ISRO Mission History: कभी रॉकेट के पुर्जों को साइकिल पर लादकर ले जाने वाला भारत अंतरिक्ष में इंसान भेजने को तैयार है. मिशन गगनयान के चारों एस्‍ट्रोनॉट्स का परिचय मंगलवार को पूरी दुनिया से कराया गया. इतिहास रचने की दहलीज पर खड़े उन चार लोगों के नाम हैं- प्रशांत बालकृष्‍णन नायर, अंगद प्रताप, अजीत कृष्‍णन और शुभांशु शुक्ला. विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उनके सूट पर एस्ट्रोनॉट विंग्‍स लगाए. इनमें से 2-3 पायलट्स को गगनयान के लिए चुना जाएगा. चारों पायलट्स रूस से सालभर लंबी ट्रेनिंग लेकर लौटे हैं. अभी वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ मिशन की पेचीदगियों से रूबरू हो रहे हैं. मिशन गगनयान भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का सबसे गौरवशाली अध्याय होगा. लगभग छह दशक के भीतर, भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में शानदार प्रगति की है. आज ISRO की गिनती दुनिया की छह सबसे बड़ी स्पेस एजेंसियों में होती है.


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पिछले साल हम चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश बने. ISRO का आदित्य-L1 मिशन सूर्य की स्टडी कर रहा है. दूसरे देशों के 400 से ज्‍यादा सैटेलाइट्स लॉन्‍च कर चुके ISRO ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए सालों-साल संघर्ष किया है. पढ़‍िए, कहानी भारत के गौरव ISRO की.



ISRO का इतिहास : साइकिल पर रॉकेट के पुर्जे


भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत दो वैज्ञानिकों- होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई की जिद और लगन के चलते हुई. 1950 में परमाणु ऊर्जा विभाग का गठन हुआ, भाभा उसके सचिव बने. अंतरिक्ष के क्षेत्र में रिसर्च के लिए फंडिंग यही विभाग देता था. साराभाई को कुछ बड़ा करना था. उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को स्‍पेस रिसर्च के लिए अलग विभाग बनाने का सुझाव दिया. साराभाई की पहल पर 1962 में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) का गठन हुआ. विक्रम साराभाई को 'भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक' कहा जाता है. 21 नवंबर 1963 को भारत ने थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से पहला रॉकेट लॉन्च किया. उस साउंडिंग रॉकेट के पुर्जे साइकिल से लॉन्च स्टेशन तक पहुंचाए गए थे. इसरो का जिक्र होते ही बरबस साइकिल पर लदे रॉकेट का फोटो जेहन में आ जाता है.


साइकिल पर रॉकेट के पुर्जे ले जाते INCOSPAR के वैज्ञानिक

रॉकेट लॉन्च टीम में रहे पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी आत्मकथा Wings of Fire में उस दौर की मुश्किलों का जिक्र किया है. वह बताते हैं कि कैसे तैयारी शुरू होने से पहले INCOSPAR को एक स्थानीय चर्च से जमीन लेनी पड़ी और ग्रामीणों को स्थानांतरित करना पड़ा. फिर, वे रॉकेट पार्ट्स को साइकिल के जरिए लॉन्च पैड तक ले जाते थे. 


अगले कुछ साल में 'रोहिणी' नाम से ऐसे कई और रॉकेट्स डिवेलप किए गए. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, 15 अगस्त, 1969 को INCOSPAR की जगह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने ले ली. ISRO ने पहली बड़ी उपलब्धि 19 अप्रैल, 1975 को हासिल की जब उसने 'आर्यभट्ट' नाम के सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया. यह पूरी तरह से भारत में डिजाइन और विकसित किया गया पहला सैटेलाइट था. दो साल बाद, भारत ने टेलीकम्युनिकेशन के लिए पहला सैटेलाइट बना लिया. 1979 में भारत ने पहला रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट 'भास्कर-I' लॉन्च किया.


ISRO की प्रमुख उपलब्धियां


1980 में हमने अपना पहला सैटेलाइट लॉन्च वीइकल (SLV-3) बनाया. इसमें 4 स्टेज वाला रॉकेट लगा था जो 40 किलोग्राम तक का पेलोड ले जा सकता था. इसकी मदद से ISRO ने रोहिणी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजा. 


1981: रोहिणी सैटेलाइट RS-D1 को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया गया.


1981 में भारत ने जब अपना छठा सैटेलाइट APPLE लॉन्च किया था, तब इसे लॉन्‍च पैड तक बैलगाड़ी से ले जाना पड़ा था

1982: कम्युनिकेशन सैटेलाइट INSAT-1ए लॉन्च किया गया.


1984 में राकेश शर्मा अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले भारतीय बने. वह रूस के सोयुज टी-11 में बैठकर गए थे.


1987: ऑगमेंटेड सैटेलाइट लॉन्च वीइकल (ASLV) ASLV-D1 को SROSS-1 सैटेलाइट के साथ लॉन्च किया गया लेकिन मिशन फेल रहा.


1988: पहला भारतीय रिमोट सेंसिंग (IRS) सैटेलाइट IRS-1A के साथ लॉन्च किया गया.


1991: दूसरा रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट IRS-1बी लॉन्च किया गया.


1992: SROSS-C सैटेलाइट ले जाने वाले ASLV-D3 के साथ ASLV का पहला सफल लॉन्‍च हुआ.


1993: पोलर सैटलाइट लॉन्‍च वीइकल (PSLV) को पहली बार PSLV-D1 के साथ लॉन्‍च किया गया लेकिन इसे कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका.


