Narayana Murthy: इंफोसिस के संस्थापक सदस्यों में से एक नंदन नीलेकणि ने उन दिनों को याद किया है जब वह पहली बार इंफोसिस के ऑफिस गए थे. साल 1978 में पुणे में पाटनी कंप्यूटर सिस्टम्स में नंदन नीलेकणि और नारायण मूर्ति के बीच एक अचानक मुलाकात ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया जिसने इंडियन आईटी सेक्टर की दिशा बदल दी.


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दरअसल, IIT बॉम्बे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से ग्रेजुएट नंदन नीलेकणि बीमारी की वजह से पोस्ट ग्रेजुएट की प्रवेशा परीक्षा नहीं दे पाए थे. जिसके बाद करियर की तलाश में उनकी नजर पाटनी कंप्यूटर सिस्टम्स पर पड़ी.


नीलेकणि ने याद किया वो दिन


नीलेकणि ने लिंक्डइन के सीईओ रेयान रोसलांस्की के साथ बातचीत में याद करते हुए कहा, "मैं ऐसे समय में आया था जब कंप्यूटिंग मेनफ्रेम से मिनी कंप्यूटर की ओर बढ़ रही थी. जब मैंने इस मिनी कंप्यूटर कंपनी के बारे में सुना तो मैंने कहा, 'वाह, यह बहुत ही जबरदस्त लग रहा है. पाटनी कंप्यूटर्स के ऑफिस में ही मेरी पहली मुलाकात नारायण मूर्ति से हुई जो उस समय सॉफ्टवेयर के प्रमुख थे."


उन्होंने आगे कहा कि मूर्ति का करिश्मा निर्विवाद था. वह महत्वाकांक्षी था. उन्होंने जीवन में बड़ा लक्ष्य तय कर रखा था. उनके साथ काम करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता था. अगर वह मुझसे चट्टान से कूदने के लिए कहता तो मैं चट्टान से भी कूद जाता. उनके साथ काम करना बहुत अच्छा अनुभव था.


इसी से प्रोफेशनल बॉन्ड की शुरुआत


नीलेकणि ने आगे कहा कि यह मुलाकात सिर्फ एक नौकरी के इंटरव्यू से कहीं अधिक थी. यह मुलाकात जीवन भर की प्रोफेशनल बॉन्ड की शुरुआत थी. नौकरी की पेशकश करना अपने आप में अपरंपरागत थी.


उन्होंने उन दिनों को याद करते हुए कहा कि नारायण मूर्ति ने मुझसे कुछ प्रोब्लम-सोल्विंग सवाल पूछे. सौभाग्य से मैं उन्हें हल करने में कामयाब रहा और उन्होंने मुझे नौकरी दे दी. 


नारायण मूर्ति के इस फैसले ने न केवल नीलेकणि को कंप्यूटिंग के उभरते क्षेत्र में पैर जमाने में मदद की, बल्कि कुछ ही साल बाद उन्हें इंफोसिस के छह सह-संस्थापकों में से एक बनने के लिए भी तैयार कर दिया.