Railway Track: रेलवे पटरियां रोजाना ही भारी मालगाड़ियों और पैसेंजर गाड़ियों का भार सहन करती हैं. लोहे से बने ये रेलवे ट्रैक भारी वजन के साथ ही बारिश, धूप और प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना करते हैं, लेकिन फिर भी इनमें कभी जंग नहीं लगता है. क्या आपने कभी सोचा है कि इतना पानी और हवा पड़ने के बावजूद भी रेलवे ट्रैक्स में आखिर जंग क्यों नहीं लगता है. आइए आपको बताते हैं कि रेल की पटरियों पर जंग क्यों नहीं लगता.


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जंग क्यों लगता है?
जब लोहे से बनी चीजें नम हवा में या गीली होने पर ऑक्सीजन के साथ रिएक्शन करती हैं तो इन पर आयरन ऑक्साइड की एक भूरे रंग की परत जम जाती है. यह लोहे की ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया के कारण आयरन ऑक्साइड बनाने के कारण होती है, इस परत को ही जंग लगना कहा जाता है. यह परत नमी, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर और एसिड आदि के समीकरण से बनती है. जबकि, हवा या ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में लोहे में जंग नहीं लगता है.


रेलवे ट्रैक में क्यों नहीं लगता जंग?
रेलवे ट्रैक को जंगप्रतिरोधक बनाने के लिए एक विशेष तरह का स्टील इस्तेमाल में लाया जाता है, जिसे लोहे से ही तैयार किया जाता है. रेल की पटरियां स्टील और मंगलॉय को मिलाकर तैयार की जाती हैं. मंगलॉय को मैंगनीज स्टील या हैडफील्ड स्टील भी कहा जाता है.


यह स्टील और मैंगनीज का मिश्रण है यानी एक मिश्र धातु इस्पात है, जिसमें 0.8 से 1.25 फीसदी कार्बन और 11 से 15 फीसदी मैंगनीज होता है. मंगलोय अपनी उच्च प्रभाव शक्ति और कार्य-कठोर अवस्था में घर्षण के प्रतिरोध के लिए जाना जाता है.  इसके कारण ऑक्सीकरण नहीं होता या फिर बहुत धीमी गति से होता है, इसलिए इसमें कई वर्षों तक जंग नहीं लगता. 


दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ेगा
अगर रेलवे ट्रैक्स आम लोहे से तैयार किया जाएगा तो हवा की नमी के कारण उसमें जंग लग जाएगा. ऐसे में बार-बार ट्रेन की पटरियां बदलनी पड़ेंगी. इससे लागत तो कई गुना बढ़ ही जाएगी. साथ ही हादसों का खतरा भी बढ़ जाएगा. ऐसे में रेलवे पटरियों के बनाने में विशेष सामग्रियों का उपयोग करता है. इस लोहे में कार्बन कम मात्रा में होता है, जिससे इसमें जंग नहीं लगता.