Kissa Kursi Ka Lok Sabha Chunav: चुनाव आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक, देश में पहले लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, राजस्थान और विंध्य प्रदेश राज्यों में लाखों महिलाओं ने अपने असल नाम की जानकारी नहीं दी थी. आयोग ने बताया कि तब कुल लगभग आठ करोड़ महिला मतदाताओं में से लगभग 20 से 80 लाख महिलाओं से संबंधित प्रविष्टियों को मतदाता सूची से हटाना पड़ा.
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First Lok Sabha Elections News: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले देशभर में महिला वोटरों को राज्यों की विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव में निर्णायक बताया जा रहा है. सरकार बदलने, बनाने और गिराने में महिलाओं के वोट बैंक को सबसे बड़ी ताकत कहा जा रहा है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि एक दौर में वोट देना तो दूर देश के कई राज्यों की महिलाएं वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने से भी परहेज करती थीं. उनकी झिझक और उनका संकोच इसका सबसे बड़ा कारण था. वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने आए अधिकारियों को लाखों महिलाओं ने अपना नाम अमुक की पत्नी या फलाने की अम्मा कहकर लिखवाया था.
आम चुनाव में पप्पू की अम्मा, राजू की पत्नी जैसे कई नामों से दिक्कत
आम चुनाव में पप्पू की अम्मा, राजू की पत्नी जैसे कई नामों के कारण देश के पहले लोकसभा चुनाव में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. क्योंकि तब देश में लोकतंत्र स्वीकार करने के जहां एक-दो साल ही हुए थे. वहीं, देश में निर्वाचन आयोग बनने के भी एक साल ही पूरे हुए थे. देश के बंटवारे का जख्म भी ठीक से नहीं भरा था. इसके बावजूद नए भारतीय गणतंत्र ने 1951-52 के आम चुनाव की तमाम चुनौतियों को पार करते हुए और कई आलोचकों को गलत साबित करते हुए अभूतपूर्व लोकतांत्रिक प्रक्रिया पूरी करने में कामयाबी हासिल की थी.
भरे नहीं थे देश के बंटवारे के जख्म, बड़ी संख्या में निरक्षर थे मतदाता
आजादी के बाद देश के बंटवारे के जख्म भरे नहीं थे और उस समय बड़ी संख्या में मतदाता निरक्षर थे. भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने तब देश में लोकसभा की 489 सीट के लिए देश का पहला संसदीय चुनाव संपन्न कराया था. हैरत की बात यह भी है कि उस समय चुनाव आयोग बने बमुश्किल एक ही साल हुआ था. पहले लोकसभा चुनाव में 17 करोड़ 30 लाख मतदाताओं ने कुल 1,874 उम्मीदवारों में से अपने प्रतिनिधियों का चयन किया था.
इस साल लोकसभा के 18वें आम चुनावों की तैयारी में लगे भारत निर्वाचन आयोग (ECI) पर 1950 के दशक में जनसांख्यिकीय, भौगोलिक और साजो सामान संबंधी चुनौतियों का सामना करते हुए चुनाव कराने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी.
1951-52 का पहला आम चुनाव दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि 1951-52 का पहला आम चुनाव उस समय भी ‘‘दुनिया में हुई सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया’’ थी. उन्होंने कहा, ‘‘सुकुमार सेन (भारत के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त) को सलाम है जिन्होंने पहला आम चुनाव कराया और बेहतरीन प्रदर्शन किया. इतनी व्यापक प्रक्रिया को किसी पूर्व अनुभव के बिना सम्पन्न किया गया जिसके लिए पहले से कोई बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं था.’’
25 अक्टूबर, 1951 को शुरू होकर चार महीने तक चली चुनावी प्रक्रिया
एसवाई कुरैशी ने कहा कि भारत ने वास्तव में ‘‘एक बेहतरीन प्रयोग’’ किया था जैसा कि उस समय फिल्म प्रभाग द्वारा चुनाव पर निर्मित एक शॉर्ट वीडियो में भी दिखाया गया था. इस वीडियो में यह भी जिक्र किया गया था कि चुनाव की वास्तविक प्रक्रिया से पहले ‘मॉक’ (अभ्यास) चुनाव कराए गए थे. आयोग द्वारा प्रकाशित ‘जनरल इलेक्शंस 2019: एन एटलस’ के मुताबिक, पहले चुनाव की प्रक्रिया 25 अक्टूबर, 1951 को शुरू हुई और यह चार महीने तक चली थी. इस दौरान 17 दिन मतदान हुआ था.
