INDIA allies pushed Congress: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इंडी गठबंधन के सहयोगी दलों को नाराज करने से बचने के चक्कर में कई राज्यों में अपनी सीटों से हाथ धोते दिख रहा है. बिहार से तमिलनाडु तक और उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र तक विपक्षी दलों के इंडी गठबंधन में सहयोगियों की ओर से धकेले जाने के बावजूद कांग्रेस सीटों के लिए कड़ी मेहनत कर रही है.


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क्षेत्रीय साझेदारों को नाराज नहीं करना चाहता कांग्रेस आलाकमान


कांग्रेस आलाकमान क्षेत्रीय साझेदारों को नाराज नहीं करना चाहता है. क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि राज्यों में कांग्रेस नेता भले ही बार-बार लक्ष्मण रेखा खींचने की अपील करते रहते हों, लेकिन कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व राजनीति को लेकर हमेशा सतर्क रहता है. इस चक्कर में ही बिहार, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश तक में कांग्रेस सीट बंटवारे की बातचीत के दौरान अपने सहयोगियों के हाथों बैकफुट पर धकेला जा रहा है. इनमें तमिलनाडु में 39, बिहार में 40, महाराष्ट्र में 48 और यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं.


कांग्रेस को पीछे धकेलने में कामयाब दिख रहे हैं क्षेत्रीय सहयोगी


लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सीटों के समझौते में कांग्रेस के क्षेत्रीय सहयोगी उसे पीछे धकेलने में कामयाब दिख रहे हैं. कई राज्यों में विपक्षी क्षत्रप ऐसा करने की कोशिश भी कर रहे हैं. हालांकि, चारों ओर धकेले जाने से परेशान कांग्रेस के पास महज कुछ ही विकल्प बचे हैं. क्योंकि वह इनमें से कुछ राज्यों में एक छोटी खिलाड़ी है और विपक्ष के स्थानीय बड़े खिलाड़ियों पर बहुत अधिक निर्भर हो चुका है.


बिहार में पप्पू यादव और रंजीत रंजन के बहाने राजद का झटका


बिहार में महागठबंधन ने शुक्रवार को सभी 40 लोकसभा सीटों के लिए अपने सीट बंटवारे के फॉर्मूले की घोषणा की. यहां भी कांग्रेस को उतनी सीटें नहीं मिलीं जितनी वह मांग रही थी.राजद ने इसमें कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका पूर्णिया सीट देने से इनकार करने के साथ दिया था. लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस ने राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के हिस्से के रूप में इस सीट पर चुनाव लड़ा था. कांग्रेस ने पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ ​​​​पप्पू यादव के लिए फिर से पूर्णिया सीट मांगी थी. 


पूर्णिया और सुपौल दोनों ही सीटों पर राजद का दावा, कांग्रेस मायूस


पप्पू यादव ने हाल ही में बड़े धूमधाम से अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था. पूर्णिया की तो बात ही छोड़िए, राजद ने कांग्रेस के लिए सुपौल को भी नहीं छोड़ा. सुपौल उन सीटों में से एक थी जिसे पूर्णिया के बदले में पप्पू यादव ने अपनी पसंदीदा सीटों की लिस्ट में शामिल किया था. पप्पू यादव की पत्नी और एआईसीसी सचिव रंजीत रंजन ने पहले भी दो बार 2004 और 2014 में सुपौल सीट का प्रतिनिधित्व किया था. वह लोकसभा चुनाव 2019 में भी चुनाव मैदान में थीं.


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बेगूसराय में नहीं लगा कांग्रेस के कन्हैया का नंबर, औरंगाबाद भी गया


इसके बाद बेगूसराय का नंबर आया, जहां 2019 में सीपीआई उम्मीदवार के तौर पर कन्हैया कुमार मैदान में थे. कांग्रेस को उम्मीद थी कि 2021 में पार्टी में शामिल हुए कन्हैया कुमार के लिए यह लोकसभा सीट मिल जाएगी, लेकिन राजद ने इसे एक बार फिर सीपीआई को दे दिया. राजद ने कांग्रेस को औरंगाबाद सीट भी देने से इनकार कर दिया, जहां वह पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ नेता निखिल कुमार को मैदान में उतारना चाहती थी.


लोकसभा चुनाव 2019 में राजद ने यह सीट जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को दे दी थी. मांझी अब भाजपा के पास एनडीए में हैं. बिहार में कांग्रेस के लिए एकमात्र राहत की बात यह थी कि काफी मुश्किल बातचीत के बाद राजद उसे नौ सीटें देने पर सहमत हो गया. कांग्रेस इससे बेशक परेशान है, लेकिन राजद को एक सीमा से आगे नहीं धकेलना चाहती.


