Ram Mandir Ayodhya: अयोध्या धाम से फैजाबाद चौक की तरफ जाने वाली मुख्य सड़क की शुरुआत में ही अयोध्या धाम से सटा हुआ पुराना और चर्चित कॉलेज.. कामता प्रसाद सुंदर लाल स्नातकोत्तर महाविद्यालय अयोध्या.. इसको संक्षिप्त में साकेत कॉलेज अयोध्या भी कहते हैं. ये इसी नाम से मशहूर भी है. मुख्य सड़क से सटा लंबा चौड़ा और आकर्षक कैंपस. कैंपस के मेन गेट से अंदर जाते ही एडमिन ब्लॉक के दाहिने तरफ से आगे उस पार इस कॉलेज का मैदान मौजूद है. करीब पचास एकड़ में फैला घास का मैदान. शहर में इसे साकेत कॉलेज मैदान से लोग जानते रहे हैं. अमूमन यह मैदान लंबे समय तक कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों की एक्टिविटी का केंद्र रहा. जबकि शहर में रहने वाले छात्र शाम को भी यहां वर्जिश के लिए आते रहे हैं. 


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इसके अलावा यह मैदान कॉलेज के सालाना समारोहों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी गवाह रहा है. साल 2010-11 के सत्र में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी इस मैदान में आ चुके हैं. ये मैदान कभी भी राजनीतिक रैलियों या अन्य कार्यक्रमों के लिए नहीं खोला गया. कई बड़े कार्यक्रमों में अयोध्या के राजघराने के लोगों की भी उपस्थिति यहां देखी गई. क्योंकि ये घराना साकेत कॉलेज का मुख्य संरक्षक भी रहा है. इसके अलावा साकेत कॉलेज में छात्र राजनीति करने वाले छात्रों का भी ठिकाना ये मैदान रहा है. 


इन सबके बीच अचानक 5 अगस्त 2020 में यह मैदान अभूतपूर्व घटना का गवाह बन गया. इस मैदान से लेकर राम जन्मभूमि के मुख्य परिसर तक दो किलोमीटर का एक बहुत ही विशेष कॉरिडोर बनवाया गया. उसका कारण यह था कि इस मैदान में पहली बार देश के सर्वोच्च नेता यानि प्रधानमंत्री का आगमन हुआ था. पीएम मोदी इसी साकेत कॉलेज के मैदान पर हेलिकॉप्टर से उतरे थे. और यहां से कॉरिडोर के जरिए शिलान्यास में शामिल होने मुख्य परिसर तक पहुंचे थे. 


अयोध्या पर बार-बार नई बहस क्यों?


साकेत कॉलेज के इस मैदान को महज एक उदाहरण के लिए केंद्र बिंदु में रखा गया है. क्योंकि अब करीब चार साल बाद जबकि देश में राजनीतिक वातावरण बदल गया है, अयोध्या में राम मंदिर बन गया है और फिर उसी अयोध्या लोकसभा सीट से बीजेपी हार भी गई है तो अयोध्या को लेकर एक नई बहस ने जन्म ले लिया है. चुनाव के बाद पहले तो सोशल मीडिया पर लोगों ने अयोध्या को निशाने पर लिया और अब खुद सत्ताधारी बीजेपी भी बेरुखी दिखा रही है. 


अयोध्या का जर्रा-जर्रा सबके लिए 


ऐसे में ये समझना जरूरी है कि ये बस चुनाव ही है.. जीत हार तो लगी रहती है. कई सालों-दशकों से बने साकेत कॉलेज अयोध्या के उस मैदान ने कभी नहीं शिकायत की वहां प्रधानमंत्री का आगमन हो.. आगमन के बाद विशेष कॉरिडोर बना तो भी वह मैदान नहीं इतराया. छात्र तब भी पढ़ रहे थे आज भी पढ़ रहे हैं आगे भी पढ़ेंगे. लेकिन राजनीतिक लाभ-हानि से परे इसी साकेत कॉलेज मैदान की तरह अयोध्या का जर्रा-जर्रा सदियों से लोगों के लिए खुला रहा है.


कोई भी विकास कार्य नहीं रुकना चाहिए


सोचिए पिछले कुछ सालों से जिस अयोध्या में योगी सरकार और मोदी सरकार के आला नेता और अधिकारी आए दिन नजर आते रहे.. अचानक उस अयोध्या से चुनाव के बाद की बेरुखी समझ से परे है. चुनाव परिणाम के बाद अभी तक प्रदेश या केंद्र से बीजेपी का कोई बड़ा नेता अयोध्या नहीं पहुंचा है. इधर अयोध्या में लोगों का कहना है कि अब सरकार ने कई बड़े फैसले कैंसल कर दिए हैं. ये डैमेज कंट्रोल का संदेश देने की कोशिश है लेकिन ऐसे में तो विकास कार्य भी रुक जाएंगे. 


