके अलावा दूसरे काम का महत्व वैसा नहीं है.
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जरा ध्यान दीजिए, अक्सर लोग दिनभर घर पर काम करने के बाद घर पहुंचकर झगड़े में शामिल हो जाते हैं. घंटों में ध्यान,योग में डूबे रहने का दावा करने वाला जैसे ही उस अवस्था से बाहर आता है, उसका तालमेल बाहरी दुनिया से नहीं जमता औरकलह, क्रोध उस परिवेश की शांति भंग कर देते हैं.
कुल मिलाकर हम रोजमर्रा की जिंदगी में रोबोट होते जा रहे हैं. दिए हुए काम को करते-करते हम आज्ञापालन में इतने पारंगत हो गए हैं कि जैसे ही आदेश मिलने बंद होते हैं, हम घबरा जाते हैं.
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हमने खुद को खंड-खंड में बांट लिया है. हम हिस्से में बंटी हुई मशीन की तरह व्यवहार कर रहे हैं, जिसका अस्तित्व कभी भी उसे विभाजित कर समाप्त किया जा सकता है, क्योंकि उसे तो असेंबल किया गया है, लेकिन हम तो चैतन्य हैं, हम खंड-खंड होते जाने के कारण ही आत्महत्या की कगार पर पहुंच रहे हैं. जरा सी समस्या आते ही तनाव में चले जाने वाले युवाओं को समाज के साथ सतत संवाद से जोड़ना बहुत जरूरी हो गया है. बिना संवाद वह एक असेंबल मशीन हैं, और मशीन तो चेतनाशून्य होती है, वह केवल काम करती है, उसके परिणाम से उसका सरोकार नहीं होता. अगर हमारी इतनी बड़ी आबादी सरोकार शून्य हो जाएगी, तो हम कहां से कहां चले जाएंगे, यह समझाने की जरूरत नहीं.
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इसलिए, जरूरी है कि एकांत का अभ्यास करें. एकांत और अकेलेपन में अंतर को समझें. एकांत यानी स्वयं को समय देना है. स्वंय से संवाद करना है, अपनी ही ओर देखना है, मन के आईने में अपनी झलक पाना है. खुद के प्रति कठोर रहकर दूसरों केप्रति उदार होना है. अपना स्कैन है, एकांत. जबकि अकेलापन तो व्यस्तता से उपजा तनाव है, हमें अकेले रहने की आदत ही नहीं,हम खुद के पास नहीं जाना चाहते, इसलिए अकेले रहने से डरते हैं. तुरंत मोबाइल, भीड़, मनोरंजन की ओर दौड़ने लगते है किकहीं अंदर से आ रही आवाज मेरे सामने न प्रश्न लेकर खड़ी हो जाए. एकांत प्रेम के समीप जाना है, वस्तुत: एकांत को सही तरह से आप जितना जी पाएंगे, अकेलेपन से हमेशा के लिए उतने ही दूर होते जाएंगे.
इसलिए अपने लिए एकांत तलाशें. उस एकांत की रक्षा करें, उसे सहेजें और जिएं.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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