UPSC Motivation: आईएएस और आईपीएस बनना गर्व की बात होती है. अगर कोई व्यक्ति आईएएस बन गया तो पूरे शहर में उसके चर्चे होने लगते हैं. हर साल लाखों व्यक्ति इस परीक्षा की तैयारी करते हैं, लेकिन सिलेक्शन गिने-चुने लोगों का ही हो पाता है. किसी जिलेभर में भी आईएएस या आईपीएस रैंक का अधिकारी बन पाना बड़ी बात होती है. यूपी का एक गांव ऐसा है जहां एक नहीं बल्कि 51 आईएएस-आईपीएस जैसे अफसर हैं. इस गांव में को इसी वजह से अफसरों की फैक्ट्री कहा जाता है. 


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आईएएस  की फैक्ट्री वाला गांव


अफसरों की फैक्टरी वाला गांव यूपी के जौनपुर जिले में है. देश को आईएएस और आईपीएस जैसे बड़े अधिकारी देने वाले इस गांव का नाम माधोपट्टी है. माधोपट्टी अब विकसित होकर नगर पंचायत की श्रेणी में आ गया है. विकास भले ही हो गया हो लेकिन आज भी गांव की आबादी और क्षेत्रफल बहुत कम है. 


माधोपट्टी के अफसर


माधोपट्टी में कुल 51 लोग ऐसे हैं जो ऊंचे पदों पर हैं. माधोपट्टी में 45 लोग ऐसे हैं जो सिविल सर्विसेज के आईएएस, पीसीएस और पीबीएस जैसे  पदों पर हैं. इतना ही नहीं माधोपट्टी में भाभा और इसरो जैसी प्रतिष्ठित जगहों पर अच्छे पदों पर काम करते हैं. वहीं माधोपट्टी से विश्व बैंक में काम करने वाले व्यक्ति भी निकले हैं. माधोपट्टी के लोग मुख्य सचिव से लेकर राजदूत तक का पद संभाल चुके हैं. 


इतना छोटा है अफसरों का गांव


खास बात ये है कि माधोपट्टी का आबादी बेहद कम है. यहां कुल 75 घर हैं. इतनी छोटी सी जगह से इतनी बड़ी संख्या में अफसर निकलना बहुत बड़ी बात है. माधोपट्टी में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों की संख्या 51 है जो गांव के कुल घरों की संख्या के करीब 70 प्रतिशत है. 


1952 में हुई थी शुरुआत


ये छोटा सा गांव यूपीएससी की तैयारी करने वालों के लिए प्रेरणा बन सकता है. गांव में अफसर बनने की शुरुआत 1952 में ही हो गई थी. इस साल गांव के डॉ इंदुप्रकाश ने यूपीएससी में दूसरी रैंक हासिल कर झंडे गाड़े. इसके बाद डॉ. इंदुप्रकाश के चार भाई भी आईएएस अफसर बने. फिर साल 1955 में गांव से विनय कुमार सिंह ने आईएएस की परीक्षा पास की. विनय कुमार सिंह को आगे चलकर बिहार के मुख्य सचिव का पद  संभालने का गौरव भी प्राप्त हुआ. माधोपट्टी की महिलाएं भी बहुत आगे हैं. इस गांव से 1980 में आशा सिंह अधिकारी बनीं. इसके बाद 1982 में ऊषा सिंह और 1983 में इंदु सिंह ने अफसर बनकर नाम रोशन किया. 


 


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