Iran vs Pakistan: गाजा का युद्ध हो या सीरिया के लड़ाके, लेबनान में हिजबुल्ला की मदद करना हो या इराक और पाकिस्तान पर मिसाइल दागना... तमाम संघर्षों में ईरान का नाम बार-बार आने लगा है. इसके पीछे की वजह क्या है? दशकों से ईरान मिडल ईस्ट में अपने जैसी सोच वाले लड़ाकू समूहों की मदद करता आया है. पड़ोसियों की तरह ईरान भी सशस्‍त्र अलगाववादी आंदोलनों और आतंकवादी समूहों से जूझता रहा है. 1979 की क्रांति ने ईरान को शिया मुस्लिम धर्मतंत्र बना दिया. तब से वह अलग-थलग पड़ गया और खुद को घिरा हुआ महसूस करता रहा है. ईरान के सबसे बड़े दुश्मन हैं अमेरिका और इजरायल. ईरानी नेताओं ने बार-बार इजरायल के विनाश की कसमें खाई हैं. ईरान को फारस की खाड़ी वाले इलाके का सबसे ताकतवर देश भी बनना है, वहां अभी सऊदी अरब उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा है. ईरान का सऊदी और अन्‍य सुन्नी मुस्लिम अरब पड़ोसियों से अक्सर पंगा रहा है.


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ईरान का साथ देने वाले कम हैं, इसलिए उसने दूसरा रास्ता चुना. ऐसे तमाम आंदोलनों को पाला-पोसा, हथियार दिए और दिशा तक दिखाई जो ईरान के दुश्मनों को निशाना बनाते हैं. सीरिया और इराक में ईरान ने जरूर सेना उतारी लेकिन अधिकतर दुश्मनों से लड़ने के लिए प्रॉक्सी का इस्तेमाल किया. ईरानी नेता अपने तरीके को फारवर्ड डिफेंस की रणनीति बताते हैं. उनका तर्क है कि खुद को बचाने के लिए ईरान का सीमाओं से परे जाकर कार्रवाई करना जरूरी है.


अपनी लड़ाई खुद नहीं लड़ता ईरान


अपनी ताकत और प्रभुत्‍व दिखाने के लिए ईरान सीधे अमेरिका या उसके सहयोगियों से टक्कर नहीं लेता. उससे तगड़ी जवाबी कार्रवाई या फिर युद्ध का खतरा है. ईरान परमाणु हथियार बनाकर अपनी कमजोरियां दूर करना चाहता है. इससे वह पाकिस्तान और इजरायल की लीग में खड़ा हो जाएगा और सऊदी अरब से आगे निकल जाएगा. लेकिन अब तक उसके न्‍यूक्लियर प्रोग्राम से एक भी बम नहीं बन सका है.


ईरान प्रॉक्‍सी ताकतों के जरिए अपने दुश्मनों के लिए परेशानी खड़ी करता है. अगर ईरान पर हमले की सूरत बने तो इन्‍हीं प्रॉक्‍सी के जरिए दुश्मन को और परेशान किया जाता है. ईरान ने इजरायल पर हमास के 7 अक्टूबर वाले हमले में शामिल होने से इनकार किया था जिसमें करीब 1200 लोग मारे गए. लेकिन ईरानी नेताओं ने उस हमले को एक उपलब्धि भी बताया और धमकी दी कि अगर गाजा में हमास के खिलाफ युद्ध जारी रहा तो वह अपने रीजनल नेटवर्क के जरिए इजरायल के खिलाफ कई मोर्चे खोल देगा.



लेबनान, यमन, गाजा.. हर जगह ईरान का दखल


ईरान का सबसे ताकतवर प्रॉक्‍सी है हिजबुल्ला जिसकी लेबनान में तूती बोलती है. अस्सी के दशक में ईरान की मदद से हिजबुल्ला का जन्म खासतौर पर दक्षिणी लेबनान से इजरायली कब्जे को हटाने की लड़ाई के लिए हुआ. लेबनान में एक राजनीतिक दल के रूप में मौजूद हिजबुल्ला ने इजरायल के साथ कई युद्ध लड़े हैं, बॉर्डर पर अक्सर झड़प हुई हैं. 7 अक्टूबर 2023 वाले हमले के बाद, हिज्बुल्लाह और इजरायल के बीच लगातार गोलीबारी हुई है लेकिन हिजबुल्ला पूरी ताकत से युद्ध में नहीं कूदा.