तमिलनाडु में DMK ने कांग्रेस को 3 सीट बदलने पर किया मजबूर


तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक (DMK) ने कांग्रेस को अपनी तीन सीटें बदलने के लिए मजबूर किया. ये सीटें उसने DMK के नेतृत्व वाले गठबंधन के हिस्से के रूप में लोकसभा चुनाव 2019 में जीती थीं. सूत्रों ने कहा कि डीएमके शुरू में कांग्रेस की 2019 की 4-5 सीटों और उम्मीदवारों को बदलना चाहती थी. बहुत बातचीत के बाद कांग्रेस थेनी, अरानी और तिरुचिरापल्ली के बदले में तिरुनेलवेली, कुड्डालोर और मयिलादुथुराई पर सहमत हुई. कांग्रेस ने 2019 में इनमें से अरानी और तिरुचिरापल्ली में जीत हासिल की थी.


द्रमुक की मनमानी से कांग्रेस असहज, कई बड़े नेताओं की बदली सीट


द्रमुक ने अरानी सीट को ले लिया तो कांग्रेस को अपने मौजूदा सांसद एम के विष्णु प्रसाद को लड़ने के लिए कुड्डालोर में ट्रांसफर करना पड़ा. इस अदला-बदली का मतलब यह भी है कि कांग्रेस अपने पूर्व पीसीसी अध्यक्ष सु थिरुनावुक्कारासर को तिरुचिरापल्ली से मैदान में नहीं उतार सकती. ये सीट अब एमडीएमके के पास चला गया है. सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस पर दबाव था कि या तो करूर सीट की अदला-बदली की जाए, या अपने उम्मीदवार मौजूदा सांसद और टीम राहुल के सदस्य जोथी मणि को बदल दिया जाए, लेकिन वह नहीं मानी.


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शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) ने कांग्रेस को उलझाया


महाराष्ट्र में कांग्रेस अभी भी शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) के साथ उलझी हुई है. कोई भी क्षेत्रीय साझेदार कांग्रेस की ओर से मांगी गई कम से कम चार सीटें सांगली, भिवंडी, मुंबई दक्षिण मध्य और मुंबई उत्तर पश्चिम देने को तैयार नहीं है. दरअसल, कांग्रेस को परेशान करते हुए शिवसेना (यूबीटी) ने पहले ही सांगली और मुंबई साउथ सेंट्रल के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.


तमिलनाडु और बिहार के मुकाबले कांग्रेस महाराष्ट्र में सीमांत खिलाड़ी नहीं है, लेकिन पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व इंडी गठबंधन को एकजुट रखने के लिए क्षेत्रीय सहयोगियों को नाराज करने को लेकर अतिरिक्त तौर पर सावधान है. हालांकि, राज्य के नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि पार्टी एक मजबूत रेखा खींचे.


हमें ही सभी समझौते करने होंगे... महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता का छलका दर्द


महाराष्ट्र कांग्रेस के एक नेता ने कहा, “कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को राज्यों में पार्टी के हितों की रक्षा के लिए मजहूत रहना होगा. लेकिन केंद्रीय नेतृत्व क्षेत्रीय दलों को नाराज नहीं करना चाहता. क्योंकि वह संभावनाओं को लेकर सतर्क है. अगर हम ज्यादा जोर देंगे तो ये पार्टियां कहेंगी कि राष्ट्रीय पार्टी और मुख्य विपक्षी दल होने के नाते हम बड़ा दिल नहीं दिखा रहे हैं. अपेक्षा यह है कि हमें ही सभी समझौते करने होंगे. हम तमिलनाडु और बिहार में सीमांत खिलाड़ी हो सकते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा नहीं है.”


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उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को किनारे कर दिया


उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस को समाजवादी पार्टी ने किनारे कर दिया. इसने पहले एकतरफा घोषणा कर दी कि सीट बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया गया है और कांग्रेस यूपी में 11 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इसके बाद सपा आगे बढ़ी और कई सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की, जो कांग्रेस चाह रही थी. बाद में जयंत चौधरी की आरएलडी के इंडी गठबंधन छोड़ने के बाद उसने प्रस्ताव को बढ़ाकर 17 सीटों तक कर दिया, लेकिन कांग्रेस को अभी भी कुछ सीटें नहीं मिलीं जो उसने मांगी थीं. इनमें फर्रुखाबाद, भदोही, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती और जालौन शामिल हैं. लोकसभा चुनाव 2009 में कांग्रेस ने इनमें से कुछ सीटों पर जीत हासिल की थी.