नई दिल्ली : राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने अहम फैसला देते हुए कहा है कि अगर बिल्डर तय समयसीमा पर फ्लैट की डिलीवरी नहीं करता, घर खरीदार ब्याज सहित पैसा वापिस ले सकता है. BBA यानी बिल्डर-बायर एग्रीमेंट के तहत यदि बिल्डर को 3 साल में फ्लैट की डिलीवरी करनी है और पजेशन में एक साल की देरी होती है तो बायर बिल्डर से पैसे की डिमांड कर सकता है. इस फैसले के बाद उन लाखों होम बायर्स की उम्मीद जगी है जो कई सालों से रकम वापसी के लिए बिल्डर के यहां चक्कर काट रहे हैं. NCDRC के इस फैसले से क्या होम बायर्स को इंसाफ मिलेगा. इस फैसले को बिल्डर कितना सही मानते हैं. क्या है इस फैसले के अहम पहलू.


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प्रॉपर्टी वकील का नजरिया
प्रॉपर्टी वकील सुधीर कठपालिया का कहना है कि इस फैसले से घर खरीदारों का काफी राहत मिलेगी. जो बिल्डर्स जानबूझकर या किसी और वजह से पजेशन नहीं दे पाते, ऐसे में बिल्डर्स पर पज़ेशन देने का दबाव बढ़ेगा और घर खरीदारों को जल्दी घर मिलेंगे. दरअसल, NCR में बिल्डर्स-बायर्स के बीच काफी समय से विवाद चल रहा है और इस फैसले के बाद होम बायर्स का आत्मविश्वास बढ़ेगा.


इस बाबत प्रॉपर्टी वकील कुंदन कुमार मिश्रा ने बताया कि जो बिल्डर-बायर एग्रीमेंट होता है. उसके तहत अगर बिल्डर तय समय पर पजेशन नहीं दे पाता तो कायदे से एग्रीमेंट खत्म हो जाता है. अब ये बिल्डर-बायर के आपसी समझौते के ऊपर है कि वो किस तरह इस को मैनेज करते हैं. हालांकि, इस फैसले से बायर्स काफी पावरफुल हो जाता है और बिल्डर पर हर तरह से दबाव बना सकता है. NCDRC के इस फैसले से बायर्स की ताकत बढ़ेगी और बिल्डर बैकफुट पर जाएंगे.


बायर्स का नजरिया
NCDRC के इस फैसले से होम बायर्स काफी खुश हैं. NEFOWA के अध्यक्ष अभिषेक कुमार ने NCDRC के इस फैसले का स्वागत किया है और कहा है कि सबसे ज्यादा मुश्किल नोएडा, नोएडा एक्सटेंशन और ग्रेटर नोएडा में है. पजेशन के लिए कई बार प्रदर्शन किए जाते हैं लेकिन न तो अथॉरिटी सुनवाई करती है और न बिल्डर किसी की सुनता है. अब इस फैसले के बाद बिल्डर पर दबाव बढ़ेगा और होम बायर्स के लिए उम्मीद की किरण जगी है.


बिल्डर्स का पक्ष
क्रेडाई (CREDAI) अफोर्डेबल हाउसिंग कमिटि के चेयरमैन मनोज गौड़ का कहना है कि NCDRC के इस कदम से बायर्स को काफी राहत मिलेगी और बिल्डर्स पर काम को जल्द खत्म करने का दबाव बनेगा. ये भी देखना काफी अहम होगा कि अगर स्ट्रक्चर खड़ा है और बिल्डर ने ओसी या सीसी के लिए अप्लाई किया है तो अथॉरिटी क्यों इसे जल्द जारी नहीं करती. ऐसे मामलों में अथॉरिटी को भी जिम्मेदार बनाना जरूरी है. अक्सर देखने को मिलता है कि स्ट्रक्चर खड़े होने के बाद भी फाइल अथॉरिटी में पड़ी रहती है, जिससे बिल्डर्स को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. जहां पर बिल्डर की तरफ से पजेशन में देरी है, ऐसे में बायर के लिए ये फैसला काफी महत्वपूर्ण है.


प्रॉपर्टी एक्सपर्ट का व्यू
नाइट फ्रैंक के ईडी मुद्दसर जैदी ने बताया कि फिलहाल की मार्केट को देखते हुए इसका ज्यादा असर नहीं दिखाई देता. इसकी वजह ये है कि बिल्डर पहले से ही नकदी के संकट से जूझ रहा है और ऐसे में ज्यादातर बायर बिल्डर से पैसा वापिस चाहते हैं. अगर बिल्डर के पास पैसा होता तो प्रोजेक्ट पूरा करने में लगाता. प्रोजेक्ट अगर आधा-अधूरा खड़ा है तो बिल्डर पैसा वापिस कैसे करेगा. सवाल ये है कि इस फैसले का असर शॉर्ट टर्म में ज्यादा कारगार साबित नहीं दिखाई दे रहा लेकिन लांग टर्म में इसका असर जरूर दिखाई देगा. पुराने प्रोजेक्ट्स में इस फैसले का ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. नए प्रोजेक्ट्स में बिल्डर्स पर जरूर दबाव बनेगा कि प्रोजेक्ट समय पर पूरा हो और जो वादा किया गया है उसी के अनुरुप काम हो.