Maharashtra Election: महाराष्ट्र में चुनावी समर हर दिन के साथ एक नए मोड़ पर पहुंचता जा रहा है. अब तक उलेमा बोर्ड और मौलाना चुनावी वोट साधने का मुख्य जरिया बने हुए थे, लेकिन अब चुनावी प्रचार में पैगंबर मोहम्मद साहब का भी नाम लिया जाने लगा है. यह सब वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर के एक बयान के बाद शुरू हुआ है, जिसमें उन्होंने मुस्लिम वोट के लिए चुनावी प्रचार में धार्मिक हस्तक्षेप की बात की है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

प्रकाश आंबेडकर के इस बयान पर प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गई हैं, लेकिन यह केवल आंबेडकर नहीं हैं, जिन्होंने धार्मिक प्रतीकों को चुनावी प्रचार का हिस्सा बनाया है. कई और सियासी नेता भी अब मजहब से जुड़ी शख्सियतों को अपने प्रचार से जोड़ रहे हैं, ताकि मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित किया जा सके.


मुस्लिम इलाकों में प्रचार के लिए NGO और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से जुड़े लोग भी सक्रिय हो गए हैं. इनमें से एक प्रमुख नाम है सज्जाद नोमानी, जिनके महाविकास अघाड़ी (MVA) को खुला समर्थन देने से चुनावी माहौल में और गर्मी आ गई है. इस समय राजनीतिक गलियारों में एक नई एंट्री हुई है, जो मुस्लिम वोटबैंक की जद्दोजहद को और भी बढ़ा रही है.


इसी बीच, मुफ्ती सलमान अजहरी का भी नाम सामने आया है. कथित हेट स्पीच मामले में जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने अपने पहले राजनीतिक सार्वजनिक कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता अबू आजमी के साथ चुनावी समर्थन की दुआ ली. सलमान अजहरी की रिहाई के बाद मुस्लिम समाज में उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ी है, जिसका फायदा अबू आजमी ने चुनावी समर्थन के रूप में लिया.


मुफ्ती सलमान अजहरी की रिहाई के बाद बड़े पैमाने पर मुस्लिम समाज में प्रदर्शन हुए थे, और सोशल मीडिया पर उनके लिए एक कैम्पेन भी चलाया गया था. इन तस्वीरों और घटनाओं ने यह साफ कर दिया कि मुस्लिम समाज में मुफ्ती अजहरी का कद बहुत बढ़ चुका है. अबू आजमी ने भी चुनावी प्रचार के लिए उनसे दुआ की मांग की, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम वोटबैंक को साधने के लिए अब मुफ्ती और मौलाना का समर्थन जरूरी हो गया है.


अबू आजमी का बयान, जिसमें उन्होंने मुफ्ती सलमान अजहरी से दुआ मांगी, सियासी गलियारों में खासा चर्चा का विषय बन गया है. अबू आजमी से इस बारे में सवाल पूछे गए तो उनके जवाब में कम रिएक्शन और अधिक काउंटर रिएक्शन देखने को मिले. इस पर अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या महायुति के विरोधियों ने मान लिया है कि हिंदू वोटबैंक एकजुट हो चुका है, और अब मुस्लिम वोटबैंक को लामबंद करने की कोशिश की जा रही है.


महाराष्ट्र चुनाव में बार-बार मजहबी कार्ड का खेल हो रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या यह सिर्फ महाराष्ट्र का चुनावी संयोग है, या यह एक ऐसा प्रयोग है, जो आने वाले चुनावों में भी जारी रहेगा. क्या इस रणनीति का असर आम मुस्लिम वोटर पर पड़ेगा, या फिर चुनावी मुद्दे ठोस रहेंगे?


इस बीच, महाराष्ट्र के सियासी समीकरण में मौलाना सज्जाद नोमानी का नाम उछलने के बाद, अबू आजमी का गुस्सा बढ़ गया है. इन घटनाक्रमों से यह साफ है कि मुस्लिम वोटबैंक को साधने के लिए अब मुफ्तियों और मौलानाओं का साथ अनिवार्य हो गया है. लेकिन चुनावी प्रचार में इस धार्मिक हस्तक्षेप का असर कितना होता है, यह देखना बाकी है.


मुंबई से अश्विन पांडे की रिपोर्ट, ज़ी मीडिया