Intresting Facts About Jupiter: बृहस्पति सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है. इसे सौरमंडल का वैक्यूम क्लीनर (Jupiter is vacuum cleaner of solar system) भी कहा जाता है. यह ग्रह सौरमंडल के सबसे पुराने ग्रहों में से एक है. साइंटिस्ट कहते हैं कि अगर जूपिटर न होता तो हमारी धरती का विनाश बहुत पहले हो गया होता.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

बृहस्पति ग्रह सौरमंडल में हमारी पृथ्वी का एक बहुत बड़ा बॉडीगार्ड है. आज हम जानेंगे कि कैसे यह प्लानेट सोलर सिस्टम की सफाई करता है और हमें आसमान से आने वाली आफतों को खुद झेलकर हमारी रक्षा करता है...


ऐसे करता है सोलर सिस्टम की सफाई 
साल 1994 में विश्व के खगोलशास्त्रियों की नजरें शूमेकर-लेवी नाम के धूमकेतु पर थीं, तब उन्होंने देखा कि जूपिटर के गुरुत्वाकर्षण में आने के कारण यह धीरे-धीरे उसकी ओर खिंचता चला गया. अंत में  यह धूमकेतू 2 लाख 16 हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से ग्रह से टकरा गया. इस भीषण टक्कर से विस्फोट हुआ, जिसमें 42,000 फैरनहाइट से भी ज्यादा तापमान पैदा हुआ.


इस टक्कर से बृहस्पति के वायुमंडल में गहरी खरोंचें बन गईं थीं. खगोलविदों की मानें तो जूपिटर लगातार ऐसा करता है, जिससे सौर मंडल की सफाई होती रहती है. इसलिए इसे सोलर सिस्टम का वैक्यूम क्लीनर कहा जाता है. 


पृथ्वी का सुरक्षा कवच 
दरअसल, जब भी किसी चीज को ऐसा बनाया जाता है कि वह सरवाइव कर सके, तो सबसे पहले उसे प्रोटेक्ट करने के लिए एक डिफेंस सिस्टम बनाना बहुत जरूरी होता है. डिफेंस सिस्टम यानी की एक सुरक्षा कवच जो उस चीज को हर मुसीबत से बचाकर रखें. पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच की भूमिका बृहस्पति ग्रह निभाता है. 


हमें जूपिटर बचाता है हर प्रकार के संकट से 
बृहस्पति ग्रह हर पल किसी भी प्रकार के एस्ट्रॉयड और कॉमेंट जैसी चीजों से हमारे ग्रह पृथ्वी की रक्षा करता है, जिसके कारण से आज हमारा यह ग्रह सरवाइव कर पा रहा है. हालांकि, वैज्ञानिकों के पास इसके खास प्रमाण तो नहीं हैं, लेकिन उनका मानना है कि अगर कोई एस्टेरॉइड धरती से टकरा गए तो आज से तकरीबन 6 करोड़ साल पहले धरती पर पाए जाने वाले डायनासोर की तरह हमारा भी अंत हो जाएगा.


करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी पर राज करने वाले सबसे बड़े रूलर डायनासोर का अब वजूद ही मिट चुका है. जूपिटर पूरी तरह से गैस से बना हुआ है. इसमें अगर हम कोई मेटल या पत्थर फेंक दें तो ये गैस के मॉलिक्यूल इन पत्थर या मेटल्स को भी तोड़कर रख देंगे, जूपिटर के गैस मॉलिक्यूल इतने ज्यादा डेंस हैं.  


ग्रहों का निर्माण
जानकारी के मुताबिक सोलर सिस्टम के निर्माण की शुरुआत में बहुत बड़े गैस के गोले एक ही जगह ग्रेविटेशनल फोर्स की वजह से कोलैप्स हो गए थे, इससे सूर्य का निर्माण हुआ, उसके बाद गैस जायंट यानी बड़े-बड़े गैस प्लानेट्स का निर्माण हुआ था. उनमें से सबसे पहले जूपिटर भी था. जब जूपिटर का निर्माण हुआ तो उसमें 90% हाइड्रोजन था और 10 पर्सेंट हिलियम था और आज भी इसमें ऐसा ही कंपोसिशन है. यह ग्रह इतना बड़ा है कि इसमें लगभग 1300 पृथ्वी समा सकती हैं.


सौर मंडल का स्ट्रक्चर
हमारे सौरमंडल में सूर्य से क्रम में सबसे पहले बुध, फिर शुक्र और फिर आती हैं  पृथ्वी. इसके बाद मंगल और फिर एसटेरॉइड बेल्ट आते हैं. इसके बाद बड़े-बड़े गैस जॉयंट ग्रह जैसे बृहस्पति, फिर यूरेनस, उसके बाद नेपच्यून और प्लूटो आते हैं. उसके बाद से कुइपर बेल्ट शुरू हो जाता है. 


इस कुइपर बेल्ट से कभी-कभी  कुछ  एस्ट्रॉयड और कॉमेंट रास्ता भटक कर सोलर सिस्टम के ग्रहों की तरफ बढ़ने लगते हैं. जब ये चट्टान जब ग्रहों की तरफ बढ़ते हैं और उनसे टकराते हैं तो वहां बहुत भारी तबाही लाते हैं. अच्छी बात यह है कि जब ये चट्टान पृथ्वी, मंगल या शुक्र की तरफ बढ़ते हैं तो पहले इन्हें गैस जायंट ग्रहों से होकर गुजरना पड़ता है


बृहस्पति की गुरुत्वाकर्षण शक्ति है बहुत ज्यादा
जब ये इसके पास आते हैं तो इसकी ग्रेविटेशनल फोर्स के कारण जूपिटर में ही जाकर समा जाते हैं. इस तरह यह ग्रह भटकी हुई आसमानी आफतों से हमारी पृथ्वी को बचा लेता है. अगर कभी ये चट्टानों जूपिटर के दायरे में ना आकर सीधे पृथ्वी की तरफ बढ़ जाए तो यह पृथ्वी पर तबाही ला देंगे, ठीक उसी तरह जैसे करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर एस्ट्रॉयड के टकराने की वजह से डायनासोर का अस्तित्व ही मिट गया. 


इन बड़े-बड़े चट्टानों को पृथ्वी से टकराने से पहले जूपिटर से सामना करना पड़ेगा. इस वजह से ही कहलाता है जूपिटर हमारी पृथ्वी का बॉडीगार्ड.