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Divyang Delivery Boy: न थक के बैठ अभी तेरी उड़ान बाकी है, जमीन खत्म हुई है आसमान बाकी है.. इन्हीं वाक्यों को चरितार्थ कर रहा है जहानाबाद का मोहम्मद असलम. मां-बाप के गुजर जाने और दिव्यांग के बावजूद अपने हौसले और मेहनत से किसी पर आश्रित होने के बदले सरकारी योजना से मिली ट्राई साइकिल से निजी कंपनी के लिए डिलीवरी बॉय बनकर अपने सपनों को साकार करने की कोशिश कर रहा है. देखिए इस नौजवान के हौसले और जज्बे की एक अनूठी कहानी.
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बीपीएससी क्रैक करने का जुनून
अंग्रेजी में एक वाक्य जिसका अनुवाद है "सफलता पाने के लिए हमेशा अपने लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ते रहें." सरकार द्वारा दी गई ट्राई साइकिल के पीछे लिखकर जहानाबाद शहर के शेखालमचक मुहल्ले का यह दिव्यांग युवक सुबह होते ही घर-घर जाकर निजी कंपनी से आए सामनों की डिलीवरी करता है और इस डिलीवरी से मिलने वाली रकम से ना सिर्फ अपनी जीविका चलाता है बल्कि बीपीएससी की तैयारी की सामग्री भी खरीदता है.
डिलीवरी बॉय बन घर-घर पहुंचा रहा समान
दिव्यांग असलम ने बताया कि बीएड करने के दौरान ही उसकी मां सैरुन निशा का देहांत हो गया था जबकि पिता मोहम्मद फजल करीम बचपन में ही गुजर गए थे और किस्मत भी उसका इंतहान लेती रहती है. बचपन में में ही लकवा मारने की वजह से वे दोनों पैरों से अपाहिज हो गए थे. रही सही किस्मत कोरोना काल खराब हो गई. बीच में उसका एक्सीडेंट हो गया जिसकी वजह से वह चलने फिरने से असमर्थ हो गया.
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दोनों पैर से लाचार असलम के हौसलों की उड़ान
ऐसे में अपनी जीविका चलने और अपने सपने को साकार करने के लिए वह घर-घर सामान पहुंचने लगा. हालांकि, इस कार्य में कठिनाई भी आई आती लेकिन उसके हौसले के सामने वो परेशानी भी बौनी साबित हुई. असलम बताते हैं कि दिव्यांग होने की वजह से कई सामनों की डिलीवरी में परेशानी होती है और कुछ लोगों का नजरिया और व्यवहार भी अलग होता है. बहरहाल, असलम के हौसले और जज्बे को देख इनपर इकबाल की ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं कि खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है.
रिपोर्ट: मुकेश कुमार