Zindagi Foundation In NEET Result 2024: लाइफ सभी के लिए एक सी नहीं होती, कुछ लोगों के पास जीवन जीने के लिए बेहतरीन संसाधन होने हैं, तो वहीं दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज होते हैं. कुछ लोगों के लिए सपने पूरे करना बहुत आसान होता है, लेकिन देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें अथक संघर्ष करने के बाद भी कुछ नहीं मिलता, लेकिन जिंदगी फाउंडेशन के गरीब तबके से आने वाले छात्र आज पूरे देश में चर्चा का विषय हैं. 


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नीट यूजी 2024 में क्वालिफाई करके जिंदगी फाइंडेशन के 20 छात्रों ने डॉक्टर बनने के अपने सपने को साकार करने की ओर सबसे महत्वपूर्ण कदम रख दिया है. आइए जानते हैं जिंदगी फाउंडेशन की नींव रखने वाले अजय बहादुर सिंह और इन बच्चों के बारे में...


एक छोटे किसान और दिहाड़ी मजदूर के बेटे जगदीश महापात्रा को शुरू में NEET पास करने में असफल रहे. आर्थिक संघर्षों के चलते उनके माता-पिता को जगदीश की पढ़ाई के लिए लोन लेना पड़ा, लेकिन वह एग्जाम नहीं निकाल पाए. इसके बाद जिंदगी फाउंडेशन के मार्गदर्शन में उन्होंने नीट 2024 में 705 अंक हासिल किए. अब एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने के लिए तैयार हैं. 


पिता की अचानक बीमारी और मौत के कारण प्रियब्रत देहुरी का जीवन उथल-पुथल हो गया. एक वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए भी उनकी मां को कड़ा संघर्ष करना पड़ा. इन कठिनाइयों ने प्रियब्रत को तोड़ा नहीं. जिंदगी फाउंडेशन के सपोर्ट से उन्होंने डॉक्टर बनने के दृढ़ संकल्प को और मजबूत किया और सफलता पाई. प्रियब्रत ने नीट 2024 में 700 अंक प्राप्त किए.


ज़िंदगी फाउंडेशन की छात्र संपदा मुदुली की भी कुछ ऐसी ही दुखभरी कहानी है. अपने पिता की विकलांगता और खुद किडनी की परेशानी से जूझ रही संपदा ने हार नहीं मानी. नीट क्वालिफाई कर डॉक्टर बनने के अपने सपने को पूरा की पहला कदम बढ़या है.


अपने गांव में शुरू से चिकित्सा सुविधाओं की कमी को देखती आ रही गायत्री दास ने डॉक्टर बनने का सपना देखा. ज़िंदगी फाउंडेशन के जरिए दिहाड़ी मजदूर की बेटी को अपना सपना पूरा करने के लिए जरूरी मदद और सोर्सेस मिले. 


बिहार के खगड़िया के अभिषेक कुमार, ओडिशा के एक सुदूर गांव में एक गरीब जनजाति के कालू चरण सोरेन ऐसे कई बच्चों को जिंदगी फाउंडेशन ने एक नई जिंदगी दी और सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित इतने मुश्किल हालातों का सामना करने वाले इन गरीब बच्चों ने डॉक्टर बनने के अपने सपने को कभी नहीं छोड़ा. 


जिंदगी फाउंडेशन के संस्थापक अजय बहादुर सिंह खुद बेहद खराब आर्थिक हालातों से निकलकर आगे बढ़ें. अपने पिता की किडनी की परेशानी के कारण वह  डॉक्टर नहीं बन पाए, लेकिन अब वह गरीब छात्रों को फ्री मेडिकल कोचिंग, स्टडी मटेरियल और अन्य जरूरी सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं. 2017 में स्थापना के बाद से 123 छात्रों ने फाउंडेशन के सपोर्ट से नीट यूजी में सफलता हासिल पाई है. 


कैसे पड़ी जिंदगी फाउंडेशन की नींव?
इसके सवाल के जवाब में अजय ने बताया कि एक बार वे जगन्नाथ धाम उड़ीसा में मंदिर के दर्शन करके बाहर निकल रहे थे, तभी देखा कि छोटी बच्ची पूजा का सामान बेच रही थी, उसने कहा कि कुछ खरीद लीजिए, ताकि मैं इन पैसों से खाना आ सकूं और अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जुटा सकू. इस घटना ने अजय को अंदर से हिला दिया. 


दरअसल, अजय आर्थिक हालातों के चलते अपने डॉक्टर बनने का सपना कभी पूरी नहीं कर पाएं. उनके पास परीक्षा का फॉर्म खरीदने तक के पैसे नहीं थे. पिता की बीमारी के चलते पढ़ाई छोड़कर काम करना पड़ा. 


इसके बाद उन्हें लगा कि समाज के ऐसे बच्चों को पढ़ाना चाहिए और अपने जैसे लाचार बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए. अजय ने उस बच्ची को भी शामिल किया, जिसके कारण उन्हें ये प्रेरणा मिला.  


अजय अपने अनुभवों साझा करते हुए बताते हैं कि वह खुद डॉक्टर बनना चाहते थे, लेकिन पिता की बीमारी के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. उन्होंने पिता की दवाई और परिवार के लिए रोजी-रोटी जुटाने के लिए चाय और शरबत बेचा. घर-घर जाकर सोडा नशीन भी बेची, इसलिए जब वो कठिन परिस्थितियों से मुकाबला करते हुए एक शिक्षाविद के रूप में समर्थ हुए तो उन्होंने ऐसे गरीब छात्रों का मदद की, जो डॉक्टर बनना चाहते हैं.  इस तरह जिंदगी फाउंडेशन की नींव पड़ी. 


इस साल 100 परसेंट रहा रिजल्ट 
अजय बहादुर सिंह ने कहा 'मैं डॉक्टर तो नहीं बन सका लेकिन अब समाज के लिए डॉक्टर तैयार कर रहा हूं. इस साल ओडिशा के अलावा अन्य राज्यों से के छात्रों को भी फ्री कोचिंग दी. उनके इस बैच में बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और छत्तीसगढ़ के छात्र भी थे. इस साल जिंदगी फाउंडेशन के 20 छात्रों ने परीक्षा दी और सभी के सभी पास हुए. अजय इसी तरह अपने मिशन को जरूरतमंद और योग्य छात्रों तक पहुंना चाहते हैं, जिसके लिए वे निरंतर प्रयास में जुटे हुए हैं.