Goa Liberation: गोवा को पुर्तगाली शासन के 450 वर्षों के कब्जे से भारतीय सशस्त्र बलों ने 19 दिसंबर, 1961 को मुक्ति दिलवाई थी. यानी 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के 14 साल बाद तक गोवा पर पुर्तगालियों का कब्जा बना हुआ था. भारत सरकार की ओर से कई दौर की राजनयिक वार्ताओं के बावजूद पुर्तगालियों ने गोवा छोड़ने से इनकार कर दिया था. गोवा की मुक्ति के लिए जन आंदोलन के बढ़ते दबावों के बाद भारत सरकार को 'ऑपरेशन विजय' नामक सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी और गोवा भारत का हिस्सा बना. 36 घंटे के इस ऑपरेशन के जरिए भारतीय सेना ने दमन और दीव को भी पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त कराया था. इस दिन की याद में हर साल 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस मनाया जाता है. गोवा ऑपरेशन पहली बार था जब नौसेना त्रि-सेवा अभियानों के एक हिस्से के रूप में शामिल हुई थी. तत्कालीन सैन्य कार्रवाई की याद में भारतीय नौसेना ने सोमवार (18 दिसंबर) को आधुनिकतम स्वदेशी स्टील्थ-गाइडेड मिसाइल विध्वंसक आईएनएस मोरमुगाओ का एक मॉडल प्रमोद सावंत सरकार को उपहार दिया है. आइए, गोवा मुक्ति दिवस का पूरा इतिहास जानने की कोशिश करते हैं.


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15 जुलाई 1583 को गोवा के कुंकली में पुर्तगालियों के खिलाफ पहला विद्रोह
 
गोवा मुक्ति संग्राम, गोवा मुक्ति आंदोलन या गोवा मुक्ति संघर्ष की शुरुआत 15 जुलाई 1583 को कुंकली में पुर्तगालियों के खिलाफ पहले विद्रोह के साथ हुई. कुंकली में धर्म-परिवर्तन कराने आए पांच पादरियों की स्थानीय लोगों ने हत्या कर दी.इसका बदला लेने के लिए पुर्तगालियों ने धोखे से बातचीत के लिये कुंकली के 15 लोगों को बुलाया और मार डाला. इन लोगों को गोवा के स्वतंत्रता संग्राम का पहला बलिदानी माना जाता है. इसके बाद 13 दिसंबर 1788 को पिंटो विद्रोह के 47 नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और कई लोगों को फांसी पर लटका दिया गया. गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन 1755 से लेकर 1912 तक करीब 150 साल तक राणे समुदाय ने अनेकों बार पुर्तगाली शासकों से सशस्त्र संघर्ष किया. हालांकि उन्हें हर बार बर्बर तरीके से कुचला गया. 1928 के बाद डॉ. टी बी कुन्हा की अगुवाई में गोवा कांग्रेस ने सत्याग्रह का रास्ता अपनाया.


गोवा मुक्ति संग्राम के नायक डॉ. टीबी कुन्हा और डॉ. राम मनोहर लोहिया


पुर्तगालियों के कब्जे से गोवा को आजाद कराने के लिए 19वीं शताब्दी में ही छोटे-छोटे स्तरों पर संघर्ष शुरू हो गया था. मुंबई में साल 1928 में गोवा के राष्ट्रवादी नेताओं ने 'गोवा कांग्रेस समिति' का गठन कर संगठित तौर पर गोवा मुक्ति अभियान चलाया. गोवा के राष्ट्रवाद का जनक कहे जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी डॉ.टी.बी.कुन्हा थे समिति के अध्यक्ष बनाए गए थे. इस समिति ने गोवा की मुक्ति के लिए सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से जन जागरण का रास्ता अपनाया. यह अभियान लगभग दो दशक तक चलता रहा, लेकिन पुर्तगालियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. प्रमुख समाजवादी नेता डॉ.राम मनोहर लोहिया 1946 में गोवा पहुंचे. 18 जून 1946 को बीमारी की हालत में डॉ. राम मनोहर लोहिया ने पुर्तगाली प्रतिबंध को पहली बार चुनौती दी. नागरिकों की सभा नहीं करने के नियमों को तेड़ते हुए लोहिया ने वहां 200 लोगों की एक जनसभा बुलाई और उसे संबोधित किया. पुर्तगाली दमन के विरोध में आवाज उठाने को लेकर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. लोहिया की रिहाई की मांग को लेकर गोवा की जनता सड़कों पर उतर गई. पुर्तगालियों ने पांच साल तक गोवा आने पर प्रतिबंध की शर्त के सााथ लोहिया को छोड़ दिया. इसके बाद गोवा की मुक्ति का संघर्ष और तेज हो गया.


क्या है ऑपरेशन विजय, तीनों सेना को क्यों करनी पड़ी संयुक्त कार्रवाई 


आजादी के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने पुर्तगालियों से कई बार गोवा और उसके हिस्से दमन और दीव को छोड़ने के लिए कहा. पुर्तगालियों ने उनकी बात नहीं मानी. दबाव बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने 11 जून 1953 को पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में अपने दूतावास बंद कर दिए. फिर भी पुर्तगालियों ने गोवा छोड़ने में कोई सुगबुगाहट नहीं की. 15 अगस्त 1955 को लगभग पांच हजार आम लोगों ने गोवा में घुसने की कोशिश की. पुर्तगाल की पुलिस ने निहत्थे सत्याग्रहियों पर गोली चला दी और 30 लोगों की जान चली गई. इसके बाद 1 नवम्बर 1961 को भारतीय सेना के तीनों अंगों को तैयारी के लिए कहा गया. तैयारियों के बाद भारतीय सेना ने दो दिसंबर को गोवा मुक्ति के लिए अभियान शुरू कर दिया. 1819 दिसंबर को आर्मी, नेवी और एयरफोर्स तीनों ने मिलकर 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया. एयरफोर्स ने पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की. नेवी ने समुद्र में घेराबंदी की. वहीं, इंडियन आर्मी के 30 हजार जवानों के कूच करने की बात सुनकर पुर्तगालियों के कुल 3300 सैनिकों का हौसला पस्त हो गया. उन्हें बिना शर्त अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी. भारत में पुर्तगाल के गवर्नर जनरल मैन्यु आंतोनियो सिल्वा ने 19 दिसंबर 1961 की रात साढ़े आठ बजे समर्पण सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिए. इसके बाद गोवा मुक्त हो गया और पुर्तगालियों को अपने देश वापस लौटना पड़ा.


गोवा में चुनाव, जनमत संग्रह, केंद्रशासित प्रदेश और पूर्ण राज्य का दर्जा


पुर्तगालियों से मुक्ति के बाद में गोवा में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव करवाए गए. 20 दिसंबर, 1962 को दयानंद भंडारकर गोवा के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने. इसके बाद महाराष्‍ट्र के नजदीक होने के चलते गोवा के विलय की चर्चा जोरों पर थी. हालांकि, इस मसले पर 1967 में हुए जनमत संग्रह में गोवा के लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश के रूप में रहना पसंद किया. गोवा को इसके दो दशक बाद 30 मई, 1987 को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला. इसलिए भारतीय गणराज्य के 25वें राज्य गोवा का स्थापना दिवस हर साल 30 मई को मनाया जाता है. वहीं, 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस मनाया जाता है. देश के लगभग सभी दलों के नेता इस अवसर पर गोवावासियों को शुभकामनाएं देते हैं. वहीं, गोवा में स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने के लिए त्योहार मनाया जाता है.