Mukhtar Ansari: मऊ, गाजीपुर, बलिया... मुख्तार अंसारी की मौत से क्या लोकसभा चुनाव में होगा ध्रुवीकरण?
Mukhtar Ansari Death: माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी का अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. यह उनका राजनीतिक रसूख ही था कि वह निर्दलीय भी चुनाव जीत जाते थे. बीएसपी और सपा से उनके अच्छे संबंध रहे. ऐसे में लोकसभा चुनाव में अंसारी सपोर्टरों का वोट किस तरफ पड़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा.
Mukhtar Ansari News: रौबदार मूंछें, चश्मे के पीछे से झांकती वो तेज आंखें, सफेद कुर्ते के ऊपर काले रंग का गमछा या सदरी... कुछ इसी अंदाज में आपने माफिया मुख्तार अंसारी को देखा होगा. हालांकि जैसे-जैसे कानून का शिकंजा कसता गया, जेल में टाइम कटता गया, अंसारी के चेहरे से मुस्कुराहट भी गायब हो गई. मूंछें और दाढ़ी भी सफेद हो गई थी. पूर्वी यूपी में आतंक का पर्याय रहे गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी (63) अब इतिहास हो चुके हैं. कुछ घंटे पहले बांदा के एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. अंसारी की मौत से अपराध के एक युग और राजनीति के साथ गठजोड़ वाले एक बड़े चैप्टर का 'The End' हो गया है. खास बात यह है कि जेल में होते हुए भी अंसारी की सियासी पकड़ ढीली नहीं हुई. उनकी मौत ऐसे समय में हुई है जब लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग शुरू होने वाली है. ऐसे में सवाल यह है कि उनकी मौत किन-किन इलाकों में और कैसे मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सकती है.
रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज, बांदा में दिल का दौरा पड़ने से अंसारी के मौत की खबर जैसे ही फैली, राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं आने लगीं. सपा ने अंसारी के निधन को दुखद बताया. उधर, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने लिखा कि कुछ दिन पहले उन्होंने (अंसारी) शिकायत की थी कि उन्हें जेल में जहर दिया गया है फिर भी गंभीरता से नहीं लिया गया. अंसारी के खिलाफ हत्या से लेकर जबरन वसूली तक के कुल 65 मामले दर्ज थे, फिर भी वह कई राजनीतिक दलों के टिकट पर पांच बार विधायक बने थे.
पहले ठेका माफिया बना
प्रभावशाली परिवार में जन्मे अंसारी ने 80-90 के दशक में यूपी में पनप रहे सरकारी ठेका माफियाओं में खुद को स्थापित किया. गिरोह खड़ा करने के लिए अपराध में एंट्री ली. वो साल 1978 था, अंसारी की उम्र महज 15 साल थी और अंसारी के अपराध का खाता खुल गया. उसके खिलाफ आपराधिक धमकी के आरोप में गाजीपुर के सैदपुर थाने में पहला मामला दर्ज हुआ था. एक दशक में वह ठेका माफियाओं के बीच जाना-पहचाना चेहरा बन बैठा. अगले एक दशक में उसने अपराध की दुनिया में अपना सिक्का जमाया. विडंबना देखिए, अपराध में बढ़ता अंसारी का कद राजनीति में उसकी एंट्री में बाधा नहीं बना.
जेल से जीतता रहा माफिया
- अंसारी पहली बार 1996 में मऊ से बसपा के टिकट पर विधायक बने. उन्होंने 2002 और 2007 के विधानसभा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इसी सीट से जीत हासिल की.
- साल 2012 में कौमी एकता दल बनाया और मऊ से फिर जीते. 2017 में फिर मऊ से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
- साल 2022 में मुख्तार ने अपने बेटे अब्बास अंसारी के लिए सीट खाली कर दी, जो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के टिकट पर इसी सीट से जीते.
- खास बात यह थी कि अंसारी जेल में होते लेकिन जनता उन्हें वोट देकर चुनाव में जिता देती.
पूर्वी यूपी में राजनीतिक पकड़
जी हां, यूपी के विधानसभा चुनावों में एक दर्जन से ज्यादा सीटें ऐसी रही हैं, जहां मुख्तार अंसारी का प्रभाव देखा गया. मऊ और आसपास के मुस्लिम समुदाय के लोग माफिया को 'मुख्तार भाई' कहते रहे हैं. कुछ-कुछ इलाहाबाद के अतीक अहमद जैसा दबदबा था. सियासी कद का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि मऊ से मुख्तार निर्दलीय भी खड़े हो जाते तो जीत जाते. इस समय लोकसभा चुनाव हो रहे हैं तो मुख्तार अंसारी का असर मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया और वाराणसी जिलों समेत पूर्वी यूपी की कई लोकसभा सीटों पर देखने को मिल सकता है. संभावना जताई जा रही है कि मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है.