मतदाता सूची में नाम जुड़वाने वक्त नाम बताने में महिलाओं की झिझक
यह प्रक्रिया शुरू करने से पहले मतदाता सूची (Voter List) तैयार करते समय चुनाव आयोग ने पाया कि कुछ राज्यों में बड़ी संख्या में महिला मतदाताओं का पंजीकरण ‘‘उनके अपने नाम से नहीं’’ बल्कि उनके परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ उनके संबंधों के विवरण के आधार पर किया गया था. उनके अपने नाम के बजाय अमुक व्यक्ति की मां या पत्नी जैसे संबोधन लिखे गए थे. स्थानीय प्रचलन के अनुसार, इन इलाकों में महिलाएं अजनबियों को अपना नाम बताने से कतराती थीं.
आठ करोड़ महिला मतदाताओं में से लगभग 20 से 80 लाख के गलत नाम
पहले आम चुनावों पर 1955 में प्रकाशित आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, उस समय निर्देश जारी किए गए थे कि मतदाता का नाम उसकी पहचान का एक अनिवार्य हिस्सा है. इसलिए इसे मतदाता सूची में शामिल किया जाना चाहिए. उस समय लोगों में जागरूकता बढ़ाई गई और मतदाताओं का असल नाम जोड़ने के लिए चुनाव कराने की अवधि को विशेष रूप से आगे बढ़ाया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘देश में कुल लगभग आठ करोड़ महिला मतदाताओं में से लगभग 20 से 80 लाख महिलाओं ने अपने असल नाम की जानकारी नहीं दी जिसके कारण उनसे संबंधित प्रविष्टियों को मतदाता सूची से हटाना पड़ा. ऐसे सभी मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत, राजस्थान और विंध्य प्रदेश राज्यों में सामने आए थे.’’
देश में पहले लोकसभा चुनाव में बनाए गए थे कुल 1,96,084 मतदान केंद्र
दिल्ली के पूर्व मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) चंद्र भूषण कुमार ने कहा कि उस समय महिला मतदाताओं से मतदाता सूची में अपना नाम घोषित करने के लिए कहना आयोग का एक ‘‘बहुत ही उल्लेखनीय रुख’’ था. कुमार ने कहा कि उस दौरान तय की गई बहुत सी चीजें ‘‘हमारी पूरी चुनावी प्रक्रिया का अभिन्न अंग’’ बन गई हैं, चाहे यह चुनाव चिह्न हों या अमिट स्याही का इस्तेमाल हो. पूरे देश में 1,96,084 मतदान केंद्र स्थापित किए गए थे. मतदान की प्रक्रिया बर्फबारी के मौसम से पहले हिमाचल प्रदेश से शुरू की गई थी.
रिपोर्ट में कहा गया कि चुनाव आयोग को इस राष्ट्रव्यापी प्रक्रिया के दौरान उन दुर्गम इलाकों तक पहुंचने की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, जहां विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र थे, जहां सड़कें नहीं थीं और संचार सुविधाओं का अभाव था. जोधपुर और जैसलमेर जैसे इलाकों में बड़ी संख्या में ऊंटों का इस्तेमाल किया गया था. जहां भी सार्वजनिक भवन नाकाफी थे, वहां मतदान के लिए ‘डाक’ बंगलों और निजी भवनों का भी उपयोग किया गया था.
देश के आम चुनाव को लेकर पश्चिमी देशों के आलोचकों ने जताया था शक
एसवाई कुरैशी ने कहा कि मुख्य रूप से पश्चिमी देशों के आलोचकों समेत कई ऐसे कई लोग थे, जिन्हें लगा था कि देश का पहला आम चुनाव कराना असफल प्रयोग साबित होगा. उन्होंने कहा, ‘‘उस समय भारत में लगभग 84 प्रतिशत लोग निरक्षर थे. आलोचकों का कहना था कि निरक्षर लोग लोकतंत्र की प्रक्रिया में कैसे भाग ले सकते हैं और उनका मानना था कि हम असफल रहेंगे. निरक्षरता के अलावा, गरीबी, सामाजिक विभाजन और बंटवारे के बाद सांप्रदायिक विभाजन की भी दिक्कत थी... लेकिन हमने पहले ही चुनाव में हमारे असफल रहने की आशंकाओं को गलत साबित कर दिया.’’