Robin Hibu  IPS Delhi Police: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी रॉबिन हिबू को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद पर प्रमोट किया है. वह वर्तमान में दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त हैं. अरुणाचल प्रदेश के डीजीपी नियुक्त होने वाले पहले आईपीएस अधिकारी रॉबिन हिबू हैं. अपने पूरे करियर में, उन्होंने राष्ट्रपति भवन के मुख्य सुरक्षा अधिकारी समेत कई अहम पदों पर काम किया है.


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रॉबिन हिबू का जन्म 1 जुलाई 1968 को चीन और अरुणाचल प्रदेश की सीमा के करीब एक छोटे से गांव हांग में हुआ था. उन्हें दिल्ली पुलिस ने बीओएफ भर्ती कार्यालय, परिवहन सुरक्षा विंग एंड विजिलेंस के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया था.


इसके अलावा, रॉबिन हिबू ने नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन (NGO) हेल्पिंग हैंड्स की स्थापना की, जो जरूरतमंद नॉर्थईस्टर्न निवासियों को सहायता प्रदान करता है. रॉबिन हिबू की उन्नति उनकी प्रतिबद्धता, परिश्रम और सार्वजनिक सेवा में असाधारण योगदान का प्रमाण है, जिसमें वित्तीय सहायता से लेकर बच्चों की शिक्षा के लिए मार्गदर्शन तक शामिल है।


रोबिन हिबु ने जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए "हेल्पिंग हैंड्स" नाम का एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन भी स्थापित किया है, जो विशेष रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों की सहायता करता है. उनकी यह पहल उनके समाजसेवा के जज्बे को दर्शाती है. हिबू का प्रमोशन पाना उनके कर्तव्यनिष्ठा, मेहनत और समाज सेवा में उल्लेखनीय योगदान का प्रमाण है. उनकी सेवाएं आर्थिक सहायता से लेकर बच्चों की शिक्षा के लिए मार्गदर्शन तक फैली हुई हैं.


रोबिन एक आदिवासी हिंदू परिवार से आते हैं. उनके पिता खेती करते थे, लेकिन उनके पास इतनी जमीन नहीं थी कि वे पूरे परिवार का पेट भर सकें. इसलिए, रोबिन खेती के साथ-साथ लकड़ी काटकर बेचा करते थे ताकि घर का खर्च चलाने में मदद मिल सके.


उनके गांव में भले ही स्कूल नहीं था, पर पढ़ाई के लिए उनका जुनून इतना था कि वो आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं. रोबिन बताते हैं कि बचपन में वो रोज लगभग दस किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाया करते थे. आगे की पढ़ाई के लिए वो दिल्ली आए. रोबिन ने अपनी हायर एजुकेशन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से प्राप्त की.


रोबिन हिबू ने अपनी एक किताब में अपने संघर्ष के दिनों के बारे में लिखा है. उन्होंने बताया कि अरुणाचल प्रदेश से दिल्ली आने के लिए उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो रिजर्वेशन करा सकें. इसलिए उन्हें ट्रेन में टॉयलेट के सामने फर्श पर बैठकर दिल्ली आना पड़ा. दिल्ली पहुंचने के बाद उन्हें रहने के लिए जगह नहीं मिली, तो कई रातें वो JNU के पास सब्जी गोदाम के बाहर सड़क पर सोए. कुछ दिनों बाद उन्हें JNU के नर्मदा हॉस्टल में कमरा मिला और वे वहां रहने लगे.