स्थानीय लोग बताते हैं कि अंसारी भाइयों की जनता में पकड़ होने की मुख्य वजह ग्राम प्रधानों के जरिए गरीबों की मदद करना रहा है. बताते हैं कि किसी को अगर इलाज या बेटी की शादी के लिए पैसे चाहिए होते थे तो लोग अपने प्रधान से कहते और अंसारी के लोग मदद करने के लिए दरवाजे पर आ जाते थे. मऊ और दूसरे इलाकों में मुस्लिम और दलित वोटर अंसारी को वोट देते रहे हैं.
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हां, मुख्तार अंसारी की राजनीति पूर्वी यूपी के मुस्लिम वोटरों पर टिकी रही. गाजीपुर-मऊ इलाके में हाल के चुनावों में मुस्लिम तबका अंसारी परिवार को ही वोट करता रहा है. हालांकि जब से मोदी सरकार ने फ्री में राशन देना शुरू किया है, काफी कुछ समीकरण बदल गए है.
वैसे, एक पेंच भी समझिए. इन इलाकों में भूमिहार वोटर अच्छी तादाद में हैं और हत्याओं के कारण वे अंसारी ब्रदर्स को भूमिहार-विरोधी मानते हैं.
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2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार के बेटे अब्बास ने SBSP-सपा गठबंधन उम्मीदवार के तौर पर इलेक्शन जीता था. यही वजह है कि जैसे ही निधन की खबर आई सपा ने फौरन दुख जताया. सपा को उम्मीद है कि बीजेपी के खिलाफ समीकरण को देखते हुए अंसारी के सपोर्टर उसे चुनाव में वोट करेंगे. वैसे भी, सपा ने लोकसभा चुनाव में मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को गाजीपुर सीट से टिकट दे रखा है.
वैसे पूर्वांचल में कुल 30 लोकसभा सीटें आती हैं लेकिन मुख्तार के प्रभाव वाली गाजीपुर की दो, मऊ की एक, आजमगढ़-वाराणसी-मिर्जापुर की 1-1 और जौनपुर की 2 लोकसभा सीटें शामिल हैं.
पूर्वांचल में 83 फीसदी हिंदू और 17 फीसदी आबादी मुसलमानों की है.
मुस्लिम आबादी वाले पांच बड़े जिलों में सिर्फ 2 में ही मुख्तार का जबर्दस्त प्रभाव था. सपा के लिए मुस्लिम-यादव का फैक्टर पहले लाभ पहुंचाता रहा.
दूसरा एंगल बीजेपी के पक्ष में
मुख्तार अंसारी के न होने से अगर ध्रुवीकरण हुआ तो फायदा भाजपा को भी मिल सकता है. जब से यूपी में योगी सरकार बनी है जनता में यही मैसेज गया है कि भाजपा सरकार माफियाओं के खिलाफ सख्त एक्शन ले रही है. बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में बाहुबली नेता को सजा हो चुकी थी. यह केस भी काफी चर्चा में रहा था और बीजेपी के वोटर बढ़े थे.
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मुसलमान जाएं तो जाएं कहां?
गाजीपुर में रहने वाले इतिहासकार ओवैतुर रहमान सिद्दीकी ने कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू में महत्वपूर्ण बात कही थी. उन्होंने कहा कि मुसलमानों के सामने बड़ा सवाल है कि जाएं तो जाएं कहां क्योंकि मुसलमानों का जो निचला तबका है वह धीरे-धीरे मोदी को पसंद कर रहा है. उसकी बड़ी वजह राशन है. कई परिवार ऐसे हैं जिनके पास खाने का इंतजाम नहीं है. गाजीपुर के मुस्लिम समुदाय बीजेपी की तरफ झुक सकते हैं. यहां से अफजाल अंसारी को INDIA गठबंधन की ओर से उतारा गया है.
मुख्तार अंसारी पिछले 19 साल से यूपी और पंजाब की जेलों में बंद रहा. साल 2005 से जेल में रहते हुए उसके खिलाफ हत्या और गैंगस्टर अधिनियम के तहत 28 मामले दर्ज थे और सितंबर 2022 से आठ आपराधिक मामलों में उसे दोषी ठहराया गया था. फिलहाल कोर्ट में 21 मुकदमे लंबित थे. हाल में एक केस में वाराणसी की सांसद/विधायक अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. ऐसे ही कई मामलों में उसे सजा मिली हुई थी.
कुछ घंटे पहले जीवन का चैप्टर ही क्लोज हो गया.