निर्देशक: कोरोतल सिवा


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स्टार कास्ट: एनटीआर जूनियर, सैफ अली खान, जाह्नवी कपूर, श्रुति मराठे, प्रकाश राज, श्रीकांत, शाइन टॉम चाको, मुरली शर्मा और अभिमन्यु सिंह आदि


स्टार रेटिंग: 3.5


जब से साउथ की किसी बड़े बजट की मूवी का ऐलान होता है, तभी से लोगों को उत्तर भारत में भी इंतजार शुरू हो जाता है कि क्या ये बाहुबली, केजीएफ, आरआरआर या पुष्पा जैसी साबित होगी. ‘देवारा: पार्ट 1’ के ट्रेलर से भी लोगों की यही उम्मीदें लग गई थीं, तो इतना जान लीजिए कि कम उम्मीदों के साथ जाएंगे तो शायद निराश ना हों. इस मूवी में ज्यादा स्पेशल इफैक्ट्स, कोई चमत्कार, कल्कि जैसी कोई भविष्य की दुनियां या माहिष्मती जैसे सैट्स तो नहीं, लेकिन एक्शन और इमोशंस की भरमार है और किरदारों की भी. साथ में सबसे खास है, वो जगह जहां इस मूवी की कहानी फिल्माई गई, समुद्र और पहाड़ियों का संगम.


कहानी
कहानी है समुद्र किनारे की पहाड़ियों पर बसे चार गांवों की, जिनके पास का रास्ता हथियारों के स्मगलरों के लिए काफी अहम है. कोस्ट गार्ड्स की नाक के नीचे से शिप से ये जहाज नावों के जरिए पानी में लटकाकर अपने गांव तक लेकर आते हैं इन चारों गांवों के प्रमुख और उन चारों का नेता है देवारा (एनटीआर जूनियर), उसका साथी व प्रतिद्वंदी है दूसरे गांव का मुखिया भैरा (सैफ अली खान). मुर्गा (मुरली शर्मा) और साथी (अभिमन्यु सिंह) उन्हें हथियार मंगाने के बदले पैसा देते हैं.


लेकिन एक कोस्ट गार्ड अधिकारी (नारायण) एक दिन उन्हें दबोच लेता है और ये याद दिलाकर कि उनके पूर्वजों ने इस समंदर को विदेशी कब्जे से बचाने के लिए अपनी कुर्बानियां दी थीं और वो लोग हथियार स्मगल कर उनकी आत्मा को शर्मिंदा कर रहे हैं, देवारा की आत्म को झकझोर देता है. देवारा उन सबसे ये काम छोड़ देने के लिए कहता है, लेकिन भैरा का अगुवाई में सब देवारा के खिलाफ आ जाते हैं, तब देवारा अपने दम पर अपनों के ही खिलाफ जंग शुरू करता है, देश की खातिर. सारे मिलकर उसकी मौत की खतरनाक योजना बनाते हैं और उनकी चाल नाकामयाब कर वो गांव से गायब हो जाता है. 12 साल बाद कहानी फिर से शुरू होती है, उसके बेटे वराह (एनटीआर जूनियर) और भैरा व साथियों के बेटों के साथ, एक साथी की बेटी थंगा (जाह्नवी कपूर) के साथ.


लेकिन वराह पिता देवारा के ठीक उलटा है, लड़ाई झगड़े से बचने वाला, डींगें हांकने वाला. तो आगे ऐसे कई सवालों के जवाब मिलेंगे कि हथियारों की स्मगलिंग का क्या हुआ? भैरा व साथियों का धंधा बंद करने वाले देवारा के परिवार के साथ भैरा ने क्या किया? सबसे दिलचस्प बात कि देवारा का क्या हुआ? बाहुबली की तरह एक सीन भी है, जिसका जवाब इस मूवी में भी नहीं मिलेगा कि देवारा को उसके बेटे वराह ने कटार क्यों भौंकी?


रिव्यू
बाहुबली से कतई अलग होने के बावजूद मूवी में उसका असर दिखता है, कैसे एक अलग दुनियां बसाई गई है पहाड़ियों पर और उसके पास वाले समंदर में, जैसे माहिष्मती अलग बसी थी. जिस तरह बाहुबली का पूरी माहिष्मती को इंतजार था, वैसा ही इंतजार देवारा के दोस्त और दुश्मनों को 12 साल से था. वही इमोशन और एक्शन भी.



एक्शन के पसंदीदा लोगों के लिए खास बात है कि इस मूवी के निर्देशक कोरातल सिवा है, जो महेश बाबू, चिंरजीवी, प्रभास और एनटीआर के साथ कई एक्शन से भरपूर सुपरहिट फिल्में दे चुके हैं, जैसे ‘भारत अने नेनू’ और ‘श्रीमंथडु’ महेश बाबू के साथ, चिरंजीवी के साथ ‘आचार्या’, प्रभास के साथ ‘मिर्ची’ और एनटीआर जूनियर के साथ ‘जनता गैराज’. ऐसे में ऐक्शन सींस काफी हैं, सिनेमेटोग्राफी और शूटिंग लोकेशंस आंखों को लुभाएगी.


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कमी कहां रह गई
दिक्कत बस म्यूजिक की है, जो शायद तेलुगू शब्दों के साथ अच्छा लगे, लेकिन हिंदी के लिए लिखे गए गीत उतना असर नहीं छोड़ पाए हैं, जैसे ‘बाहुबली’ और ‘पुष्पा’ जैसी फिल्मों के गानों ने छोड़ा. फिल्म ‘बाहुबली’ बन भी सकती थी, लेकिन कोरातल सिवा ने शस्त्र पूजा के दिन आपसी लड़ाई में ज्यादा ध्यान दिया, ना कि देवी देवताओं पर. ऐसा लगा कि वो इससे जानबूझकर बच रहे हैं. मूर्ति तक दिखाने से परहेज किया. जबकि बाहुबली में शिवलिंग को उठाकर झरने के नीचे ले जाने से लेकर पूजा के लिए जाती माता के रास्ते में आए हाथी के माथे पर चंदन लगाने तक, लोगों की भावनाओं का ख्याल रखा गया. इसीलिए इमोशनल होने के बावजूद फिल्म लोगों के अंदर तक नहीं घुस पाई.



बेहतर होता कि हिंदी डबिंग में गीतों के बोलों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता और जहां जरूरत थी, वहां आराध्यों के जरिए इमोशंस दिखाए जाते. हालांकि मूवी में एक से बढ़कर एक किरदार है, सितारे हैं, घटनाएं हैं, जो फिल्म को बोर नहीं होने देतीं. एनटीआर जूनियर और सैफ के किरदार तो फिल्म की जान हैं ही, छोटे रोल्स में श्रुति मराठे, जाह्नवी कपूर, प्रकाश राज, जरीना बहाब, नारायण और साउथ के कई सितारे अपने दमदार अभिनय से असर छोड़ते हैं. हालांकि कई सींस छोटे किए जा सकते थे. लगभग तीन घंटे की इस मूवी को आराम से ढाई घंटे में खत्म किया जा सकता था. बावजूद इसके अगर आप मूवी देखने जाते हैं तो आपको टिकट के पैसे खर्च करने का गम नहीं होगा. हालांकि ज्यादा उम्मीदें निराश कर सकती हैं. 


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