Guthlee Ladoo Review: कुछ जरूरी बातें कहती है यह फिल्म, अगर आप देखने-सुनने को तैयार हैं
Guthlee Ladoo Film Review: जो सिनेमा पैसे की चमक-दमक से बनता है, वह धूम-धाम से सिनेमाघरों में आता है. लेकिन जरूरी बातें करने वाली कई फिल्में खामोशी से चुनिंदा सिनेमाघरों में आती हैं. गुठली लड्डू ऐसी ही फिल्म है. अगर मौका मिले तो इसे एक बार जरूर देखें...
Guthlee Ladoo Movie Review: हिंदी सिनेमा की यह बड़ी कमी मानी जाती है कि यहां समाज में बच्चों की स्थिति लेकर संवेदनशील सिनेमा नहीं बनता. लेकिन गुठली लड्डू इस शिकायत के बीच चौंकाते हुए सामने आती है. यहां बच्चे ‘तारे जमीन पर’ नहीं है, बल्कि इस कहानी के बच्चे पैरों पर खड़े होने के लिए जमीन की तलाश कर रहे हैं! फिल्म दो लड़कों, गुठली (धन्य सेठ) और लड्डू (हित शर्मा) की कहानी है. दोनों हरिजन हैं, इसलिए उन्हें गांव के स्कूल में प्रवेश नहीं मिलता. हालांकि स्कूल के प्रिंसिपल हरिशंकर (संजय मिश्रा) गुठली को स्कूल में एडमीशन देना चाहते हैं क्योंकि वह उससे प्रभावित हैं, लेकिन यह सिर्फ उनकी मर्जी नहीं चलेगी. स्कूल के ट्रस्टी और राजनेता, चौबे (आरिफ शहडोली) से लेकर बाकी शिक्षक-कर्मचारी भी हैं, जो जाति की ऊंच-नीच को सबसे ऊपर रखते हैं.
अगर सुनना चाहें
फिल्म में एक तरफ लड्डू और उसके पिता खुद को किस्मत के भरोसे छोड़ देते हैं. लेकिन गुठली और उसके पिता हथियार नहीं डालते. ऐसे में क्या होगा गुठली काॽ क्या उसे पढ़ने-लिखने का मौका मिल सकेगाॽ वास्तव में वह पढ़ाई-लिखाई ही है, जो किसी की जिंदगी बदल सकती है. यह फिल्म समाज के उन वंचित बच्चों की कहानी है, जिन्हें अछूत माना जाता है क्योंकि वे निचली जाति से हैं. उन्हें गटर और शौचालयों की सफाई का पुश्तैनी पेशा अपनाने के लिए मजबूर किया जाता है. शिक्षा के अधिकारी की सरकारी बातों के बावजूद, उन्हें स्कूल में एडमीशन नहीं दिया जाता. श्रीनिवास अबरोल ने जाति व्यवस्था और शिक्षा को लेकर अच्छी कहानी लिखी है. इसमें कई मौके दिल को छू जाते हैं. पटकथा भी आकर्षक है. यह अलग बात है कि फिल्म की अपील सीमित है, लेकिन गुठली लड्डू कुछ कहती हुई नजर आती है. अगर आप सुनना चाहें.
हमारी जरूरत
फिल्म में ऐसे दृश्य और संवाद हैं, जो समाज में जाति की ऊंच-नीच पर सोचने के लिए मजबूर करते हैं. हालांकि कहीं-कहीं यह भी महसूस होता है कि क्या वाकई 2023 में भी यह हालात हैंॽ नगरों और महानगरों में संभवतः ये इतने मुखर ढंग से नजर न आएं, लेकिन गांवों और पिछड़े-अविकसित इलाकों में स्थिति नहीं बदली है. नन्हें बच्चे गुठली के किरदार को धन्य सेठ ने बखूबी निभाया है. उनका परफॉरमेंस बढ़िया है. संजय मिश्रा स्कूल के प्रिंसिपल हरिशंकर के रूप में अपनी करुणा से दिल को छूते हैं. गुठली के पिता मंगरू के रूप में सुब्रत दत्ता का काम सराहनीय है और कुछ दृश्यों में वह प्रभावी हैं. लड्डू बने हित शर्मा अच्छे लगे हैं. बाकी कलाकारों ने भी अपनी-अपनी भूमिकाएं सटीक ढंग से निभाई है. निर्देशनक इशरत आर. खान ने कहानी को संवेदनशील ढंग से पर्दे पर उतारा है. वे अपनी बात कहने में सफल हैं. साथ ही बताते हैं कि हमें ऐसी कहानियों की जरूरत है. फिल्म का कैमरावर्क अच्छा है. कुल मिलाकर ग्लैमर-विहीन गुठली लड्डू एक बार देखा ही जा सकता है. लेकिन बात वही है कि ऐसी फिल्मों के लिए हमारे दर्शक कितने गंभीर हैं.
निर्देशकः इशरत आर. खान
सितारेः संजय मिश्रा, धन्य सेठ, हित शर्मा, सुब्रत दत्ता
रेटिंग***