Ramlila Maidan News: राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों के लिए मशहूर दिल्ली का रामलीला मैदान अब दशहरे पर रामलीला के मंचन और रावणदहन को लेकर चर्चा में कम ही आता है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले रविवार को विपक्षी दलों के इंडी गठबंधन के सहयोगी दलों के नेताओं के केंद्र सरकार के खिलाफ रैली से रामलीला मैदान फिर से सुर्खियों में है. दिल्ली और झारखंड के मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए यहां रैली बुलाई गई थी.


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इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जेपी की रैली


दिल्ली में अजमेरी गेट और तुर्कमान गेट के बीच 10 एकड़ क्षेत्रफल वाले रामलीला मैदान में एक लाख लोग खड़े हो सकने का दावा किया जाता है. हालांकि, दिल्ली पुलिस यहां 25 से 30 हजार लोगों के जुटने की क्षमता की बात कहती है. ब्रिटिश आर्मी के कैंप के लिए साल 1883 में बनाए गए इस रामलीला मैदान में आजादी के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ सबसे बड़ी रैली की थी.


आइए, किस्सा कुर्सी का में जानते हैं सन् 1975 का वो किस्सा जब इमरजेंसी के चलते अरेस्ट होने से पहले जयप्रकाश नारायण का आखिरी भाषण इसी रामलीला मैदान में हुआ था.


सिंहासन खाली करो कि जनता आती है... 


राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध ओजस्वी पंक्ति "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है" के साथ 25 जून 1975 को इसी रामलीला मैदान पर लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने विपक्षी नेताओं की संयुक्त रैली की थी. इस विशाल रैली में उन्होंने ऐलान कर दिया था कि इंदिरा गांधी की तानाशाही सरकार को उखाड़ फेंका जाए. विपक्षी दलों की साझा रैली से डरी, सहमी और घबराई इंदिरा गांधी सरकार ने 25 -26 जून 1975 की बीच रात को ही आपातकाल की घोषणा कर दी. इसके साथ ही जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया था.


रामलीला मैदान में ही जेपी ने बनाई लोक संघर्ष समिति 


जून की दोपहरी में भीषण गर्मी से तप रही दिल्ली के रामलीला मैदान में 73 साल के जेपी लोगों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने अपने भाषण में सेना और पुलिस से सरकार के गलत फैसलों में साथ ना देने की अपील की. जेपी ने रामलीला मैदान में मंच पर ही लोक संघर्ष समिति का गठन कर मोरारजी देसाई को चेयरमैन बना दिया. उनके साथ नाना जी देशमुख महासचिव और अशोक मेहता कोषाध्यक्ष बनाए गए. रामलीला मैदान से कुछ किलोमीटर पर इंदिरा गांधी इलादाबाद हाई कोर्ट के फैसले की बौखलाहट में जेपी को जकड़ने की तैयारी में जुटी थीं. 


जेपी की रैली खत्म भी नहीं हुई और इंदिरा राष्ट्रपति भवन पहुंची


इंदिरा गांधी को लगता था कि जेपी उनकी सियासी जमीन को खिसकाना चाहते हैं. 'इमरजेंसी की इनसाइड स्टोरी' में कुलदीप नैयर ने लिखा है कि जेपी की रैली से पहले ही आपातकाल की पटकथा लिख दी गई थी. उधर रामलीला मैदान में जेपी की रैली खत्म भी नहीं हुई और इधर प्रधानमत्री इंदिरा गांधी सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंच गई थी. घंटों मीटिंग के बाद राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी.


तिहाड़ जेल में सुबह तक 200 कैदियों की जगह 


इसके पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन के कमरे में हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसी लाल, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ओम महता,और दिल्ली के एसपी सीआईडी वगैरह इकट्ठा थे. दिल्ली के उपराज्यपाल किशनचंद ने शाम के वक्त मुख्य सचिव जेके कोहली, भवानी मल और डीआईजी भिंडर के साथ एक बैठक की. इसके बाद मुख्य सचिव तिहाड़ जेल पहुंचे. उन्होंने जेल सुपरिटेंडेंट को बताया कि सुबह तक जेल में 200 कैदियों की जगह बनानी होगी. 


रात डेढ़ बजे जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया 


25 जून की आधी रात को आपातकाल के ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर के बाद 26 जून की सुबह छह बजे कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई गई थी. कुछ ही देर चली बैठक में गृह सचिव खुराना ने आपातकाल का घोषणापत्र कैबिनेट को सुनाया. रात डेढ़ बजे जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया था. कैद में रहते हुए जेपी की दोनों किडनी खराब हो गई. इंदिरा गांधी सरकार की नीतियों का विरोध कर रहे कई और नेताओं समेत हजारों लोगों को मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था.


पहली बार अदालत के कटघरे में थीं देश की प्रधानमंत्री


लोकसभा चुनाव 1971 में इंदिरा गांधी से हारने वाले समाजवादी नेता राज नारायण ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में केस दायर किया. उन्होंने इंदिरा गांधी पर सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया था. पहली बार कोई प्रधानमंत्री देश की अदालत के भीतर कटघरे में थी. इस मामले में 12 जून 1975 को जस्टिस जगमोहनलाल सिन्‍हा ने इंदिरा गांधी को दोषी करार दिया. हालांकि, 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर शर्तो के साथ स्‍टे लगा दिया. कोर्ट ने इंदिरा गांधी को पीएम बने रहने की इजाजत दे दी.


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देश में 21 महीनों तक जारी रहा सरकारी दमन चक्र


विपक्ष अब कुछ सुनने को तैयार नहीं था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी से गद्दी छोड़ने को कहा. 25 जून 1975 को रामलीला मैदान में भारी भीड़ जुटी. इंदिरा गांधी और उनके सलाहकार माहौल को समझ गए थे. उन्होंने उसी काली रात देश को आपातकाल और सेंसरशिप के हवाले कर नागरिक अधिकार छीन लिए. अगले 21 महीनों तक देश में सरकार का दमनकारी चक्र चलता रहा. 


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21 मार्च, 1977 को आधिकारिक रूप से आपातकाल हटा


काफी संघर्षों के बाद आखिरकार जनवरी 1977 में इंदिरा गांधी ने आम चुनाव कराने का फैसला किया. इसमें कांग्रेस बुरी तरह पिट गई. फरवरी 1977 में विपक्षी पार्टियों ने एक बार फिर रामलीला मैदान को ही जनता तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए चुना. जनता पार्टी का गठबंधन 345 सीटें जीतकर सत्‍ता में आ गया. 21 मार्च, 1977 को आधिकारिक रूप से आपातकाल हटा लिया गया. इसके बाद दिल्ली के दिल में इस बड़ी और खुली जगह को रैली जैसे बड़े आयोजन और आम जनता से सीधे संवाद के लिए पंसदीदा मैदान की पहचान मिल गई.


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