Ramanand Sagar Ramayan: साल 1987 में टीवी पर टेलीकास्ट होने वाली सबसे पहली रामानंद सागर की 'रामायण' ने उस दौर में लोगों के दिल में अलग जगह बनाई थी, जो आज तक बरकरार है. आज भी लोग इस शो को उसी आनंद के साथ देखना पसंद करते हैं, जैसे उस दौर में. हालांकि, 'रामायण' से कई किस्से ऐसे है जिनसे आज भी लोग अनजान हैं. ऐसा ही एक किस्सा आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जब रामानंद सागर अपने संदूक में बंद 'रामायण' के लिए जान तक देने के लिए तैयार हो गए थे. 


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ये तब की बात है जब रामानंद सागर मबज 30 साल के थे. साल 1947 देश की आजादी के बाद रामानंद अपने पूरे परिवार के साथ कश्मीर घाटी में बस गए. ये वो दौर था जब बटवारे के बाद पाकिस्तान भारत पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ता था और कश्मीर में आतंक ही आतंक बरसाता था. ऐसा ही कुछ तब हुआ था जब रामानंद अपने परिवार के साथ वहां रह रहे थे. वो अपने परिवार के साथ इस हमले में फंस गए थे, जिसके बाद उनको बचाने के लिए पायलट बीजू पटनायक अपना हवाई जहाज लेकर पहुंच गए. 



खतरे में थी जान फिर भी संदूक नहीं छोड़ा 


रामानंद पत्नी, पांच बच्चों, सास, साले और उनकी पत्नी के साथ किसी तरह श्रीनगर के पुराने हवाई अड्डे तक पहुंच गए थे और उन्होंने पूरी रात वहां दीवारों सटकर गुजार दी, क्योंकि उस दौरान आतंकियों ने श्रीनगर में बिजली की लाइन काट चुके थे. वहां बचाव के लिए आए बीजू पटनायक ने जब नजर उठाकर देखा तो रामानंद अपने सिर पर एक बड़ा संदूक रखे अपने परिवार के साथ आ रहे हैं. जब उनको संदूक फेंक कर विमान में चढ़ने के लिए कहा तो उन्होंने पूरे परिवार को विमान में बैठने से मना कर दिया और कहा 'संदूक मेरे साथ ही जाएगा, वरना परिवार का कोई नहीं जाएगा'. 



संदूक में थे 'रामायण' के नोट्स


इतनी बात सुनकर पीछे खड़ी एक पंजाबी जाटनी ने पहले उनका संदूक विमान में फेंका और उसके बाद रामानंद सागर को उठा कर विमान में फेंक दिया. इसके बाद जब बीजू पटनायक ने रामानंद के उस संदूक को खोलकर देखा तो उसमें 'रामायण', उपन्यास के नोट्स और 'बरसात' फिल्म की स्क्रिप्ट थी. रामानंद रोते हुए कहा, 'यही मेरे हीरे जवाहरात हैं, जो मैं लेकर जा रहा हूं'. ये सुनने के बाद बीजू पटनायक ने उनको गले से लगा लिया और वहां मौजूद सभी लोगों की आखों में आंसू भर आए.