India's First Lady Doctor: भारत की आजादी से पहले शिक्षा के सीमित विकल्प थे, खासकर महिलाओं के लिए. रूढ़िवादी समाज में कई लोगों ने महिला शिक्षा का विरोध किया. हालांकि, इन सबके बावजूद कादम्बिनी गांगुली भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं. गांगुली 1884 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में एडमिशन पाने वाली पहली महिला भी थीं. कादंबिनी ने एडिनबर्ग (स्कॉटलैंड) में भी ट्रेनिंग ली और बाद में भारत में सफल मेडिकल प्रक्टिस की.


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उनका जन्म 1862 में एक उच्च जाति के बंगाली समुदाय में हुआ था जो महिलाओं की शिक्षा का विरोध करता था. हालांकि, गांगुली ने इससे उबरने के लिए सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी. भारतीय प्रतिभा ने मेडिकल फील्ड में अपने लिए जगह बनाई. उस समय, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी ज्यादातर पुरुषों का ही वर्चस्व था. उन्होंने 1883 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए की उपाधि प्राप्त की और भारत में ग्रेजुएशन करने वाली पहली महिला बनीं.


वह 1893 में एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी गईं और एलआरसीपी योग्यता प्राप्त की जिससे उन्हें मेडिकल की प्रक्टिस करने में मदद मिली. ब्रिटेन से लौटने के बाद, उन्होंने कलकत्ता के लेडी डफरिन हॉस्पिटल में प्रसूति एवं स्त्री रोग विज्ञान का अभ्यास करना शुरू किया. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी सक्रिय रूप से अभियान चलाया.


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कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने से 11 दिन पहले कादम्बिनी बोस ने द्वारकानाथ गांगुली से शादी की. गांगुली ने अपनी शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया और उनके फैसले के लिए उन्हें काफी प्रतिक्रिया मिली. वह आठ बच्चों की मां थीं और उन्हें अपने घरेलू मामलों में काफी समय देना पड़ता था.


डीएनए के मुताबिक उनके पेशे के लिए रात में मरीजों से मिलना जरूरी था और उन्हें कई ओर से आलोचना का सामना करना पड़ा. यहां तक ​​कि एक पॉपुलर रीजनल अखबार ने उन्हें वेश्या तक कह डाला. लेकिन उन्होंने और उनके पति ने इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की. उन्हें मुआवजा मिला और संपादक को छह महीने की जेल हुई.


वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला स्पीकर भी थीं. कादम्बिनी गांगुली एक बहादुर महिला थीं जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. 3 अक्टूबर, 1923 को गांगुली का निधन हो गया. उनके आखिरी दिन भी, कादंबिनी गांगुली ने उसी दिन एक ऑपरेशन किया.


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