Nitish Kumar Politics in Bihar: बिहार के सीएम और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने राज्य में जाति सर्वेक्षण डेटा जारी करके और नया आरक्षण बिल लाकर अपनी सामाजिक न्याय वाली छवि को और चमका दिया है. इसके साथ बीजेपी समेत विपक्ष को भी क्लियर कर दिया है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में वे किन सियासी मुद्दों पर बैटिंग करने जा रहे है. सवाल ये है कि क्या ये कास्ट गेम वर्ष 2024 (Lok Sabha Election 2024) का सियासी संग्राम जीत पाने में कामयाब रहेगा या एक बार फि मोदी मैजिक उन पर भारी पड़ने जा रहा है. 


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बढ़ेगी राजनीतिक न्याय की राजनीति


राजनीतिक पंडितों के मुताबिक नीतीश कुमार (Nitish Kumar Politics) के इस सियासी दांव से पिछड़े वर्गों पर आधारित सामाजिक न्याय की राजनीति एक बार फिर राजनीतिक दलों के एजेंडे में टॉप पर लौट रही है. नीतीश सरकार ने बिहार विधानसभा में जब पिछड़े और दलित वर्गों का आरक्षण कोटा बढ़ाकर 65 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा तो सभी दलों ने उसका समर्थन किया. वहीं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए प्रदेश में पहले से ही 10 प्रतिशत कोटा लागू है. ऐसे में बिहार में अब आरक्षण बढ़कर 75 फीसदी हो जाएगा. 


बिहार- ओडिशा में अब भी दबदबा


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की थी, जिसने देशभर में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया था. इसके साथ ही बिहार समेत देश के कई राज्यों में समाजवादी कही जाने वाली पार्टियों का शासन शुरू हुआ था. धीरे-धीरे बदलते वक्त के साथ भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की वजह से खुद को समाजवादी कहे जानी वाली पार्टियां कमजोर होती चली गईं. हालांकि बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में इनका असर अब भी कायम है. 


नीतीश का अजेय इंद्रधनुष गठबंधन


बिहार की बात करें तो वर्ष 1990 से लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी और नीतीश कुमार (Nitish Kumar Politics) सूबे पर राज कर रहे हैं. लालू यादव जहां ओबीसी राजनीति करके शीर्ष पर पहुंचे, वही जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने भी उन्हीं का अनुसरण करते हुए पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़ा. नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से आते हैं, जिसकी बिहार में आबादी केवल 3 प्रतिशत है. वहीं लालू यादव का वोट बैंक कहे जाने वाले यादव समुदाय की 14 प्रतिशत है. ऐसे मे नीतीश ने सत्ता में आने के लिए ओबीसी, ईबीसी और एससी तक की जातियों को साथ लेकर एक इंद्रधनुष गठबंधन तैयार किया. 


क्या बीजेपी ढूंढ पाएगी काट?


ऐसे में बड़ा सवाल ये उभर रहा है कि नीतीश (Nitish Kumar Politics) को बिहार में जाति सर्वेक्षण की जरूरत क्यों पड़ी, जबकि राज्य सरकार पहले से ही पिछड़ों के लिए कई योजनाएं चला रही है. असल में इस पूरी मुहिम के जरिए नीतीश कुमार बिहार में बीजेपी को जवाब देना चाहते थे, जो उन्हें जाति सर्वेक्षण के रूप में मिल गया. उन्होंने देशव्यापी जातीय जनगणना की मांग उठाकर मोदी सरकार को बचाव की मुद्रा में ला दिया. इसके साथ ही नीतीश कुमार ने एक ऐसा बड़ा दांव (Lok Sabha Election 2024) भी चल दिया है, जिसका अब तक बीजेपी कोई काट नहीं ढूंढ पाई है.