नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने 25 अप्रैल से देश में सभी स्टैंड अलोन और पड़ोस की दुकानों को खोलने की इजाजत दे दी है. लेकिन ज्यादातर व्यापारी इन दोनों शब्दों का सही मतलब नहीं समझ पाने की वजह से दुकान खोलने से घबरा रहे हैं. ऐसे में हम आपको बताते है स्टैंड अलोन और पड़ोस की दुकान का मतलब. इसे समझना बेहद आसान है और ये आपको दुकान खोलने में मदद कर सकती है.


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स्टैंड अलोन दुकानों का मतलब
अर्थशास्त्री शरद कोहली ने इस शब्द को स्पष्ट करते हुए बताया कि स्टैंड अलोन दुकानों का मतलब है, वो दुकाने जो किसी भी बाजार के बीच में नहीं हैं. इसमें रिहाइशी इलाकों में या उस से बाहर कोई भी दुकान हो सकता है. इसमें जरूरी या गैरजरूरी सामान की दुकान शामिल है. लेकिन ध्यान रहे इसमें शराब की दुकान, सैलून और रेस्तरां शामिल नहीं है. 


ये होते है पड़ोस की दुकान
पड़ोस की दुकानों में वो सभी दुकान शामिल हैं जो रिहाइशी इलाकों के आसपास के छोटे कॉम्पलेक्स में हैं. घर और सोसाइटी के आसपास की दुकानें जिसमें पहले सिर्फ दूध, सब्जी, फल और राशन की दुकाने खुलने पर छूट थी. इन निर्देशों के बाद, बर्तन, कपडा, प्लास्टिक के सामान, साफ साफाई के सामान, किताबों, बिजली के उपकरणों आदि की दुकाने भी खोली जा सकती हैं. लेकिन ये दुकाने किसी बड़ी कल्सटर मार्किट या मॉल में नही होनी चाहिए. 


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उल्लेखनीय है कि कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के मुताबिक इन श्रेणियों में आने वाले व्यापारियों को ‘पड़ोस की दुकान’ और ‘स्टैंड अलोन. दुकानों के बीच कंफ्यूजन रहा है. यही कारण है कि अभी तक देश में ज्यादातर व्यापारी दुकान नहीं खोल पाए हैं. कैट के अनुमान के मुताबिक केंद्र सरकार के इस आदेश से शहरी क्षेत्रों में लगभग 30 लाख दुकानें और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 10 लाख दुकानें खुल सकती हैं. अकेले दिल्ली में, लगभग 75 हजार दुकानें हैं जो इस आदेश के तहत खोली जा सकती हैं.