Maharashtra Assembly Election: महाराष्ट्र में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनाव को लेकर कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) तैयारियों में जुट गई है. लेकिन, इस बीच एनडीए (NDA) में शामिल बीजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. लोकसभा चुनाव में एनडीए को हुए नुकसान के बाद राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं. इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने एनसीपी नेता अजित पवार पर निशाना साधा है. आरएसएस ने दावा किया है कि एनसीपी के साथ गठबंधन से बीजेपी को फायदा की जगह नुकसान हुआ है. आरएसएस ने एक लेख में कहा है कि लोकसभा चुनाव परिणामों में बीजेपी का प्रदर्शन महाराष्ट्र में इसलिए खराब रहा, क्योंकि पार्टी ने अजित पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन किया.


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क्या एनसीपी से अलग होने जा रही बीजेपी?


टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि एनसीपी से गठबंधन की वजह से बीजेपी के पारंपरिक भगवा मतदाताओं को अलग-थलग कर दिया. अजित पवार पर हमला करके आरएसएस इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा को इस गठबंधन खत्म करने में मदद कर रही है. लोकसभा चुनावों में अपनी पार्टी की करारी हार के बाद एनसीपी प्रमुख अजित पवार को इस साल के अंत में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है.


लोकसभा चुनावों में एनसीपी लगभग खत्म हो गई. महाराष्ट्र में उसने जिन चार सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से केवल एक पर ही जीत दर्ज कर पाई. शरद पवार की पार्टी तोड़ने, उसका नाम और चुनाव चिह्न हासिल करने के बाद अजित पवार को बड़ा झटका लगा. हालांकि, चुनावी नतीजों के बाद अजित पवार ने कार्यकर्ताओं से 'अतीत' भूलकर आगे बढ़ने को कहा था, लेकिन ऐसा लग रहा है कि आरएसएस उन्हें ऐसा करने देने के मूड में नहीं है.


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विधानसभा चुनाव से पहले बढ़ गई मुसीबत


महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की शिवसेना के साथ मिलकर महायुति गठबंधन बनाया था. आम चुनाव उनके लिए पहली चुनावी परीक्षा थी और उन्होंने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 40 से ज्यादा सीट जीतने का लक्ष्य रखा था, लेकिन जब 4 जून को नतीजे घोषित हुए तो महायुति को भारी नुकसान हआ.


महायुति गठबंधन को 48 में से सिर्फ 17 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी-एसपी वाले विपक्षी एमवीए गठबंधन ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की. जबकि 28 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी ने 9 और 15 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली शिवसेना (शिंदे गुट) सिर्फ 7 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई. महायुति के खराब प्रदर्शन ने बीजेपी और उसके सहयोगियों के लिए विधानसभा चुनाव की राह मुश्किल बना दी है.


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तो क्या एनसीपी की वजह से हुआ बीजेपी का नुकसान?


लोकसभा चुनाव नतीजों के 10 दिन के भीतर ही आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में एक लेख ने पहले से अस्थिर महायुति को झकझोर कर रख दिया. आरएसएस नेता रतन शारदा के लेख में कहा गया कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में एनसीपी को शामिल करना 'गलत फैसला' था. शारदा ने कहा कि कुछ जगहों पर भाजपा के कार्यकर्ता और मतदाता अपने एक समय के कट्टर प्रतिद्वंद्वी के साथ गठबंधन को स्वीकार नहीं कर सके.


उन्होंने कहा कि अजित पवार की पार्टी को साथ लाना 'अनावश्यक राजनीति' थी, जिसने भाजपा के ब्रांड वैल्यू को नुकसान पहुंचाया है. यह गठबंधन अनावश्यक था, क्योंकि भाजपा और शिंदे की शिवसेना के पास राज्य में आरामदायक बहुमत मिल सकता था. शारदा ने आगे लिखा, 'इस गठबंधन से भाजपा समर्थक आहत हैं, क्योंकि उन्होंने वर्षों तक कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और उन्हें सताया गया था. एक ही झटके में भाजपा ने अपनी ब्रांड वैल्यू कम कर दी.'


जमीनी कार्यकर्ताओं की दबी आवाज को आरएसएस ने दी हवा?


आरएसएस नेता रतन शारदा की टिप्पणी वही थी, जो भाजपा और शिवसेना के जमीनी कार्यकर्ताओं ने दबी आवाज में तब उठाया था जब अजित पवार को गठबंधन में शामिल किया गया था. हालांकि, तब भाजपा नेतृत्व ने उन्हें बताया था कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताकत को बढ़ाने के लिए एक राजनीतिक व्यवस्था थी. लोकसभा चुनावों से पहले देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी गठबंधन के बारे में अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की गलतफहमी को स्वीकार किया था.


उन्होंने कहा था कि हमें अपने कैडर, अपने मतदाताओं को यह समझाना पड़ा क्योंकि हम एक-दूसरे के खिलाफ लड़े हैं. खासकर पश्चिमी महाराष्ट्र में, जहां हम एक-दूसरे के खिलाफ खड़े थे. हमारा मतदाता समझदार है, वह समझ सकता है कि अगर मोदीजी को पीएम बनाना है तो हमें उन्हें अलग-थलग करने वालों को दिखाना होगा कि वे ऐसा नहीं कर सकते.'