Madhya Pradesh High Court : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज उस वक्त हैरान रह गए. जब एक महिला अजीबोगरीब याचिका लेकर कोर्ट पहुंची. ये महिला जेल में बंद पति को एक महीने के लिए रिहा कराने की अर्जी लाई थी. महिला ने कोर्ट में कहा उसने ये अर्जी इसलिए लगाई है  ताकि वह अपने मूलभूत अधिकार के तहत बच्चा पैदा कर सके. इस अनोखे मामले में याचिकाकर्ता की अर्जी पर हाई कोर्ट ने महिला की चिकित्सीय जांच करवाने का आदेश देते हुए मामले की अगली सुनवाई 22 नवंबर को तय की है. 


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हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला


इस महिला का पति इंदौर सेंट्रल जेल में सजा काट रहा है. सुनवाई के दौरान महिला के वकील ने अपनी याचिका के पक्ष में राजस्थान हाई कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया है जिसमें कहा गया था कि संतान पैदा करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है. इसी दौरान कैदियों के वैवाहिक अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी हवाला दिया गया. महिला ने कहा कि उसे भी अपने पति से बच्चा पैदा करने का मौका दिया जाना चाहिए. अपने पक्ष को और मजबूत करते हुए इस महिला ने एक हलफनामा भी पेश किया. जिसमें ये कहा गया है कि वो गर्भधारण करने में सक्षम है.


सरकारी वकील ने किया विरोध


इस याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता महिला, संतान पैदा करने की उम्र पार कर चुकी है. वह प्राकृतिक या कृत्रिम तरीकों से संतान पैदा नहीं कर सकती. क्योंकि वो रजोनिवृत्ति की उम्र प्राप्त कर चुकी है. चूंकि याचिकाकर्ता महिला पहले ही सरकारी वकील के ऑब्जेक्शन की काट का कागज यानी दस्तावेज लेकर आई थी, ऐसे में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस विवेक अग्रवाल ने ये कहा कि इस केस में पहली जरूरत ये तय करना है कि याचिकाकर्ता महिला संतान पैदा कर सकती है या नहीं.


जबलपुर मेडिकल कॉलेज की टीम करेगी जांच


ऐसे में हाई कोर्ट ने जबलपुर मेडिकल कॉलेज के डीन को डॉक्टरों की पांच सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया है. ताकि जांच करके यह पता लगाया जा सके कि क्या वह बच्चा पैदा करने में सक्षम है. इसके बाद अदालत महिला की याचिका पर कोई और फैसला लेगी.


अन्य राज्यों में है ये प्रावधान - 'प्रेग्नेंट न हुई तो 16 संस्कार अधूरे रहेंगे'


पंजाब में कैदियों को वंश बढ़ाने के लिए जीवन साथी के साथ अकेले में समय बिताने के लिए जेल परिसर में ही एक अलग कमरे की व्यवस्था की गई थी, जिसकी पूरे देश में चर्चा हुई थी. इसी तरह राजस्थान हाईकोर्ट के एक फैसले से गैंगरेप के दोषी को 15 दिन पत्नी के साथ रहने की इजाजत मिली थी. एक साल पहले सामने आए इस मामले में बच्चा पैदा करने के लिए रेपिस्ट को जब  पैरोल देने की याचिका लगाई गई थी तब आरोपी की पत्नी ने कहा था- प्रेग्नेंट न हुई तो 16 संस्कार अधूरे रहेंगे.


ऐसा ही एक और मामला राजस्थान में सामने आया था. जहां उम्रकैद की सजा काट रहे 34 साल के एक व्यक्ति की पत्नी ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी. महिला ने अपनी याचिका में कहा था, 'मुझे परिवार बनाने के लिए बच्चा चाहिए. इसलिए पति को कुछ दिनों के लिए पैरोल पर छोड़ें.'


इस पर राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा, 'याचिका दायर करने वाली महिला निर्दोष है. उसे तो अदालत ने दंड नहीं दिया है. ऐसे में उसे मातृत्व से वंचित न रखा जाए. वंश संरक्षण के उद्देश्य से विविध धार्मिक ग्रंथ, साथ ही न्यायिक निर्णयों में भी संतानोत्पत्ति को महत्व दिया गया है. विवाहित महिला की मां बनने की इच्छा है, तो ये इच्छा पूर्ण करना राज्य व्यवस्था का दायित्व है. संतान होने के चलते कैदी पर इसका सकारात्मक असर भी दिख सकता है. सजा पूरी कर बाहर आने के बाद वह मुख्यधारा में आसानी से सहभागी भी हो सकेगा.' हालांकि बाद में ये मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया  था.


नियमित पैरोल की बात करें तो असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर जिन अपराधियों ने कम से कम एक वर्ष जेल की सजा काट ली है वो अधिकतम एक महीने के लिए नियमित पैरोल के पात्र हैं. यह विभिन्न कारणों से प्रदान की जाती है.


1. परिवार के किसी सदस्य की गंभीर बीमारी.
2. परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु या दुर्घटना .
3. दोषी की पत्नी बच्चे को जन्म देती है.
4. यदि कैदी की कोई भी संतान ना हो, ऐसे में अपराधी और उसकी पानी की सहमति के अनुसार संतान प्राप्ति के लिए पैरोल के लिए आवेदन किया जा सकता है.
5.परिवार के सदस्य की शादी.
6. वो कैदी जो किसी ऐसे रोग से ग्रसित है जिसका इलाज जेल के अस्पताल में नहीं हो सकता तो वो इलाज के लिए पैरोल ले सकता है.
7.अपराधी को जेल की सजा मिलने से पहले उसका किसी प्रकार का सरकारी कार्य अधूरा रह गया हो तो उस सरकारी कार्य को पूरा करने के लिए पैरोल पर रिहा किया जाता है.