RJD Softness on Nitish Kumar: बिहार में सियासी उठापटक के बीच आरजेडी के नरम तेवर ने सबको हैरान कर दिया है. आमतौर पर नीतीश कुमार पर हमलावर रहने वाली आरजेडी ने पिछले कुछ दिनों से उनके खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की है. यहां तक कि नीतीश के बीजेपी संग नई सरकार बनाने की उड़ रही खुली चर्चाओं के बावजूद लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के सुर शांत बने हुए हैं. राज्य में बदल रही परिस्थितियों को देखते हुए आरजेडी भी अपनी रणनीति तो तैयार कर रही है लेकिन उसके किसी भी बड़े नेता ने अब तक नीतीश कुमार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.


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'नीतीश कुमार आदरणीय थे और हैं'


डिप्टी सीएम और आरजेडी के सीनियर लीडर तेजस्वी यादव ने शनिवार को पटना में पार्टी नेताओं के साथ बैठक की. इस बैठक के बाद उन्होंने मीडिया से बात की. उस बातचीत में भी नीतीश कुमार के प्रति उनके तेवर नरम दिखाई दिए. तेजस्वी यादव ने कहा, 'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आदरणीय थे और हैं. कई चीजें उनके (नीतीश कुमार) नियंत्रण में नहीं हैं.' 


'मैंने कभी प्रतिक्रिया नहीं दी'


तेजस्वी यादव ने कहा, 'महागठबंधन' में राजद के सहयोगी दलों ने हमेशा मुख्यमंत्री का सम्मान किया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मेरे साथ मंच पर बैठते थे और पूछते थे, 2005 से पहले बिहार में क्या था? मैंने कभी प्रतिक्रिया नहीं दी. अब और भी लोग हमारे साथ हैं. जो काम दो दशकों में नहीं हुआ, वह हमने कम समय में कर दिखाया, चाहे वह नौकरी हो, जाति जनगणना हो, आरक्षण बढ़ाना आदि.'


'हम टूट का कारण नहीं बनना चाहते'


तेजस्वी यादव की तरह की टोन आरजेडी कोटे से प्रदेश के शिक्षा मंत्री बने आलोक मेहता के बयानों में नजर आई. शनिवार को पटना में बयान देते हुए मेहता ने कहा, 'हम टूट का कोई कारण नहीं बनना चाहते, हम बहुत संयमित हैं, RJD संयम का दे रही है परिचय, कोई क्या बोलता है उस पर हम रिएक्शन नहीं देना चाहते.' 
नीतीश कुमार के सवाल पर आलोक मेहता बोले कि इस बारे में फैसला लेने के लिए लालू यादव को अधिकृत किया गया है. 


तीखे तेवर वाली पार्टी के सुर कैसे हुए नरम?


आरजेडी को आमतौर पर तीखे तेवरों वाली क्षेत्रीय पार्टी माना जाता है. जब वह गठबंधन सरकार में नहीं थी तो नीतीश कुमार के खिलाफ धावा बोलने से गुरेज नहीं करती थी. लेकिन इस बार नीतीश कुमार के दोबारा धोखे के बावजूद लालू परिवार और उनकी पार्टी चुप्पी साधे हुए है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस नरम तेवर के पीछे कई वजहें हो सकती हैं. एक वजह ये हो सकती है कि नीतीश कुमार ने अब तक गठबंधन सरकार से बाहर होने की घोषणा नहीं की है. ऐसे में आरजेडी अपनी ओर से कोई बयानबाजी करके नीतीश को इस फैसले के लिए ठोस आधार नहीं देना चाहती.


कहीं जनता की हमदर्दी पाने की कोशिश तो नहीं?


दूसरी और बड़ी वजह ये हो सकती है कि लोकसभा चुनाव में अब बस 3 महीने ही बाकी रह गए हैं, जिसमें बिहार की 40 सीटें भी दांव पर रहेंगी. ऐसे में नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ सरकार बनाने पर आरजेडी इसे अपने साथ धोखा बताकर चुनावों में लोगों की हमदर्दी हासिल करने की कोशिश कर सकती है. पहले भी सरकार गंवाने पर जिन दलों ने खुद को शहीद के रूप में प्रचारित किया, उसे चुनाव में इसका फायदा मिला है. इसलिए लालू भी अगर ये फॉर्मूला आजमाएं तो कोई हैरानी नहीं होगी.


रविवार को उठेगा सियासी ड्रामे से पर्दा


बिहार की राजनीति को समझने वाले एक्सपर्टों के मुताबिक तीसरी और बड़ी वजह ये हो सकती है कि राजनीति में कोई भी चीज स्थाई नहीं होती. यह संभावना हो सकती है कि लोकसभा चुनाव के बाद आरजेडी को फिर से जेडीयू से हाथ मिलाना पड़ जाए, ऐसे में भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए भी लालू यादव और उनकी पार्टी के नेता रहस्यमय चुप्पी साधे हुए हैं. अब सबकी नजरें रविवार पर टिकी हुई हैं, जब इस सारे सियासी ड्रामे से पर्दा उठेगा और हकीकत सामने आ सकेगी. फिलहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि आरजेडी का यह नरम तेवर आगे तक जारी रहता है या नहीं. अगर यह जारी रहता है तो यह बिहार में सियासी समीकरणों को बदल सकता है.


(इस खबर को लिखने में एआई की मदद ली गई)