Heatwave : प्राकतिक आपदा आती है तो लोगों का ध्यान NDRF यानी नेशनल डिजास्टर रेस्पांस फोर्स की ओर जाता है. उस समय नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) और डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट यानी आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 (Disaster Management Act) की भी जमकर चर्चा होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस एक्ट में लू यानी हीटवेव (Heatwave) का जिक्र नहीं है. जिससे हुई मौतों ने 2024 के गर्मी के सीजन में हाहाकार मचा दिया. मई महीने के आखिरी दिनों में बनारस के मणिकर्णिका घाट में शवों का ढेर लग गया. 


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Disaster Management ACT​: डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट में लू का जिक्र ही नहीं


डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट (DM Act) के तहत 1999 में ओडिशा में आए सुपर साइक्लोन और 2004 की सुनामी को DM एक्ट के तहत नोटिफआई (अधिनियमित) किया गया था. इस कवायद के तहत किसी प्राकतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न होने वाली आपदा, दुर्घटना, आपदा या गंभीर घटना के मामलों पर एक्शन लिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप किसी की मृत्यु (जनहानि), संपत्ति का नुकसान या पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है.


2024 की गर्मियों में देश के अधिकांश प्रदेशों से हीटस्ट्रोक की वजह से मौतों के कई मामले सामने आए. लू भी एक प्राकतिक आपदा है, भले ही इसे कुछ लोग मैन मेड डिजास्टर बताएं लेकिन अगर सरकारी दस्तावेजों में हीटवेव नोटिफाई नहीं होगी तो भला इससे पीड़ित लोगों और मृतकों के परिवारजनों को उचित सरकारी मदद कैसे मिल सकेगी?


'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के कई हिस्सों में चल रही अत्यधिक गर्मी ने एक बार फिर से आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत अधिसूचित आपदाओं में से एक के रूप में हीटवेव को शामिल करने पर चर्चा फिर से शुरू कर दी है. 


अगर इस एक्ट के तहत अब लू यानी हीटवेव को शामिल कर दिया जाएगा तो सभी राज्यों को इससे पीड़ितों और प्रभावित लोगों को मुआवजा और राहत देने के लिए अपने आपदा प्रतिक्रिया कोष का उपयोग करने और हीटवेव के प्रभाव के प्रबंधन के लिए कई अन्य गतिविधियां करने की अनुमति मिल जाएगी. अभी ऐसा नहीं है इसलिए वर्तमान में राज्यों को हीटवेव के संभावित नुकसान से बचने के लिए अपने स्वयं के धन का उपयोग करने की जरूरत पड़ती है. इस वजह से बहुत से लोगों को मुआवजा नहीं मिल पाता है.


अधिसूचित आपदाएं क्या हैं?


DM एक्ट के तहत ओडिशा के सुपर साइक्लोन और 2004 में आई भयावाह सुनामी को शामिल किया गया था. ये एक्ट किसी आपदा (प्राकृतिक या मानव निर्मित) की वजह से होने वाले नुकसान को रोकने और उसके कारण हुई क्षति की भरपाई करने के काम आता है. अक्सर इसमें ऐसी आपदाएं शामिल की जाती हैं, जिनका मुकाबला करने में लोग और समुदाय समर्थ नहीं होते हैं. 


अगर कहीं कोई अप्रत्याशित घटना घटकी है, तो वहां पर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के प्रावधान लागू किए जा सकते हैं. इसके प्रावधान राज्यों को इस कानून के तहत स्थापित किए गए दो फंडों से धन निकालने की अनुमति देते हैं - 1. राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) और 2. राज्य स्तर पर राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ). राज्य पहले एसडीआरएफ में उपलब्ध धन का उपयोग करते हैं और केवल अगर आपदा की भयावहता उसके बस के बाहर यानी बहुत ज्यादा होती है, तब राज्य एनडीआरएफ से फंड की मांग करते हैं.


वित्तीय वर्ष 2023-24 में केवल दो राज्यों ने एनडीआरएफ से पैसा निकाला


पिछले साल की बात करें तो हिमाचल प्रदेश और सिक्किम ने ही अपने राज्य में आपदा आने के बाद नेशनल डिजास्टर कोटे से फंड मांगा था. हिमाचल में भारी बारिश से भू स्लखन की भयावाह घटनाएं सामने आई थीं. राज्य के कई हिस्सों में बाढ़ के हालात थे. वहीं सिक्किम में भी कुदरत के कहर से काफी नुकसान पहुंचा था.


राज्य अलॉट हुई धनराशि SDRF से निकासी NDRF से निकासी
हिमाचल  400.08 करोड़ 180.1 करोड़ 787.25 करोड़
सिक्किम 49.6 करोड़ 22.4 करोड़  81.89 करोड़

 

लू को अधिसूचित आपदाओं में क्यों शामिल नहीं किया गया?


भारत में लू चलना कोई नई बात नहीं है. बीते कई दशकों से देश के उत्तरी और मध्य भारत के बड़े हिस्सों में भीषण गर्मी से मौते होती आई हैं. साल 2005 तक देश के प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं ने इसे आपदा के रूप में नहीं देखा था. क्योंकि गर्मियों के दौरान लू चलना एक सामान्य घटना थी और यह कोई असामान्य मौसम संबंधी घटना नहीं थी. अब समय बदला है तो अब हीटवेव से होने वाली मौतों को भी इस अधिनियम के तहत नोटिफाई करने की चर्चा हो रही है.


क्या एक्ट ऑफ गॉड के तहत प्रशासन मुआवजा देने से बच सकता है?


कुछ समय पहले मुंबई के घाटकोपर में होर्डिंग गिरी थी. उस घटना में 17 लोगों की मौत हुई थी. उस मामले में बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट से कहा कि ये एक्ट ऑफ गॉड (Act of God) है. क्योंकि एक्ट ऑफ गॉड में ऐसी स्थितियों को शामिल किया जाता है, जो इंसानों के काबू से बाहर हों. जैसे भूकंप, बाढ़ या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा. वहीं 30 अक्टूबर 2022 में गुजरात के मोरबी में हुए पुल हादसे (मोरबी नामक शहर के मच्छु नदी में बने पूल के टूटने से) में करीब 150 लोगों की मौत हो गई थी. उस दौरान भी कोर्ट के सामने रिनोवेशन करने वाली कंपनी ओरेवा के एक मैनेजर ने इस पूरी त्रासदी को Act of God बता दिया था, यानी कि ऐसी घटना जहां पर स्थिति इंसानों के हाथ में नहीं रहती और प्रकृति अपना खेल करती है.


क्या Act of God के नाम पर कोई भी आरोपी खुद को सजा से बच सकता है? ऐसे ही कुछ मुद्दों को लेकर कई साल पहले बनी फिल्म ‘OMG-ओह माई गॉड’ में इस टर्म का खूब जिक्र हुआ था क्योंकि परेश रावल के निभाए किरदार कांजी लालजी मेहता की दुकान भूकंप में तबाह हो जाती है, लेकिन बीमा कंपनी उन्हें बीमा देने से इसलिए मना करती है क्योंकि ये एक्ट ऑफ गॉड है. 


कई बार ऐसे मामले देश की अदालतों की चौखट तक पहुंचते हैं तो कहीं हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट खुद ऐसे मामलों का संज्ञान लेते हैं. लेकिन अब समय आ गया है कि सरकारें और प्रशासन दोनों इस दिशा में सोचने की जरूरत है.


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