Nadia Chauhan: भारत की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनियों में से एक पारले एग्रो की चीफ मार्केटिंग ऑफिसर और ज्वाइंट मैनेजिंग डाइरेक्टर नादिया चौहान की सकसेस स्टोरी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. नादिया 2003 में अपने पिता के पारले एग्रो ग्रुप में शामिल हुईं. तब वह सिर्फ 17 साल की थीं. उन्होंने अपनी नई स्ट्रेटजी और अन्य क्षेत्र में प्रोडक्ट को बढ़ाने के क्रम में मोर्चा संभाला. इसका ही नतीजा है कि कंपनी भारतीय पेय उद्योग में एक पावरहाउस में बदल गई. आइये आपको बताते हैं कैसे नादिया चौहान ने पारले एग्रो को 300 करोड़ रुपये के ब्रांड से 8,000 करोड़ रुपये के कारोबार में बदल दिया.


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कैलिफोर्निया में एक व्यवसायी परिवार में जन्मीं और मुंबई में पली-बढ़ीं नादिया चौहान ने एचआर कॉलेज से कॉमर्स की पढ़ाई की. फोर्ब्स के मुताबिक नादिया चौहान को बचपन से ही उनके पिता ने तैयार किया था. नादिया स्कूल के बाद अपना समय कंपनी के मुंबई मुख्यालय में बिताती थीं.


कंपनी में शामिल होने के बाद उन्होंने प्रोडक्ट पर कंपनी की निर्भरता को कम करने और दूसरी कैटेगरी में बढ़ाने का फैसला किया. जिसके तहत उन्होंने जाने-माने पैकेज वॉटर ब्रांड 'बेलीज़' को लॉन्च किया. आपको जानकर हैरानी होगी कि 'बेलीज़' अब 1,000 करोड़ रुपये का व्यवसाय बन गया है.


2005 में बिजनेस को बढ़ाने के प्रति बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए नादिया ने 2005 में अपने दिमाग से एप्पी फ़िज़ लॉन्च की. एप्पल के जूस की श्रेणी में एप्पी फिज अपने आप में पहला और अनोखा प्रोडक्ट साबित हुआ. एप्पी फिज के आने से पहले तक भारत सेब के जूस से अपरिचित था.


एप्पी फ़िज़ ने पारंपरिक कार्बोनेटेड पेय पदार्थों के लिए एक अनूठा और ताज़ा विकल्प पेश करके बाज़ार में हलचल मचा दी, जिससे एक नई श्रेणी बन गई. नादिया ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी प्रवेश किया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि पारले एग्रो के प्रोडक्ट वैश्विक दर्शकों तक पहुंचें. आज फ्रूटी और एप्पी फ़िज़ 50 से अधिक देशों में मौजूद हैं, जिससे पारले एग्रो अंतरराष्ट्रीय पेय उद्योग में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया है.


पारले ग्रुप की स्थापना 1929 में मोहनलाल चौहान ने की थी. वह नादिया चौहान के परदादा थे. मोहनलाल के सबसे छोटे बेटे जयंतीलाल ने 1959 में पेय पदार्थ का व्यवसाय शुरू किया. थम्स अप, लिम्का, गोल्ड स्पॉट, सिट्रा और माज़ा जैसे ब्रांड रमेश चौहान और प्रकाश चौहान को दे दिए गए.


1990 के दशक में पारले ग्रुप ने इन ब्रांडों को कोका-कोला को बेच दिया. बाद में दोनों भाइयों ने अपना कारोबार अलग कर लिया. रमेश चौहान ने बिसलेरी ब्रांड की कमान संभाली.