Sherdil The Pilibhit Saga Review: दिल मजबूत रखना पड़ेगा यह फिल्म देखने के लिए, पंकज त्रिपाठी ने जमाया रंग
Sherdil The Pilibhit Saga 2022: अच्छी कहानी हर फिल्म के लिए जरूरी है. सिर्फ रोचक वन-लाइनर या मंजे हुए कलाकारों से काम नहीं चलता. शेरदिल द पीलीभीत सागा एक बार फिर यही बात हमारे सामने लाती है. पंकज त्रिपाठी हमेशा की तरह प्रभावित करते हैं.
Bollywood Movie 2022: जब जंगली जानवर गांव में घुस जाता है तो क्या इंसान उसे जिंदा छोड़ते हैं. अगर नहीं, तो इंसान जब जंगल में जाएगा तो क्या वहां के जानवर उसे छोड़ देंगे. यह पुरानी बात हो चुकी है कि इंसान अपनी सीमाएं लांघते हुए जंगलों में घुस रहा है. बस्तियां बसा रहा है. जानवर क्या करें. जो सीधे-सादे-शांत हैं, कम ताकतवार हैं, शाकाहारी हैं वे और अंदर भाग जाते हैं क्योंकि पेड़-पत्तियां-घास मिलती रहती है. लेकिन शेर या बाघ जैसे जानवर क्या करें, जो अपने इलाके भी बड़े बनाते हैं. निर्देशक सृजित मुखर्जी की फिल्म शेरदिलः द पीलीभीत सागा इसी मुद्दे को लेकर चलती है.
गंगाराम का इरादा
फिल्म उत्तर भारत में कुछ साल पहले आई उन खबरों पर आधारित है, जिनमें बताया गया था कि सरकार ने बाघ का शिकार होने वाले ग्रामीणों के परिजनों को दस लाख रुपये देने की घोषणा की थी. तब लोग अपने परिजनों या वृद्धों को बाघ का शिकार बनने के लिए भेजने लगे थे. कुछ तो खुद भी जंगल में चले गए. फिल्म में गांव का सरपंच गंगाराम (पंकज त्रिपाठी) परिवार और गांव वालों से झूठ बोल कर जंगल में चला जाता है कि उसे कैंसर है, वह सिर्फ कुछ महीने का मेहमान है. कहानी गांव के जीवन की लाचारी, भुखमरी और सरकारी तंत्र द्वारा उनकी उपेक्षा की बात करती है. गंगाराम को जंगल में शिकारी जिम अहमद (नीरज काबी) मिलता है. दोनों के इरादे विपरीत हैं. दोनों के बीच जिंदगी के फलसफों, जानवरों और इंसानों के संघर्ष, इंसान के लालच, धर्म और मानव देह के नश्वर होने की बातें होती हैं. बीच-बीच में थोड़ा व्यंग्य भी आता है. अगर आप समझ सके तो मुस्करा देंगे.
देखें शेरदिल द पीलीभीत सागा ट्रेलर
धीमी रफ्तार, लंबाई अधिक
कहानी का मुद्दा यह कि क्या जंगल में बाघ का शिकार होने गए गंगाराम को बाघ खाएगा या फिर जिम अहमद बाघ का शिकार करने में कामयाब होगा. यदि दोनों बातें नहीं, तो फिल्म क्या कुछ और कह रही है. निर्देशक सृजित मुखर्जी बंगाली फिल्मों के चर्चित और प्रतिष्ठित नाम हैं. 2017 में उन्होंने बेगम जान से हिंदी में कदम रखा था. मगर बात नहीं बनी. शेरदिल देखकर भी लगता है कि सृजित को हिंदी के दर्शकों की नब्ज जानने में समय लगेगा. वन-लाइनर आइडियों से उनका काम चलने वाला नहीं. शेरदिल की रफ्तार धीमी है. लंबाई अधिक है. इसे देखने के लिए दिल थाम कर रखना पड़ता है. ज्यादातर यह दो ही किरदारों पर टिकी है. गंगाराम की पत्नी लज्जो (शायोनी गुप्ता) का यहां होना, न होना बराबर है. नीरज काबी को थोड़ा स्पेस और मिलना चाहिए था. साथ ही कहानी में घटनाओं की कमी खटकती है. घटनाएं फिल्म का थ्रिल बढ़ा सकती थीं.
पंकज का एकालाप
फिल्म का मुख्य आकर्षण पंकज त्रिपाठी हैं. लेखक-निर्देशक ने उन्हें गंगाराम के रूप में बहुत मासूम दिखाया है. ऐसा व्यक्ति जो गांव के भले के लिए, गांव की भुखमरी दूर करने के लिए अपना बलिदान देने को तैयार है. सरकारी सिस्टम भी हैरान होता है कि उसने इतना भोला आदमी नहीं देखा. पंकज त्रिपाठी ने हमेशा की तरह अपनी भूमिका सधे अंदाज में निभाई है. यह फिल्म पंकज के खाते में किसी गायक के एकालाप की तरह है. वह अपनी तरफ से गंगाराम को पूरी ऊंचाई तक ले जाते हैं. लेकिन उन्हें कहानी का इतना सहारा नहीं मिलता कि फिल्म को मजबूती से पैरों पर खड़ा कर सकें. फिल्म की राइटिंग और एडिटिंग बेहतर होती को कुछ बात बन सकती थी. यह बात पिछले साल आई विद्या बालन की शेरनी के साथ हुई थी.
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ऑफबीट लेकिन...
शेरदिलः द पीलीभीत सागा का मजबूत पक्ष इसका कैमरानर्क और गीत-संगीत है. फिल्म में दिखाई गई प्रकृति को खूबसूरती से शूट किया गया है. पंकज त्रिपाठी के अतिरिक्त फिल्म देखने की यह एक और वजह हो सकती है. हिंदी में ऐसी फिल्मों की जरूरत है, जो नकली चमक-दमक से अलग आम आदमी के दुख-दर्द, उसकी मुश्किलें सामने लाए. उसे न्याय दिलाने की बात करें. लेकिन सिर्फ कलात्मक अंदाज में नहीं. उसे दर्शकों से कनेक्ट होना चाहिए. अगर आप ऑफबीट फिल्में देखना पसंद करते हैं, जंगल और जानवरों के संरक्षण में आपकी दिलचस्पी है और पंकज त्रिपाठी का अंदाज आपको भाता है, तो शेरदिलः द पीलीभीत सागा देख सकते हैं. यह फिल्मों से सिर्फ एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट चाहने वालों के लिए नहीं है.
निर्देशकः सृजित मुखर्जी
सितारेः पंकज त्रिपाठी, नीरज काबी, शायोनी गुप्ता,
रेटिंग **1/2
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