Phanishwar Nath Renu Chauthi Kasam: लोकसभा चुनाव 2024 की जारी प्रक्रियाओं के बीच तमाम पार्टियों के स्टार प्रचारकों की जमकर चर्चा हो रही है. हालांकि, हैवीवेट प्रचारकों के बावजूद हार-जीत का फैसला स्थानीय स्तर पर वोटर और उनके समीकरण ही करते हैं. हिंदी साहित्यकार के मशहूर उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु की आज (11 अप्रैल) पुण्यतिथि है. चुनाव को लेकर उनका अनुभव भी अच्छा नहीं रहा था.


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रेणु के उपन्यास मारे गए गुलफाम पर बनी थी तीसरी कसम फिल्म


फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मारे गए गुलफाम’ पर बॉलीवुड में तीसरी कसम नाम से एक फिल्म बनी थी. फिल्म में हीरामन का किरदार कर रहे राजकपूर तीन कसमें खाते हैं. साहित्य में आंचलिक साहित्य जैसी नई विधा का सृजन करने वाले अमर कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने साहित्य सृजन में तीन कसमें खाई थीं, लेकिन चुनाव में हार का तजुर्बा मिलने पर उन्होंने चौथी कसम भी खाई थी.


रेणु के प्रचार में आए थे  दिनकर, अज्ञेय, पंत जैसे दिग्गज साहित्यकार


बहुत कम लोगों को पता है फणीश्वरनाथ रेणु ने एक बार चुनाव मैदान में भी अपनी किस्मत आजमाई थी. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, अज्ञेय, पंत जैसे दिग्गज साहित्यकार उनके लिए प्रचार करने आए. लेकिन फिर भी रेणु को करारी हार का सामना करना पड़ा था. फणीश्वरनाथ रेणु ने तब सियासी धोखे से आहत होकर  कभी चुनाव न लड़ने की चौथी कसम खाई थी. आइए, किस्सा कुर्सी का में पूरी कहानी को जानने की कोशिश करते हैं.


आज भी सियासी गलियारों में खूब होती है रेणु की चौथी कसम की चर्चा


फणीश्वरनाथ रेणु ने ऐसी चौथी कसम खाई थी कि आज भी सियासी गलियारों में उसके किस्से सुनाए जाते हैं. मारे गए गुलफाम और मैला आंचल के अलावा भी कई अमर कृतियों की रचना करने वाले रेणु ने 1972 में अररिया जिले की फारबिसगंज विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ा था. उनका मुकाबला कांग्रेस के कद्दावर नेता सरयू मिश्रा से था. छल-प्रपंच और अपनों से मिले धोखे के कारण हुई हार के बाद रेणु ने चौथी कसम खाई थी. इसके बाद उन्होंने कभी चुनाव मैदान की ओर रुख नहीं किया.


एक हाथ में कलम और दूसरे में पिस्तौल वाले लेखक थे फणीश्वरनाथ रेणु 


पड़ोसी देश नेपाल में हुई क्रांति में हिस्सा लेने वाले फणीश्वरनाथ रेणु अपने पास पिस्तौल भी रखा करते थे. तीन साल पहले रेणु की जन्मशती पर उनके पुत्र दक्षिणेश्वर प्रसाद राय (पप्पू) ने अपने संस्मरण में लिखा था कि उनके एक हाथ में कलम और दूसरे में बंदूक भी होती थी (नेपाली क्रांति कथा). उनका कलम और क्रांति दोनों से गहरा नाता था. रेणु अपनी चुनावी सभाओं में भी अपने अंदाज में किस्से, कहानी, भजन और गीत सुनाते थे. 


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फणीश्वरनाथ रेणु ने छोड़ा चुनाव, राजनीति में होता रहा नाम का इस्तेमाल


साल 1972 के बाद से ही फणीश्वरनाथ रेणु के नाम और अररिया के औराही हिंगना स्थित उनके गांव का राजनीति में इस्तेमाल होता रहा है. कई साल बाद रेणु के बड़े बेटे पद्मपराग राय ‘वेणु’फारबिसगंज से ही 2010 से 2015 तक भारतीय जनता पार्टी के विधायक रह चुके हैं. फिलहाल जदयू में हैं. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पांच से ज्यादा बार उनके घर जा चुके हैं. 


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