ट्रांसफरमैन IAS: 28 साल में 52 बार तबादला, सामान अनपैक होने से पहले आ जाता था ऑर्डर
IAS Ashok Khemka: आईएएस अशोक खेमका को दुनिया ट्रासफरमैन के नाम से जानती है, क्योंकि करीब 28 साल की सर्विस में उनका 52 बार ट्रांसफर किया गया था. एक समय ऐसी नौबत तक आ गई कि एक अधिकारी के तौर पर मिलने वाली सरकारी गाड़ी भी उनसे छीन ली गई थी.
IAS Ashok Khemka: आज हम आपको एक ऐसे आईएएस अधिकारी (IAS Officer) की कहानी बताएंगे, जिनका असली संघर्ष सिविल सेवा को जॉइन करने के बाद शुरू हुआ. दरअसल, हम बात कर रहें हैं आईएएस ऑफिसर अशोक खेमका (IAS Officer Ashok Khemka) की, जिनका 28 साल की सर्विस में 52 बार ट्रांसफर किया गया. अशोक खेमका वो ऑफिसर हैं, जिन्होंने देश के सिस्टम से अकेले ही लोहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें इतने ट्रांसफर का सामना करना पड़ा. यहां तक कि एक समय पर वे पैदल ही घर से ऑफिस जाने को मजबूर हो गए थे. अशोक खेमका का सफर कुछ ऐसा रहा है कि, उनके संघर्ष पर बायोग्राफी तक लिखी गई, जिसका का नाम है, 'जस्ट ट्रांसफर्ड...दी अनटोल्ड स्टोरी ऑफ अशोक खेमका'.
ट्रांसफरमैन के नाम से हुए मशहूर
आईएएस अशोक खेमका मूलरूप से कोलकाता के रहने वाले है. उन्होंने आईआईटी खड़गपुर और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च से पढ़ाई की है. वे 1991 बैच के आईएस ऑफिसर हैं. अशोक खेमका का 28 साल की नौकरी के दौरान 52 बार ट्रांसफर किया गया, जिस कारण लोग उन्हें "ट्रांसफरमैन" के नाम बुलाने लगे. अगर उनकी सर्विस का औसत निकालें तो करीब हर 6 महीने में उनका ट्रांसफर किया गया है. आईएएस ऑफिसर अशोक खेमका का इतनी बार ट्रांसफर होना एक रिकॉर्ड भी है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ अकेले ही लिया सिस्टम से लोहा
अशोक अब तक करीब 8 बार महीने में या उससे भी कम समय के लिए इस पोस्ट को संभाल चुके हैं. इस दौरान जब तक वे अपने काम को ठीक तरह से समझकर आगे बढ़ा पाते, उससे पहले ही उनका ट्रांसफर ऑर्डर उनके टेबल पर होता था. अशोक खेमका 2012 में हरियाणा की हुड्डा सरकार के कार्यकाल के दौरान सुर्खियों में आए, जब उन्होंने कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के दामाद रॉबर्ट वाड्रा (Robert Vadra) और रियल एस्टेट दिग्गज डीएलएफ (DLF) के बीच हुए जमीन सौदे के म्यूटेशन को रद्द करने के आदेश जारी कर दिए थे. उस वक्त केंद्र में यूपीए (UPA) का राज था और हरियाणा में भी कांग्रेस (Congress) की सरकार थी. अशोक खेमका की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में हर कोई उन्हें शाबाशी देता नजर आया, लेकिन जंग के मैदान में किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया. खेमका अकेले ही सबसे लोहा लेते नजर आए.
छीन ली गई थी सरकारी गाड़ी
इसका खामियाजा उन्होंने ज्यादातर ट्रांसफर के रूप में झेला. यहां तक की एक बार तो एक अधिकारी के तौर पर मिलने वाली सरकारी गाड़ी तक उनसे छीन ली गई थी, लेकिन तब भी खेमका बिना डरे पैदल ही घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आते-जाते थे.