मसलन एयरोसिटी बनाने का प्रोजेक्ट कैंसल हुआ. हालांकि स्थानीय बीजेपी नेताओं का कहना है कि ये बाद में कहीं कम आबादी वाले इलाके में बनाया जाएगा. यह बात भी सही है कि इस प्रोजेक्ट का पहले भी विरोध हो रहा था. इसके अलावा फ्लाईओवर का प्रस्ताव भी कैंसल कर दिया गया है. यह अयोध्या धाम के अंदर चल रही उठापटक से इतर है. 


खबरें तो ऐसी भी आईं कि बारिश की वजह से मंदिर परिसर में भी पानी दिखा. ट्रस्ट ने बकायदा सफाई दी कि ऐसा कुछ नहीं है बस निर्माण जारी रहने की वजह से ये हुआ है. लेकिन यहां एक बात समझने की जरूरत है कि चूंकि मंदिर निर्माण का रास्ता सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया. सरकार ने बीड़ा उठाया और अब मंदिर बन गया है. तो ऐसे में बिना चुनाव परिणाम की परवाह किए बिना मंदिर का काम और अयोध्या के विकास का काम ना रुके.. यही समझदारी होगी. 


चुनाव परिणाम तो पार्टियों की जवाबदेही


रही बात लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार की तो कारण धीरे धीरे सबके सामने हैं. जमीनों की वजह से लोगों की नाराजगी, खुद के पार्टी कार्यकर्ताओं पर ध्यान ना देना, सब कुछ अधिकारियों पर ही छोड़ देना.. ये सब सामने आ रहा है. इसकी समीक्षा हर पार्टी करती है.. बीजेपी को भी करनी चाहिए. साथ ही ये समझना चाहिए कि लोकतंत्र में हार जीत चुनाव का हिस्सा है और बीजेपी के लिए तो अच्छी बात यह है कि वैसे भी उनकी यूपी में सरकार है.. इसलिए अयोध्या और आसपास के इलाकों में लोगों की नारजगी दूर करने का मौका उनके पास अभी भी बरकरार है. 


राजनीतिक टिप्पणियों में सावधानी रखी जाए


एक और बात कि हार के बाद सिर्फ अयोध्या के आसपास ही नहीं देश भर से सोशल मीडिया पर अयोध्या और वहां के लोगों को लेकर जो निगेटिव कमेंट आए, वो भी ठीक नहीं हैं. यह सही है कि अयोध्या की हार से बीजेपी के समर्थक दुखी और परेशान हो रहे होंगे, लेकिन यह भी जरूरी है कि राजनीतिक टिप्पणियों में सावधानी रखी जाए. वैसे भी अयोध्या फैजाबाद का चुनावी इतिहास उठाकर देखा जाना चाहिए. 


अयोध्या फैजाबाद का चुनावी इतिहास देखा ही जाना चाहिए


मजेदार बात यह है कि इस चुनाव परिणाम के बाद तो अयोध्या फैजाबाद का चुनावी इतिहास देखा ही जाना चाहिए. अयोध्या हमेशा से ही राजनीतिक रूप से दिलचस्प रही है खासकर चुनावों में. 1985 में बीजेपी ने राम की राजनीति शुरू की तो भी फैजाबाद से कांग्रेस सांसद निर्मल खत्री जीते. 1989 में जब बीजेपी देश में आगे बढ़ी तो भी फैजाबाद सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मित्रसेन यादव सांसद बने. अयोध्या सीट से जनता दल के जय शंकर पांडेय जीते. हालांकि 1991 में फैजाबाद लोकसभा सीट से बीजेपी के विनय कटियार जीते.


अयोध्या तो सबकी है. राम सबके हैं


1992 में जब विवादित ढांचा गिराया गया तो उस समय कांग्रेस के निर्मल खत्री सांसद थे. नरसिंहराव सरकार ने जब यूपी सरकार को बर्खास्त किया.. चुनाव हुआ अयोध्या सीट बीजेपी जीते लेकिन फैजाबाद की बाकी सीटें दूसरी पार्टियों ने जीते. फिर 1996 में फिर से बीजेपी के विनय कटियार जीते. 2004 में मित्रसेन यादव जीते. मोदी युग में दो बार लल्लू सिंह जीते तो इस बार सपा ने बाजी मारी. ऐसे में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अयोध्या तो सबकी है. राम सबके हैं.