Wage Growth: नौकरीपेशा के लिए बुरी खबर, इकोनॉमिक रिवाइवल के बावजूद वेतन वृद्धि में आई गिरावट
Down Wage Growth: इकोनॉमिक रिवाइवल (Economic Revival) तेज होने के बावजूद भी वेतन वृद्धि में आ रही गिरावट बड़ी चिंता है. इससे मांग में कमी आती है और क्षमता का इस्तेमाल भी कम हो जाता है. इंडिया रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में इससे जुड़ी आशंका जताई गई.
Down Wage Growth: इकोनॉमिक रिवाइवल (Economic Revival) तेज होने के बावजूद भी वेतन वृद्धि में आ रही गिरावट बड़ी चिंता है. इससे मांग में कमी आती है और क्षमता का इस्तेमाल भी कम हो जाता है. इंडिया रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में इससे जुड़ी आशंका जताई गई. एजेंसी की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा गया कि सकल मूल्य वर्द्धन (GVA) में 44-45 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले परिवारों की सांकेतिक वेतन वृद्धि वित्त साल 2011-12 से 2015-16 के 8.2 प्रतिशत से घटकर 2016-17 से 2020-21 के दौरान 5.7 प्रतिशत रह गई. इसका मतलब है कि वास्तविक वेतन वृद्धि लगभग एक प्रतिशत ही रही.
परिवारों की क्रय शक्ति में गिरावट का संकेत
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में समग्र अर्थव्यवस्था 13.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जबकि इसका अनुमान कहीं अधिक लगाया गया था. रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण और शहरी स्तरों पर पारिश्रमिक में वृद्धि की हालिया प्रवृत्ति भी परिवारों की क्रय शक्ति में गिरावट का संकेत देती है. सांकेतिक स्तर पर शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में वेतनवृद्धि सालाना आधार पर क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 5.5 प्रतिशत थी. लेकिन वास्तविक रूप में मुद्रास्फीति के अनुरूप समायोजित करने पर यह जून, 2022 में क्रमशः 3.7 प्रतिशत और 1.6 प्रतिशत के संकुचन को दर्शाती है.
महामारी के कारण वृद्धि को बड़े पैमाने पर क्षति पहुंची
रिपोर्ट कहती है कि खपत की अधिकांश मांग घरेलू क्षेत्र की मजदूरी वृद्धि से संचालित होती है. लिहाजा निजी अंतिम उपभोग व्यय और वित्त वर्ष 2022-23 में कुल जीडीपी वृद्धि में एक टिकाऊ और स्थायी सुधार के लिए वेतन वृद्धि में सुधार महत्वपूर्ण होने वाला है. महामारी की वजह से वृद्धि को बड़े पैमाने पर पहुंची क्षति की वजह से वार्षिक वृद्धि दर आर्थिक पुनरुद्धार के बारे में सही तस्वीर नहीं पेश करती है.
2019-20 के दौरान वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत रही
वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 का निम्न आधार होने से ऐसा होता है. ऐसी स्थिति में जीडीपी या जीवीए में आए सुधार का आकलन करने का बेहतर तरीका यही है कि महामारी-पूर्व काल को आधार मानकर तुलना की जाए. इस हिसाब से देखने पर जीडीपी में वित्त वर्ष 2018-19 से लेकर 2022-23 के दौरान सिर्फ 1.3 प्रतिशत की ही चक्रवृद्धि दर नजर आती है जबकि वर्ष 2016-17 से लेकर 2019-20 के दौरान वृद्धि दर 6.2 प्रतिशत रही थी.
रेटिंग एजेंसी के विश्लेषक पारस जसराय कहते हैं कि सभी क्षेत्रों में से सेवा क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर कोविड काल के दौरान सर्वाधिक गिरकर एक प्रतिशत पर आ गई जबकि उससे पहले के काल में यह 7.1 प्रतिशत थी. हालांकि, उद्योग जैसे क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधि में वृद्धि देखी जा रही है लेकिन वह भी काफी असमान बनी हुई है.
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