नई दिल्ली: जरा सोचिए, आप अरबपति हैं लेकिन चाहकर भी आप अपने पैसे को कहीं खर्च नहीं कर सकते. यह स्थिति वाकई किसी भी अरबपति की नींद और चैन उड़ा सकती है. बिल्कुल ऐसी ही स्थिति का सामना फिलहाल देश का अरबपति घराना पलोनजी मिस्त्री कर रहा है. पलोनजी मिस्त्री समूह का करीब 20 अरब डॉलर देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा समूह के साथ हुए कानूनी विवाद में फंसा है. 


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वर्ष 2016 से चला आ रहा विवाद
टाटा समूह और पलोनजी मिस्त्री समूह के बीच विवाद 2016 में बोर्ड की बैठक के दौरान शुरू हुआ, जब टाटा संस के बोर्ड ने उनके बेटे साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन के पद से हटा दिया.


मिस्त्री की टाटा संस में सबसे ज्यादा शेयरहोल्डिंग है, जो 100 अरब डॉलर के टाटा संस के साम्राज्य को नियंत्रित करता है. उस समय से मिस्त्री समूह टाटा संस पर कई मुकदमें दर्ज करा चुका है. इसमें आरोप लगाया गया है कि बोर्ड ने दमनकारी रवैया अपनाते हुए साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाया है.


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बदल गए नियम
कोर्ट में टाटा संस और पलोनजी मिस्त्री समूह के बीच जंग जारी है. हाल में सरकार की एक नई पॉलिसी के तहत टाटा संस ने एक फैसला लेते हुए कंपनी के तमाम शेयरहोल्डरों पर स्वतंत्र रूप में शेयर बेचने पर रोक लगा दी है. इसका मतलब यह हुआ कि इस फैसले का प्रभाव मिस्त्री समूह पर भी लागू होगा.


मिस्त्री का टाटा संस में 18.4 प्रतिशत इक्विटी है जो करीब 16.7 अरब डॉलर मूल्य के बराबर है. अब मिस्त्री समूह के सामने दिक्कत ये है कि अब बिना बोर्ड की मंजूरी के यह अपना शेयर नहीं बेच सकते. बोर्ड से पूरा पलोनजी परिवार पिछले दो साल से जूझ रहा है.


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ब्लूमबर्ग की खबरों के मुताबिक जब शापूरजी पलोनजी समूह से ईमेल के द्वारा प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया. इधर, टाटा संस के प्रवक्ता ने भी कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.


दिल्ली स्थित एक लॉ फर्म की एक सीनियर पार्टनर डेजी चावला ने बताया कि टाटा संस हमेशा एक निजी इकाई रही है, इसे पुराने कानूनी प्रावधान के तहत अपने आकार के कारण पब्लिक लिमिटेड कंपनी माना जाता था.


चावला बताती हैं कि निजी कंपनी होने के नाते इस बात पर प्रतिबंध है कि शेयरहोल्डर स्वतंत्र होकर अपने शेयर किसी को हस्तांतरित करे. इसके लिए बोर्ड के निदेशकों की अनुमति जरूरी है. 


एनसीएलटी ने दिया मिस्त्री को झटका
मिस्त्री समूह के द्वारा अपना ही पैसा न खर्च कर पाने या शेयर किसी को न बेच पाने की एक और वजह है. दरअसल जबसे टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी घोषित हुई है, इससे शेयरहोल्डर के लिए नियम भी बदल गए हैं. मिस्त्री के सामने दिक्कत ये है कि टाटा संस का बोर्ड उन्हें शेयर बेचने के लिए दवाब भी दे सकता है और दूसरी तरफ उन्हें मुकदमे के पेपर पर हस्ताक्षर भी करने होंगे.


टाटा संस के हटाए जा चुके चेयरमैन साइरस मिस्त्री और टाटा संस के बीच कानूनी लड़ाई अभी जारी है. जुलाई में नेशनल कंपनियां लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) ने साइरस मिस्त्री की अपील को फिर से खारिज कर दिया और कहा कि टाटा संस के बोर्ड को यह अधिकार है कि वह चेयरमैन को जरूरत पड़ने पर बर्खास्त कर सके.