Maulana Sajjad Nomani: एक तरफ छात्र और सिस्टम आमने सामने है. तो दूसरी तरफ चुनाव में मुस्लिम वोट के लिए एक नया ईको सिस्टम खड़ा हो गया है. मुस्लिम वोटबैंक को महाविकास अघाड़ी की तरफ मोड़ने के लिए पर्चे बांट रहे थे. सेकेंड फेस में उलेमा बोर्ड आ गया जिसने महाविकास अघाड़ी को मुस्लिम वोट दिलाने के बदले में 17 शर्तें रख दी थीं और अब इस लिस्ट में नई एंट्री है सज्जाद नोमानी की हो गई है. मौलाना सज्जाद नौमानी ने एक पूरी लिस्ट जारी की और ऐलान किया कि महाराष्ट्र चुनाव में सज्जाद नोमानी और उनका एकता फोरम महाविकास अघाड़ी के 269 उम्मीदवारों को खुला समर्थन करेगा.


मौलाना ने बताया EVM का कौन सा बटन दबाना है


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सज्जाद नौमानी ने महाविकास अघाड़ी के साथ ही साथ 16 और उम्मीदवार भी चुने है जिन्हे समर्थन दिया जाएगा, लेकिन सवाल तो ये है कि आखिर ये कौन सी प्रथा शुरु कर दी गई है कि मुसलमानों की संस्थाएं हो और मौलाना मुसलमानों के ठेकेदार बन गए और और मुसलमानों को बता भी रहा हैं कि कहां वोट डालना और कहां नहीं डालना है. महाराष्ट्र के चुनावी शोर में जब जब मुस्लिम वोटबैंक की बात हो रही है तो कुछ ऐसे किरदार सामने आ जाते हैं जो शायद खुद को मुस्लिम वोटों का ठेकेदार समझते हैं. इस बार सामने आए हैं सज्जाद नोमानी. जिन्होंने बड़ी ही सफाई के साथ मुसलमानों को बताया है कि EVM पर कहां बटन दबाना है.


सज्जान नोमानी का अघाड़ी का समर्थन:


सज्जाद नोमानी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सीनियर सदस्य हैं लेकिन जब उन्होंने महाविकास अघाड़ी और अन्य उम्मीदवारों का समर्थन किया तो उन्होंने अपनी संस्था एकता फोरम के नाम पर पर्चा छाप दिया. नोमानी शायद ये दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि महाविकास अघाड़ी को इस समर्थन से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कोई लेना देना नहीं है लेकिन मुसलमानों के बीच उनकी पहचान पर्सनल लॉ बोर्ड से ही जुड़ी है. नोमानी ने ना सिर्फ महाविकास अघाड़ी को समर्थन दिया बल्कि उसके बाद जो बोला वो भी मुस्लिम वोट की लामबंदी जैसा ही लगता है.


सवाल उठना लाजमी:


क्या अब हर चुनाव में मुस्लिमों को इसी तरह वोट देने के लिए हुक्म या अपील मिलेगी?
➤ क्या मुस्लिमों से जुड़ी राजनीति अब कुछ कथित ठेकेदारों के कहने पर चलेगी?
➤ क्या एक नया ट्रेंड बनाया जा रहा है जिसमें धार्मिक संगठन मुस्लिम वोटबैंक की दशा और दिशा तय करेंगे?


बटेंगे-कटेंगे पर आपत्ति भी गलत:


सज्जाद नोमानी ने जब समर्थन वाले उम्मीदवारों की लंबी चौड़ी लिस्ट जारी की तो उनकी जुबान से निकला कि हर उम्मीदवार उन्हें कई बार फोन कर रहा है और बार-बार फोन के इस दावे को लेकर भी नोमानी पर सवाल उठाए गए. अगर इस्लामिक स्कॉलर किसी पक्ष के लिए वोट की अपील करेंगे तो फिर बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारों पर सवाल उठाने के हकदार नहीं रहते. उलेमा बोर्ड और सज्जाद नोमानी जैसे किरदार शायद ये मानकर बैठे हैं कि मुसलमान उनके कहने पर ही वोट करेगा लेकिन ग्राउंड पर मुसलमान क्या सोचता है? अपनी राजनीतिक मौजूदगी पर भाईजान का क्या OPINION है? वो भी सुनना और समझना बहुत जरूरी है.


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