हूती आंदोलन ने करीब दो दशक पहले यमन में सरकार के खिलाफ विद्रोह शुरू किया. कभी छोटे-मोटे बागी रहे हूतियों को ईरान ने खुफिया मिलिट्री मदद दी. 2014-15 में हूतियों ने यमन के अधिकतर हिस्से पर कब्जा कर लिया था. यमन सरकार की तरफ से सऊदी के नेतृत्‍व में बने गठबंधन की सिविल वॉर में एंट्री हुई. 2022 से वहां प्रभावी सीजफायर है और उत्‍तर-पश्चिमी यमन और उसकी राजधानी सना हूतियों के कब्‍जे में है.


गाजा में युद्ध शुरू होने के साथ ही हूतियों ने फलस्‍तीनियों का साथ देते हुए अभियान शुरू किया. इजरायल पर मिसाइलें और ड्रोन दागे गए. स्‍वेज नहर को आने-जाने वाले तमाम जहाजों को हूतियों ने निशाना बनाया और ग्लोबल शिपिंग को तगड़ा नुकसान पहुंचाया है. हूतियों की ताकत का असर दुनिया पर पड़ने लगा तो अमेरिका और ब्रिटेन ने सहयोगियों की मदद से यमन में हूती ठिकानों पर बमबारी शुरू की. 


प्रॉक्‍सी के जरिए लड़ने में माहिर ईरान ने फिर इराक, सीरिया और पाकिस्तान में खुद हमला क्‍यों किया?


पूरे मिडल ईस्‍ट में तनाव बढ़ने से ईरान के लिए भी खतरा बढ़ा है. पिछले महीने एक अलगाववादी संगठन ने एक पुलिस स्टेशन पर हमला किया जिसमें 11 लोग मारे गए. सीरिया में दो सीनियर ईरानी कमांडरों की हत्‍या कर दी गई, ईरान ने दोष इजरायल पर मढ़ा. इस महीने केरमान में हुए आत्मघाती धमाकों में लगभग 100 लोग मारे गए. 1979 में इस्‍लामिक रिपब्लिक की स्थापना के बाद यह सबसे बड़े आतंकी हमलों में से एक रहा. जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली.



ईरानी एनालिस्ट्स का कहना है कि सरकार अपनी ताकत का प्रदर्शन करना चाहती है. नजर उन चरमपंथियों को रिझाने पर है जो ईरानी हुकूमत के समर्थन में हैं. इजरायली हमलों के बाद चरमपंथी नाराज थे. ईरान ने आक्रमण का रास्ता चुना. ईरान ने इसी हफ्ते कहा कि उसने सीरिया में इस्लामिक स्टेट पर मिसाइलें दागीं. उत्तरी इराक में इजरायल के कथित खुफिया बेस को निशाना बनाया. इराकी सरकार ने कहा कि उस इमारत का इजरायल से कोई लेना-देना नहीं था. ईरान ने पाकिस्तान पर भी मिसाइलें दागीं.


मिडल ईस्‍ट की लड़ाई में पाकिस्तान क्‍यों पिसा


पाकिस्तान पर ईरानी हमले का केस थोड़ा अलग है. जैश-अल-अदल नाम का अलगाववादी समूह ईरान और पाकिस्तान के टुकड़े कर बलूचों के लिए अलग देश बनाना चाहता है. यह समूह बॉर्डर के दोनों तरफ मौजूद है. पिछले महीने ईरान के पुलिस स्टेशन पर हमले की जिम्मेदारी भी इसी संगठन ने ली थी. ईरान और पाकिस्तान, दोनों ने एक-दूसरे पर आतंकियों को बॉर्डर पार करने से रोकने में नाकाम करने के आरोप लगाए हैं.



ईरान ने कहा कि उसने पाकिस्तान में जैश-अल-अदल के ठिकानों को निशाना बनाया. हालांकि पाकिस्तान ने कहा कि उसके नागरिक मारे गए. गुरुवार को पाकिस्तान ने जवाबी हमले किए और कहा कि वह ईरान में आतंकी ठिकानों को टारगेट कर रहा है.


पाकिस्तान और ईरान के रिश्ते अमूमन दोस्ताना रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान के भीतर हमला कर ईरान ने उस दोस्ती के रिश्ते को बुरी तरह चोट पहुंचाई है. पहले से ही काफी अशांति है, ऐसे में एक भी गलत फैसला पूरे क्षेत्र के लिए बड़ा खतरनाक साबित हो सकता है.