Gunahon ka Devta: गुनाहों का देवता हिंदी के मशहूर लेखक धर्मवीर भारती का प्रसिद्ध उपन्यास है. उपन्यास 1959 में प्रकाशित हुआ और इसी शीर्षक से दो फिल्में बनीं. 1967 में जितेंद्र और राजश्री स्टारर. 1990 में मिथुन चक्रवर्ती स्टारर. लेकिन दोनों का ही उपन्यास से कोई संबंध नहीं था. जितेंद्र और राजश्री की फिल्म के निर्माता-निर्देशक थे, देवी शर्मा. पहले वह इस फिल्म को आज के चर्चित निर्देशक राजकुमार संतोषी के पिताजी पी.एल. संतोषी से डायरेक्ट करवाना चाहते थे. लेकिन बाद में निर्देशन का काम उन्होंने खुद संभाला. फिल्म एक रईस शराबी युवक (जितेंद्र) की कहानी थी, जिसे एक लड़की (राजश्री) से प्यार हो जाता है. वह लड़की उसे बेहतर इंसान बनाने की कसम खा लेती है.


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हीरोइन के लिए किया बलिदान
1964 में जितेंद्र, वी.शांताराम की फिल्म गीत गाया पत्थरों से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत कर चुके थे. फिल्म नहीं चली, लेकिन जितेंद्र का काम काफी पसंद किया गया. इसके बावजूद जितेंद्र को फिल्में मिलने में मुश्किलें आ रही थी. परेशान होकर एक दिन वह मशहूर राइटर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर देवी शर्मा के पास पहुंचे. जितेंद्र ने उनसे कहा कि वी. शांताराम के बाद वही ऐसे व्यक्ति हैं जिसके साथ वह काम करना चाहते हैं. देवी शर्मा बहुत खुश हुए और उन्होंने कहा कि यदि वह किसी बड़ी एक्ट्रेस को ले आएं, तो वह उनके लिए फिल्म बनाएंगे. जितेंद्र उस समय सिर्फ राजश्री को जानते थे. जो गीत गाया पत्थरों में उनकी हीरोइन थीं. जब वी.शांताराम जैसे प्रोड्यूसर-डायरेक्टर की बेटी थीं. जितेंद्र ने राजश्री से देवी शर्मा की फिल्म के बारे में बात की तो वह सवा तीन लाख रुपये में फिल्म करने के लिए तैयार हो गईं जबकि देवी शर्मा उन्हें तीन लाख रुपये ही देना चाहते थे. तब जितेंद्र प्रोड्यूसर से कहा कि मेरी पचपन हजार की फीस में से आप राजश्री को पच्चीस हजार दे दीजिए.


बात आई म्यूजिक डायरेक्टर की
जितेंद्र द्वारा अपनी फीस से एक हिस्सा देने के बाद राजश्री की साइनिंग का मामला सुलझ गया. फिर देवी शर्मा ने जितेंद्र के सामने डिमांड रखी कि वह किसी टॉप के म्यूजिक डायरेक्टर को फिल्म के लिए राजी करें. शंकर-जयकिशन की जोड़ी में से जयकिशन, जितेंद्र के बहुत अच्छे दोस्त थे. जयकिशन भी फिल्म करने के लिए तैयार थे लेकिन पच्चीस हजार की कीमत पर. एक बार फिर जितेंद्र को अपनी फीस से समझौता करना पड़ा. वह फीस के बचे हुए तीस हजार में से पच्चीस हजार जयकिशन को देने के लिए तैयार हो गए. उन्होंने यह फिल्म सिर्फ पांच हजार रुपये के मेहनताने पर की. फिल्म नहीं चली और बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुई. लेकिन इस फिल्म के बाद जितेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्हें लगातार काम मिलता रहा.


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