BJP Defeat Reason: भाजपा में 2014 वाली बात अब नहीं दिख रही. भाजपा की लहर अब थम सी गई है. बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार तो बना ली लेकिन पार्टी से जिस करिश्मे की उम्मीद थी, वो नहीं हुआ. भाजपा ने 400 पार का दावा किया था लेकिन वो बहुमत के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई. अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का जादू नहीं चल पाया. केंद्र शासित राज्य में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. इस नतीजे को देखते हुए कहा जा सकता है कि हवन करते फिर से BJP का हाथ जला.. अयोध्या में न राम काम आए ना ही जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370.


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जम्मू-कश्मीर से भाजपा को बड़ी उम्मीदें थीं


हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के नतीजों की तस्वीर साफ हो गई है. हरियाणा में एक बार फिर भगवा परचम लहराया है तो जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस मिलकर सरकार बनाने जा रहे हैं. हरियाणा से इतर जम्मू-कश्मीर की बात करें तो यहां से भाजपा को बड़ी उम्मीदें थीं. पार्टी के दिग्गजों ने चुनाव जीतने के लिए सारा दम झोंक दिया था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी राज्य में कई जन सभाओं को संबोधित किया था. लेकिन जीत हाथ नहीं लगी.


नहीं काम आया आर्टिकल 370


जम्मू-कश्मीर से भाजपा को इसलिए भी उम्मीद थी कि मोदी सरकार ने ही जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाया था. इसके हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में विकास की बातें होने लगी थीं. भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता अमित शाह, जेपी नड्डा और राजनाथ सिंह ने हर चुनावी मंच से अपने भाषण में आर्टिकल 370 का जिक्र किया था. लेकिन चुनावी नतीजों में इसका कोई असर नहीं दिखा. नतीजे सामने आए तो भाजपा को मुंह की खानी पड़ी. यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 4 बजे तक के रुझानों में कश्मीर में भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका. भाजपा ने जम्मू में तो अपनी सीटों की संख्या बढ़ा ली लेकिन कश्मीर पार्टी के लिए वोटों का सूखा सा पड़ गया.


जम्मू-कश्मीर में भाजपा का हर दांव हुआ फेल


मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से जब आर्टिकल 370 हटाया था तो कई चुनावी पंडितों ने दावा किया था कि इस कदम से भाजपा को जम्मू-कश्मीर में चुनावी फायदा जरूर मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके साथ ही 2022 का परिसीमन (डीलिमिटेशन) भी काम नहीं आया. इससे जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की सीटों में इजाफा हुआ और ये 87 से बढ़ाकर 90 हो गई. लद्दाख को अलग केंद्र शासित राज्य बना दिया गया था. लद्दाख की चार सीटें हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 हुई जो बदलाव के बाद अब 90 है. छह सीटें जम्मू और एक सीट कश्मीर में बढ़ी. लेकिन इसका भी फायदा भाजपा को नहीं हुआ.


रिजर्व सीटों से नहीं हुआ फायदा


रिजर्व सीटों वाला दाव भी भाजपा के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ. इस विधानसभा चुनाव में पहली बार 9 एसटी रिजर्व सीटों पर चुनाव हुआ था. जिनमें से 6 जम्मू में थी तों तीन कश्मीर घाटी में. इन सीटों पर भाजपा को जीत का भरोसा था. भरोसा इसलिए भी था कि इन विधानसभा सीटों के मतदाताओं की मांगें पूरी हुईं थी.. उन्हें एसटी का दर्जा मिला था. लेकिन 4 बजे तक आए चुनावी नतीजे के रुझानों में राजौरी और पुंछ की पांचों एसटी सीटों पर भाजपा बढ़त लेती नहीं दिखाई दी. भाजपा का मुस्लिम उम्मीदवारों वाला प्रयोग भी पार्टी को जीत नहीं दिला सका. भाजपा ने जम्मू-कश्मीर चुनाव में 25 मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला था. जिनमें से 7 जम्मू से चुनाव लड़े थे.


जम्मू-कश्मीर ने अयोध्या की याद दिलाई


जम्मू-कश्मीर के चुनावी नजीतों में लोकसभा चुनाव के फैसले की झलक देखने को मिली है. ऐसा इसलिए क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अयोध्या राम मंदिर को भुनाने की पूरी कोशिश की थी. लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के लिए इसे मास्टरस्ट्रोक बताया जा रहा था. चुनावी पंडितों ने यहां तक कह दिया था कि भाजपा को रामलला का आशीर्वाद जरूर मिलेगा. भाजपा ने लोकसभा चुनाव में जीत तो हासिल कर ली लेकिन अयोध्या को जीत नहीं सकी. अयोध्या में समाजवादी पार्टी की जीत हुई. इतना ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीटों की संख्या कम हुई. भाजपा को महज 33 सीटों पर ही जीत मिल सकी. वहीं, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर 42 सीटों पर जीत दर्ज की थी.