नई दिल्ली. पिछले दो दशक से अपनी ही बनाई पिछली फिल्म की सफलता को दोबारा भुनाने की कोशिश एक ट्रेंड बन चुका है. लेकिन पहली सुपरहिट फिल्म के साथ नई फिल्म की तुलना कई बार घातक साबित हो जाती है. हमने कई बार देखा है कि अपनी पिछली फिल्म की तुलना में नया वर्जन किसी तरह का कीर्तिमान रचने में कामयाब नहीं होती. शुक्रवार को रिलीज होने वाली अर्जुन कपूर और परिणीति चोपड़ा की फिल्म भी ऐसी फिल्म साबित हो रही है. जी हां, हम बात कर रहे हैं, निर्माता-निर्देशक विपुल अमृतलाल शाह की 'नमस्ते इंग्लैंड' की. क्योंकि यह 'नमस्ते लंदन' के जबरदस्त म्यूजिक और दमदार कहानी के नजदीक भी नहीं है. 
आज से तकरीबन एक दशक पहले विपुल अमृतलाल शाह अक्षय-कटरीना की जोड़ी के साथ 'नमस्ते लंदन' लाए थे और उस वक्त इस जोड़ी के साथ फिल्म की कहानी और संगीत को भी खूब पसंद किया गया था. लेकिन इस नई फिल्म की बात की जाए तो  इसकी कहानी शुरुआत से लेकर अंत तक फिल्म कहीं भी दर्शक को सरप्राइज करने में नाकामयाब साबित होती है. हालांकि निर्देशक ने बार-बार दावा किया कि 'नमस्ते इंग्लैंड' एक ताजा कॉन्सेप्ट पर बेस फिल्म है, मगर अफसोस वह फिल्म में कोई ताजगी पेश नहीं कर पाए. 


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ये है कहानी
कहानी की शुरुआत ही बॉलीवुड में हजारों बार इस्तमाल होने वाले सूत्र से होती है, जहां परम (अर्जुन कपूर) को जसमीत (परिणिती चोपड़ा) से अचानक पहली नजर का प्यार हो जाता है, वह जसमीत को दशहरे जश्न में डांस करते हुए देखकर उसपर मोहित हो ताजा है. वहीं जसमीत का सपना जूलरी डिजाइनर बनना है. वह एक सेल्फ डिपेंड वूमन बनने के बारे में सोचती रहती है. बहरहाल उसके दादाजी और भाई का मानना है कि औरतें बच्चे पैदा करने और घर संभालने के लिए ही फिट होती हैं. इसीलिए वे जसमीत की नौकरी के सख्त खिलाफ रहते हैं. मगर जसमीत अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहती है. यहां तक की वह इस सपने को पूरा करने के चलते परम से शादी भी करने तैयार हो जाती है. इसके बाद फिल्म के पहले हाफ में ही इन दोनों की शादी तो हो जाती है, मगर विदेश जाकर सेटल होने में कई दिक्क्तें आने लगती है. तब इंटरवेल के सीन पर एक छोटा सा ट्विस्ट आता है, जहां जसमीत झूठी शादी का स्वांग रचकर लंडन चली आती है.



विदेश जाकर वहां की सिटिजनशिप लेना और अपने और परम के सपनों को साकार करना ही जसमीत की प्लानिंग है. अब जसमीत तक पहुंचने के लिए परम का गैरकानूनी तौर पर लंदन आना और जसमीत को जलाने के लिए और सच का आईना दिखाने के लिए झूठी शादी की प्लानिंग करना जैसे कई सीक्वेंसेज के साथ कहानी आगे बढ़ती है, लेकिन यकीन मानिए सब कुछ ऐसा ही होता जाता है जैसा दर्शक पहले से सोच सकता है. यह बात किसी को भी बोर करने के लिए काफी है. 



फिल्म की कहानी की टैगलाइन है, 'प्यार कोई भी दूरी तय कर सकता है' मगर फिल्म में उन्होंने प्यार को जिस तरह से परिभाषित किया है, वह बहुत ही अव्यवहारिक लगते हैं. कमजोर कहानी और ढीले-ढाले स्क्रीनप्ले के कारण फिल्म बोझिल लगने लगती है. हालांकि इयानिस मानोलोपोलिस की इंडिया और यूरोप की सिनेमटोग्राफी दर्शक को पसंद आ सकती है, मगर वह फिल्म को पूरी तरह से बचाने के लिए काफी कम पड़ जाती है. अर्जुन कपूर और परिणीति चोपड़ा की जोड़ी को 2012 में आई 'इश्कजादे' में बहुत पसंद किया गया था, वे अपना असर छोड़ने में नाकामयाब लग रहे हैं. लीड रोल्स के अलावा फिल्म के सपोर्टिंग एक्टर्स भी बहुत दमदार नहीं हैं, जो फिल्म को संभाल सकें.  संगीत की बात करें तो कई संगीतकारों की मौजूदगी में 'भरे बाजार' जैसा गाना लोगों को पसंद आ रहा है.


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