Kohinoor Story: ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 96 साल की उम्र में 8 सितंबर 2022 को इस दुनिया में अंतिम सांस ली. 25 साल की उम्र से लेकर अब तक क्वीन एलिजाबेथ II (Queen Elizabeth II ) ने ब्रिटेन के शाही परिवार की अगुवाई की है. उनके निधन के बाद अब एक बार फिर कोहिनूर हीरा (Kohinoor Diamond) सुर्खियों में है. बचपन से ही हम सभी ने कोहिनूर के बारे में किस्से, कहानियों और स्कूल की किताबों में पढ़ा और सुना है. जब भी बेशकीमती हीरों (Precious Diamonds) का जिक्र होता है तो जेहन में सबसे पहला नाम कोहिनूर (Kohinoor) का ही आता है.


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यह हीरा जितना खूबसूरत है इसकी कहानी उतनी ही दिलचस्प. आज बात करेंगे कोहिनूर हीरे के भारत से लेकर ब्रिटेन (Britain) पहुंचने के सफर की. कोहिनूर की बात आते ही सभी के मन में एक ही सवाल उठता है कि भारत के पास से यह बेशकीमती हीरा कोहिनूर ब्रिटेन की महारानी के ताज तक आखिर पहुंचा कैसे. जानें कहानी उस कोहिनूर हीरे की जो भारत का है.


कहानी भारत के बेशकीमती कोहिनूर की
वह हीरा जिसे ब्रिटेन इंडिया को लौटाने के लिए राजी नहीं, उस कोहिनूर की कहानी शुरू होती है आज से लगभग 800 साल पहले. यह आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा के खदानों में मिला था. दुनिया के सबसे बड़े हीरे में से एक कोहिनूर का अर्थ है रोशनी का पर्वत. यूं तो गोलकुंडा की खदानों का बेशकीमती हीरों से काफी पुराना रिश्ता है. कहा तो यह भी जाता है इसी खदान में दरियाई नूर. नूर-उन-ऐन, ग्रेट मुगल, ओरलोव आगरा डायमंड, अहमदाबाद डायमंड और ब्रोलिटीऑफ इंडिया जिसे कई हीरे मिले हैं. कहा जाता है कि इनकी कीमत लगाना भी मुश्किल है.


कभी हुआ करता था दुनिया का सबसे बड़ा हीरा
वास्तविक हीरा कोहिनूर 793 कैरेट का बताया जाता है. आज के समय में यह 105.6 कैरेट का रह गया है, जिसका वजन 21.6 ग्राम है. एक समय में यह दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था. इससे जुड़ी सबसे दिलचस्प बातों में से एक यह है कि इस बेशकीमती हीरे को इसके पूरे इतिहास से लेकर वर्तमान तक कभी भी बेचा या खरीदा नहीं गया है. इसे एक से दूसरे राजा ने जीता है या फिर इसे तोहफे के तौर पर दिया गया है. 


ऐसा है कोहिनूर का इतिहास 
इस खूबसूरत और बेशकीमती हीरे को जो भी देखता है उसका दिल इस पर आ जाता है, तभी तो इस हीरे की वजह से कई  बादशाहों की सल्तनत तहस-नहस हो गई. मान्यता के आधार पर इस हीरे को श्रापित कहा जाता है. इसके श्रापित होने के बात 13वीं सदी से चली आ रही है. इसे शापित इसलिए भी कहा जाता होगा क्योंकि हम इतिहास उठाकर देखें तो इस हीरे की चमक-दमक के पीछे कितने ही राजाओं ने अपनी जान गंवाई है. 


कई शासकों तक पहुंचा कोहिनूर
सबसे पहले इस हीरे का जिक्र 1304 में किया गया था. यह मालवा के शासक महलाक देव की संपत्ति में शामिल हुआ करता था. इसके बाद इस हीरे का  जिक्र बाबरनामा में किया गया, जिसके मुताबिक हीरा ग्वालियर के राजा ब्रिक्रमजीत सिंह के पास था. उन्होंने पानीपत के युद्ध के दौरान अपनी सारी संपत्ति के साथ इस हीरे को भी आगरा के किले में रखवा दिया था. बाबर ने इस युद्ध को जीतने के बाद उसके किले पर अपना अधिकार जमाया और 146 कैरेट का यह हीरा बाबर का हो गया. जिसका नाम बदलकर बाबर रखा गया.


मुगलों के पास मौजूद इस बेशकीमती हीरे को 1738 में ईरानी शासक नादिर शाह लूटने में कामयाब रहा. वह इसे अपने साथ ले गया था. 1747 में नादिर शाह की हत्या कर दी गई, जिसके बाद नादिर शाह के पोते शाहरुख मिर्जा ने इस पर अधिकार जमाया. बताया जाता है कि नादिर शाह के सेनापति अहमद शाह अब्दाली ने उनके पोते शाहरुख मिर्जा की बहुत मदद की थी जिससे खुश होकर उन्हें कोहिनूर तोहफे के तौर पर दे दिया गया. 


दोबारा ऐसे पहुंचा भारत 
सेनापति अब्दाली इसे अपने साथ लेकर अफगानिस्तान चला गया जहां अब्दाली के वंशजों के पास यह वर्षों तक रहा. जब अब्दाली का वंशज शुजा शाह लाहौर पहुंचा. उस समय वहां पंजाब के सिख राजा महाराणा रणजीत सिंह का शासन हुआ करता था. साल 1813 में महाराजा रणजीत सिंह इस हीरे को शुजा शाह से हासिल करने में कामयाब रहे. यह था कोहिनूर का यहां तक का सफर. इसके बाद कोहिनूर भारत में ही रहा महाराजा रणजीत सिंह ने इसे अपने ताज में सजाया था उनके निधन के बाद 1839 में हीरा उनके बेटे दिलीप सिंह को सौंप दिया गया. 


कोहिनूर का भारत से ब्रिटेन का सफर 
29 मार्च 1849 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब पर कब्जा किया और इसी के साथ सिख साम्राज्य पर कंपनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया. ऐसे में दुनिया का सबसे मशहूर और बेशकीमती हीरा ईस्ट इंडिया कंपनी की नजरों से कब तक बचा रह सकता था. इस तरह कोहिनूर कंपनी को मिल गया वर्तमान में कोहिनूर हीरा ब्रिटेन के राजपरिवार के पास है.


बताया जाता है कि इसे हथियाने के 1 साल बाद यानी कि 1850 में इसे बंकिघम पैलेस में क्वीन विक्टोरिया के सामने प्रस्तुत किया गया. महारानी के ताज में सजाने के लिए मशहूर डच फर्म कोस्ट ने इसे 38 दिनों तक शेप दिया, जिसके बाद यह घटकर 108.93 कैरेट रह गया. 


कोहिनूर वापस पाने की ये कोशिश भी रही नाकाम
आजादी के बाद साल 1953 में इंडिया ने ब्रिटेन से कोहिनूर हीरे को लौटाने की मांग रखी थी, लेकिन उससे नाउम्मीदी ही मिली. हालांकि, भारत सरकार ने अपनी कोशिश जारी रखीं. वहीं, ब्रिटेन कोहिनूर हीरे को लेकर यह दलील देता है कि इंडिया के पास कोहिनूर वापस मांगने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि समकालीन पंजाब के 13 साल के शासक दिलीप सिंह ने ईस्ट इंडिया कंपनी को यह हीरा तोहफे के तौर पर दिया था. वहीं, भारत के अलावा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी साल 1976 में कोहिनूर को लौटाने की मांग की थी. इंग्लैंड की तरफ से उन्हें भी ना में ही जवाब मिला.