IAS Ashok Khemka: आईएएस अधिकारी अशोक खेमका का नाम देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बन गया है. उनकी जिंदगी एक ऐसे अधिकारी की कहानी है, जिसने सत्ता के दबाव का सामना करते हुए भी सच बोलने और सिस्टम में सुधार लाने की कोशिश की. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

कौन हैं अशोक खेमका?


कोलकाता के रहने वाले अशोक खेमका ने आईआईटी खड़गपुर और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च से पढ़ाई की है. 1991 बैच के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को उनके लगातार ट्रांसफर के कारण 'ट्रांसफरमैन' के नाम से जाना जाता है. करीब 28 साल की सेवा में उनका 52 बार ट्रांस्फर हुआ, यानी औसतन हर 6 महीने में उन्हें एक नई जगह जाना पड़ा. 


भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई


अशोक खेमका तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने हरियाणा में रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच हुए एक जमीन सौदे में अनियमितताएं पाईं. उन्होंने इस सौदे को रद्द करने का आदेश दिया, जिससे उन्हें सत्ताधारी दल और बड़े कारोबारी घरानों का खासा विरोध झेलना पड़ा. इस निर्णय के बाद से ही उन्हें लगातार ट्रांस्फर का भी सामना करना पड़ा. 


सत्ता के दबाव का सामना


अपने ईमानदारी से काम करने के कारण अशोक खेमका को कई बार मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा. एक बार तो उनसे सरकारी गाड़ी तक छीन ली गई थी. हालांकि, इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पैदल ही ऑफिस जाते रहे. 


अकेला संघर्ष


भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई में अशोक खेमका अकेले ही रहे. सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना आसान नहीं था और उन्हें इसके लिए कई बार कीमत चुकानी पड़ी. 


एक प्रेरणा 


अशोक खेमका की कहानी हमें बताती है कि सच बोलने और सिस्टम में सुधार लाने के लिए हिम्मत और दृढ़ता की जरूरत होती है. भले ही उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा हो, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनकी कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है जो समाज में बदलाव लाना चाहते हैं.


"जस्ट ट्रांसफर्ड...दी अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अशोक खेमका"


अशोक खेमका के संघर्ष पर एक किताब भी लिखी गई है जिसका नाम है "जस्ट ट्रांसफर्ड...दी अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अशोक खेमका". यह किताब अशोक खेमका के जीवन और उनके संघर्षों पर प्रकाश डालती है.