Bhind Lok Sabha Election: भिंड पर 1989 से लगातार जीत रही बीजेपी, इस बार भी रिकार्ड कायम
Bhind loksabha seat: भिंड लोकसभा सीट पर 1952 से लेकर अभी तक कुल 17 चुनाव हुए हैं. इसमें से मात्र 3 चुनाव ही कांग्रेस जीत पाई. बाकी 9 बार बीजेपी, एक बार जनसंघ और एक बार जनता पार्टी ने जीत हासिल की है.
Bhind Lok Sabha Chunav 2024 News: मध्य प्रदेश के भिंड और दतिया जिले में मौजूद यह भिंड सीट साल दर साल, दशक दर दशक बीजेपी की गढ़ बनती चली गई. यहां बीजेपी का पिछले 35 साल से कब्जा है. बीजेपी ने इस सीट पर उम्मीदवार बदले तो भी जीत मिली और एक ही उम्मीदवार पर लगातार दांव खेला तो वो भी कामयाब हुआ. इतना ही नहीं एक बार कांग्रेस के हारे हुए उम्मीदवार को टिकट दिया तो वो भी विजयी हुआ है. इस सीट पर एक बार ऐसा समीकरण बैठा कि यहां विजया राजे सिंधिया भी चुनाव लड़ीं और उन्हें भी जीत मिली थी.
इस सीट के ऐतिहासिक पन्नों को उठाकर देखें तो एक और मजेदार बात सामने आती है कि साल 1971 में विजयाराजे सिंधिया भिंड लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुनी गई थीं लेकिन 1984 में राजनीति के मैदान में पहली बार उतरीं सिंधिया राजघराने की बेटी वसुंधरा राजे यहां से लोकसभा चुनाव हार गईं। वसुंधरा को हारने वाले कृष्ण सिंह जूदेव बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से थे और वे चुनाव प्रचार में भावुक हो जाते थे. उन्हें माधवराव सिंधिया राजनीति में लाए थे. लेकिन उस चुनाव का जब परिणाम आया तो वे जीत गए थे.
कांग्रेस के लिए यहां सूखा पड़ा है..
इतना ही नहीं इस सीट से जुड़ा एक किस्सा यह भी है कि 1989 में कांग्रेस के बड़े नेता नरसिंह राव दीक्षित बीजेपी पहुंच गए और चुनाव भी जीत गए. इसी सीट से 1991 में बीजेपी के योगानंद सरस्वती ने राजीव गांधी के मित्र उदयन शर्मा को हरा दिया था. यह वाला चुनाव भी जमकर चर्चा में रहा था. आखिरी बार 1984 में यहां से कांग्रेस के कृष्णपाल सिंह चुनाव जीतकर आए थे. तबसे कांग्रेस के लिए यहां सूखा पड़ा है.
क्या है जातीय समीकरण?
भिंड में करीब तीन लाख क्षत्रिय, तीन लाख ब्राह्मण, डेढ़ लाख वैश्य के साथ ही दलितों के करीब साढ़े तीन लाख वोटर हैं. आदिवासी, अल्पसंख्यक और अन्य के वोटों का आंकड़ा करीब चार लाख अस्सी हजार के आसपास है. धाकड़, किरार, गुर्जर, कुशवाह, रावत समाज का वोट भी 3 लाख से कुछ कम है. इलाके में क्षत्रिय और दलितों ही मुख्य वोटर हैं. यहां जातीय समीकरण कुछ हद तक फैक्टर का काम करता है लेकिन आखिर में लहर पर सवार होकर मतदाता अधिक मात्रा में बीजेपी को ही वोट दे रह हैं.
एससी के लिए आरक्षित हुई..
यह सीट 2009 के परिसीमन एससी के लिए आरक्षित हो गई. इसी साल बीजेपी के अशोक अर्गल ने कांग्रेस के भागीरथ प्रसाद को हरा दिया था. मजे की बात देखिए कि अगले चुनाव यानि कि 2014 में भागीरथ प्रसाद बीजेपी में शामिल होकर चुनाव लड़े और वे जीत गए.
साल | विजयी उम्मीदवार | पार्टी |
1952 | Suraj Prasad | Congress |
1962 | Suraj Prasad | Congress |
1967 | Yashwant Singh Kushwah | Congress |
1971 | Vijaya Raje Scindia | Jana Sangh |
1977 | Raghubir Singh Machhand | Congress |
1980 | Kali Charan Sharma | Congress (I) |
1984 | Krishna Pal Singh | Congress |
1989 | Narsingh Rao Dixit | BJP |
1991 | Yoganand Saraswati | BJP |
1996 | Ram Lakhan Singh | BJP |
1998 | Ram Lakhan Singh | BJP |
1999 | Ram Lakhan Singh | BJP |
2004 | Ram Lakhan Singh | BJP |
2009 | Ashok Argal | BJP |
2014 | Bhagirath Prasad | BJP |
2019 | Sandhya Ray | BJP |
2024 |
क्या होगा 2024 चुनाव का समीकरण?
अब यह साफ है कि बीजेपी यहां अश्वमेध के घोड़े की तरह आगे बढ़ रही है. स्थानीय कांग्रेस नेताओं का दर्द सामने आ जाता है कि उन्हें लंबे समय से जनता चुनाव जितवाकर संसद नहीं भेज रही है. उधर दूसरी तरफ बीजेपी किसी को भी टिकट दे दे वह विजयी हो जाता है. इस बार देखना है कि मुकाबला कैसा होता है.