Sukhdev Singh Gogamedi Killed: श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की सरेआम गोली मार कर हत्या की खबर से जयपुर की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. गोगामेड़ी की हत्या की जिम्मेदारी बीकानेर के रहने वाले रोहित गोदारा ने ली है. गोदारा गोंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई गैंग का मेंबर है और फिलहाल कनाडा में छिपा हुआ है. राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजे के क दिन बाद ही सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की गोली मार कर हत्या के बाद श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना संगठन सुर्खियों में आ गया है. आइए, जानते हैं कि आखिर करणी सेना क्या है. ये कैसे काम करती है और इसका मकसद क्या है? क्यों कई बार इसमें दो फाड़ हुआ और किन मुद्दों पर इनमें एकता होती रहती है.


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पद्मावत, दीपिका पादुकोण और भंसाली को थप्पड़ ने दिलाई सुर्खियां


'पद्मावत' फिल्म का उग्र विरोध करने, दीपिका पादुकोण की नाक काटने जैसी धमकियां और संजय लीला भंसाली को थप्पड़ मारे जाने के बाद साल 2017 में करणी सेना अचानक देश भर में चर्चा में आ गई थी. इससे पहले करणी सेना के बारे में गूगल तक पर ज्यादा जानकारी नहीं थी. पद्मावत रिलीज होने के बाद देश के कई हिस्से में और खासकर राजस्थान में इसका व्यापक असर सामने आया था. करणी सेना भले ही कोई राजनीतिक संगठन नहीं होने का दावा करता हो, लेकिन राजस्थान में तमाम राजनीतिक दल इसके पीछे दिखते ही रहते हैं. जानकारी के मुताबिक राजस्थान के राजपूत बहुल जिले में करणी सेना ने बहुत तेजी से अपने कदम जमाए हैं.


पहले के कई संगठनों के रहते कैसे बनी और बढ़ी करणी सेना


राजपूत समाज के जानकारों के मुताबिक, देश के अन्य राज्यों और राजस्थान के प्रमुख शहरों में राजपूत सभा लंबे समय से काम करती आ रही है. वहीं कई दशकों से युवकों के बीच क्षत्रिय युवक संघ भी संगठित होकर काम कर रहा है. इसके बावजूद करणी सेना ने क्षत्रिय युवकों के बीच संगठन का काम शुरू किया. साल 2006 में लोकेंद्र सिंह कालवी ने करणी सेना की स्थापना की और संगठन का नाम करणी माता के नाम पर रखा. करणी माता के अनुयायी उन्हें देवी हिंगलाज का रूप मानते हैं. करनी सेना के समर्थकों का मानना है कि वह संस्कृति की रक्षा के लिए बना संगठन है. संगठन के संस्थापक लोकेंद्र कालवी का मार्च 2023 में निधन हो गया था. पद्मावत के विरोध और राजस्थान पुलिस से मुठभेड़ में कुख्यात गैगस्टर आनंदपाल सिंह के मारे जाने पर सवाल जैसे मुद्दों को लेकर संगठन की बात देश के दूसरे हिस्से में पहुंची और उसका विस्तार हुआ.


एक संगठन के कई हिस्से, कौन है असली करणी सेना?


जातीय गौरव के ऐतिहासिक और भावनात्मक मुद्दों को लेकर जमीनी स्तर पर सक्रिय पहले संगठन के तौर पर मशहूर करणी सेना को युवाओं का साथ मिला. संगठन को बढ़ाने के लिए बाद में उसमें हिंदुत्व और भारतीयता की बातें भी जोड़ी गईं, लेकिन कई बड़े संगठनों की तरह इसके भी कई हिस्से बने जो कई मुद्दों पर आपस में जुड़े और फिर टूटे. इसके साथ ही बड़ा सवाल खड़ा होता रहा कि कौन है असली करणी सेना? राजपूत समाज के संगठनों के बारे में जानने वालों का कहना है कि अपने विकास और विस्तार के दौरान करणी सेना तीन हिस्सों में बंट गया. अब ये तीनों धड़े खुद के असली संगठन होने का दावा कर रहे है. इन सबका विवाद सामाजिक पंचायतों से बढ़कर कोर्ट कचहरी तक पहुंच चुका है. 


तीनों संगठनों के बीच तकरार, कालवी वाली करणी सेना का दावा मजबूत 


इन तीनों संगठनों में एक श्री राजपूत करणी सेना है. इसके संरक्षक लोकेन्द्र सिंह काल्वी थे. दूसरी श्री राजपूत करणी सेवा समिति है. इसके नेता अजीत सिंह मामडोली हैं. वहीं, तीसरी श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना है. सुखदेव सिंह गोगामेड़ी इसी के प्रदेश अध्यक्ष थे. करणी सेना से जुड़े महिपाल सिंह मकराना का दावा है कि चूंकि लोकेंद्र सिंह कालवी ने इस संगठन को खड़ा किया है. इसलिए श्री राजपूत करणी सेना ही असली संगठन है. वहीं बाकी दोनों संगठनों का अलग-अलग दावा है. श्री करणी सेना सेवा समिति के मामडोली का दावा है कि उनका संगठन ही मूल संगठन है. उनके संगठन ने अपनी स्थापना के 11 साल पूरे कर लिए हैं. अपने दावे के साथ वह कोर्ट तक गए हैं. वहीं, श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के सुखदेव सिंह गोगामेड़ी जातीय अस्मिता के साथ हिंदुत्व की बात भी करते हैं. 


किन मुद्दों पर राय बंटी, किन मुद्दों पर साथ जुड़े तीनों करणी सेना


करणी सेना के नाम से चर्चित तीनों संगठनों में पद्मावत और जोधा अकबर समेत बॉलीवुड की कई फिल्मों के उग्र विरोध पर राय बंटती दिखी. इनके बीच जातीय आरक्षण को लेकर भी विरोध सामने आया. इसके अलावा राजपूत समाज के बेरोजगार युवकों के हितों के संरक्षण को लेकर भी इनके बीच राय बंटी. इससे उलट राजपूत समाज के इतिहास, गौरव, किलों और महलों के संरक्षण, राजस्थान से बाहर संगठन के विस्तार, हिंदुत्व के मुद्दे, युवाओं पर केंद्रित रहने, परस्पर सहयोग और कुछेक राजनीतिक खासकर राजपूत जाति से जुड़े मुद्दे पर एक साथ खड़े हो जाते हैं.