1994: पहले अंतरिक्ष यान IRS-P2 ने PSLV-D2 के साथ सफलतापूर्वक कक्षा में उड़ान भरी.


1999: भारत के PSLV के दूसरे ऑपरेशनल लॉन्च, PSLV-C2 में तीन सैटेलाइटों - मुख्य पेलोड के रूप में IRS-पP4 और सहायक पेलोड के रूप में कोरियाई KITSAT-3 और जर्मन DLR-TUBSAT को कक्षा में स्थापित किया.


2001 के 2007 के बीच TES, CARTOSATs, GSATs, EDUSAT और INSAT सहित कई सैटेलाइट लॉन्च किए गए.


2008: भारत का पहला मानवरहित चंद्रमा मिशन 'चंद्रयान-1' सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया. इसने सभी प्रमुख मिशन उद्देश्यों को सफलतापूर्वक पूरा किया. सैटेलाइट ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक परिक्रमाएं कीं.  अगस्त 2009 में अंतरिक्ष यान से संपर्क टूट गया.


2009: हर मौसम में काम करने की क्षमता वाला रडार इमेजिंग सैटेलाइट RISAT-2, पृथ्वी की तस्वीरें लेने के लिए लॉन्च किया गया.


2011: RESOURCESAT-2, RESOURCESAT-1 (2003) का फॉलो-ऑन मिशन था. यह इसरो का 18वां रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट है. इसका मकसद ग्लोबल यूजर्स को दी जाने वाली रिमोट सेंसिंग डेटा सेवाओं को जारी रखना है.


2012: रडार सैटेलाइट-1 (RISAT-1) एक अत्याधुनिक माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट है. यह हर मौसम की स्थिति में दिन और रात, दोनों समय सतह की विशेषताओं की इमेजिंग करने में सक्षम बनाता है.


2013: PSLV-C20, C22 और C25 को विभिन्न सैटेलाइटों के साथ लॉन्च किया गया. इनमें भारत का पहला डेडिकेटेड नेविगेशनल सैटेलाइट IRNSS-1A भी शामिल है. PSLV-C25 मिशन को मंगल ऑर्बिटर मिशन स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी की अत्यधिक अण्डाकार कक्षा में लॉन्च करने के लिए ऑप्टिमाइज किया गया था. 2014 में ISRO ने मंगलयान लॉन्च किया था जो 2014 में मंगल की कक्षा में दाखिल हुआ. 


2014: आठवीं GSLV उड़ान, GSLV-D5 लॉन्च की गई. कई PSLV लॉन्च भी हुए.


2015: PSLV-C30 ने ASTROSAT को कक्षा में लॉन्च किया. ASTROSAT भारत की पहली डेडिकेटेड मल्टी-वेवलेंथ स्पेस ऑब्जर्वेटरी है.


2016: भारत ने भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS-1E, 1F and 1G) के अपने पांचवें, छठे और सातवें सैटेलाइटों को लॉन्च किया. Cartosat-2 सैटेलाइट भी लॉन्च किया गया. INSAT-3DR, GSAT-18 और SCATSAT-1 भी लॉन्च किए गए.


2017: इसरो ने एक लॉन्चर से 104 सैटेलाइट लॉन्च करने का रिकॉर्ड बनाया.


2018: एक साथ 31 सैटेलाइट लॉन्च किए गए. GSAT 6A, GSAT 7A, HysIS और IRNSS-1I जैसे सैटेलाइट लॉन्च हुए. भारत का सबसे भारी संचार सैटेलाइट, GSAT 11 भी फ्रेंच गुयाना से लॉन्च किया गया था.


2019: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग के लक्ष्‍य वाले पहला अंतरिक्ष मिशन 'चंद्रयान -2' को 22 जुलाई को लॉन्च किया गया. यह घरेलू तकनीक से चंद्रमा की सतह का पता लगाने वाला पहला भारतीय मिशन भी है.


2020: GSAT-30, EOS-01 और CMS-01 लॉन्च किए गए.


2021: 2021 में, इसरो ने UNITYsat और सतीश धवन SAT (SDSAT) सैटेलाइट लॉन्च किए हैं.


2022: इसरो के पहले छोटे सैटेलाइट लॉन्‍च वीइकल (SSLV) ने EOS-02 और AzaadiSAT को लेकर अगस्त के पहले सप्ताह में श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी. हालांकि, यह प्रयोग असफल रहा.


2023 में ISRO ने कई अहम मिशन को पूरा किया. 14 जुलाई 2023 को LVM 3 M4/चंद्रयान-3 मिशन सफलतापूर्वक लॉन्‍च हुआ. इसने 23 अगस्त की शाम को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की. ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बना. सितंबर में ISRO ने PSLV-C57 की मदद से आदित्य-L1 मिशन शुरू किया. यह सूर्य के बारे में तमाम जानकारियां जुटाने के लिए भेजा गया है. 


भारत अब 'गगनयान' के जरिए भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजना चाहता है. मंगल के लिए भी एक और मिशन लॉन्च करने की तैयारी है.


गगनयान मिशन क्‍या है


गगनयान उस स्पेसक्राफ्ट का नाम है जो अंतरिक्ष में भारतीयों की पहली उड़ान का सहारा बनेगा. इसे तीन एस्ट्रोनॉट्स को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है. ISRO के अनुसार, मिशन गगनयान को 2025 तक लॉन्च किया जा सकता है. इस मिशन के तहत, तीन सदस्यों का क्रू 400 किलोमीटर वाली कक्षा में 3 दिन तक रहेगा और सकुशल पृथ्वी पर वापस आ जाएगा.