Knowledge: क्या है AFSPA, किन राज्यों में लागू है यह कानून, जानें क्यों इसे हटाने की फिर उठी मांग
AFSPA (सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून) सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. वहीं, जब 1989 के आस पास जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इस कानून को यहां भी लगा दिया गया था.
नई दिल्ली. नगालैंड के ओटिंग में सेना की फायरिंग में 14 लोगों के मारे जाने के मामले में केंद्र सरकार ने SIT जांच के आदेश दिए हैं. SIT को मामले की जांच करके एक महीने के अंदर रिपोर्ट सरकार को सौंपनी होगी. साथ ही मामले में सेना ने भी कोर्ट ऑफ इन्क्वॉयरी बैठा दी है. इसकी अगुवाई मेजर जनरल रैंक के एक अधिकारी को सौंपी गई है. वहीं, नगालैंड के मुख्यमंत्री नीफियू रियो और मेघालय CM कोनराड के सांग्मा ने गृह मंत्री अमित शाह से राज्यों से AFSPA कानून हटाए जानें की मांग की है. जिसके बाद लोग जानना चाहते हैं कि आखिर AFSPA क्या है? किसी भी राज्य या क्षेत्र में यह क्यों लगाया जाता है. आइए जानते हैं....
सबसे पहले जानिए क्या है AFSPA
AFSPA (सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून) सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था. वहीं, जब 1989 के आस पास जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इस कानून को यहां भी लगा दिया गया था.
किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में इसलिए लागू किया जाता है यह कानून
किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में यह कानून तभी लागू किया जाता है, जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को 'अशांत क्षेत्र' अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) घोषित कर देती है. AFSPA केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जाता है, जो कि अशांत क्षेत्र घोषित किए गए हों. इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं. कानून के लगते ही सेना या सशस्त्र बल को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार आ जाता है.
केंद्र या राज्य सरकार इस स्थिति में घोषित करती है 'डिस्टर्ब' एरिया
केंद्र या राज्य सरकार द्वारा किसी भी क्षेत्र को तब 'डिस्टर्ब' एरिया घोषित किया जाता है, जब क्षेत्र में नस्लीय, भाषीय, धार्मिक, क्षेत्रीय समूहों, जातियों की विभिन्नता के आधार पर समुदायों के बीच मतभेद बढ़ जाता है, उपद्रव होने लगते हैं. केंद्र या राज्य सरकार अधिनियम की धारा (3) के तहत किसी भी क्षेत्र को 'डिस्टर्ब' एरिया में घोषित करती है. एक बार 'डिस्टर्ब' एरिया घोषित होने पर वहां पर महीने तक सेना या सशस्त्र बल की तैनाती रहती है.
AFSPA कानून लगते ही सेना को मिल जाते हैं ये अधिकार
- सेना किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है
- सशस्त्र बल बिना किसी वारंट के किसी भी घर की तलाशी ले सकते हैं और इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
- यदि कोई व्यक्ति अशांति फैलाता है, बार बार कानून तोड़ता है तो मृत्यु तक बल का प्रयोग कर किया जा सकता है.
- यदि सशस्त्र बलों को अंदेशा है कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या अन्य बिल्डिंग में छुपे हुए हैं (जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो) तो उस आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह किया जा सकता है.
- वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ली जा सकती है.
- सशस्त्र बलों द्वारा गलत कार्यवाही करने की दशा में भी, उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही नही की जाती है.
- AFSPA के पक्ष में तर्क; (Points in Favour of ASFPA)
AFSPA कानून को लेकर इसलिए होता रहता है विरोध
कई बार सुरक्षा बलों पर इस एक्ट का दुरुपयोग करने का आरोप लग चुका है. ये आरोप फर्जी एनकाउंटर, यौन उत्पीड़न आदि के मामले को लेकर लगे हैं. यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है. इस कानून की तुलना अंग्रेजों के समय के 'रौलट एक्ट' से की जाती है. क्योंकि, इसमें भी किसी को केवल शक के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है. यही कारण है कि इस कानून को हटाने की मांग तमाम एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ता करते रहते हैं.
इन राज्यों में लागू है AFSPA
AFSPA असम, जम्मू कश्मीर, नागालैंड और इंफाल म्यूनिसिपल इलाके को छोड़कर पूरे मणिपुर में लागू है. वहीं अरुणाचल प्रदेश के तिराप, छांगलांग और लांगडिंग जिले और असम से लगी सीमा पर यह कानून लागू है. इसके अलावा मेघालय में भी असम से लगती सीमा पर यह कानून लागू है.
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