1977 Lok Sabha Chunav: वो इमर्जेंसी खत्म होने के बाद देश का पहला आम चुनाव था. साल था 1977 और लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो विपक्षी नेताओं ने दिल्ली के रामलीला मैदान में बड़ा जलसा किया. उस समय की तस्वीरें बताती हैं कि कितनी बड़ी तादाद में लोग उमड़े थे. पहली बार किसी दल ने कांग्रेस से सत्ता छीनी थी. दिल्ली की रैली में अटल बिहारी वाजपेयी ने धारदार शब्दों में जोशीला भाषण दिया था, जिसकी गूंज पूरे देश में सुनी गई. अटल ने कहा था कि देश में जो कुछ हुआ उसे केवल चुनाव नहीं कह सकते. एक शांतिपूर्ण क्रांति हुई है.


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उन्हें इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया


पूर्व पीएम का वो भाषण आज भी याद किया जाता है. कांग्रेस पर बरसते हुए अटल ने कहा था कि लोकशक्ति की लहर ने लोकतंत्र की हत्या करने वालों को इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया है. और जिनके हृदय में लोकतंत्र के लिए अटूट निष्ठा है उन्हें सेवा करने का मौका दिया है. 


वोट देकर काम खत्म नहीं होता


अटल ने कहा कि हमारी लड़ाई कुर्सी की लड़ाई नहीं है... आपने हम पर तो जिम्मेदारी डाली है... लेकिन जनता ने अपने ऊपर भी जिम्मेदारी ले ली है. वोट देकर काम खत्म नहीं होता है. एक बड़ा काम शुरू होता है... अधिकारों के प्रति सजगता आगे भी आवश्यक होगी. चुने हुए प्रतिनिधि गलत रास्ते पर न भटक जाएं इसलिए आपको जागते रहना होगा. इस पर लोगों ने खूब तालियां बजाईं. 


उन्होंने आगे कहा कि हमें चुनने के बाद आप कहीं नींद में न सो जाएं, इसका भी आपको ख्याल रखना होगा. हमारे पूर्वजों ने परमात्मा से संपत्ति नहीं मांगी, शस्त्र नहीं मांगे एक वरदान मांगा था- हम राष्ट्र में जागते रहें. सीमाओं पर खड़ी हुई सेनाएं जागती रहे जिससे कोई सीमाओं का अतिक्रमण न करने पाए. हम किसी को बुरी नजर से नहीं देखेंगे मगर अब कमजोर भी नहीं होंगे कि किसी को बुरी नजर से देखने का लालच पैदा हो जाए. 


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सेना जागे, सेनापति जागें


वाजपेयी ने ऊंचे बने मंच से खड़े होकर भाषण देते हुए कहा कि सेना जागे, सेना के सेनापति जागें, सेनापतियों को नियुक्त करने वाले राजनीतिक नेता जागें, और राजनेताओं को बनाने-बिगाड़ने वाली भारत की 62 करोड़ (तब देश की आबादी थी) जनता जागे. तंज के लहजे में उन्होंने कहा कि जो समझते थे कि उनके बिना भारत चल नहीं सकता, जो अपने को भारत का पर्याय समझते थे, आज याद करके उन पर बड़ी दया आती है. लोग ठहाका लगाकर हंस पड़े. उनका निशाना इंदिरा गांधी पर था. नाम लेते हुए वाजपेयी ने कहा था कि जनता पार्टी और उसके नेताओं में ऐसा अहंकार कभी पैदा नहीं होने दिया जाएगा, हम आपको विश्वास दिलाते हैं. 


वाजपेयी का पूरा भाषण सुनने के लिए यहां क्लिक करें


सिंहासन खाली करो, जनता आती है... ये नारे 1977 के चुनाव में खूब गूंजे थे. जनता ने पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार को चुनकर सारे 'अत्याचार' का मानो हिसाब ले लिया था. इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी भी चुनाव हार गए थे. जनसंघ, भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी ने मिलकर जनता पार्टी बनाई थी और उसने मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया.


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