Maratha OBC Reservation: आरक्षण, यह शब्द अपने आप में राजनीतिक तूफान लाने की ताकत रखता है. किसी ने कुछ कहा, बयान के गलत मायने न निकले, राजनीति में इस पर बयानबाजी बहुत संभलकर और वोटबैंक पर होने वाले असर को ध्यान में रखकर की जाती है. 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र की बात करें तो यहां कई साल से मराठा राजनीतिक संकट बरकरार है. विरोध प्रदर्शन होते रहे लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकला. इस बार लोकसभा चुनाव से पहले भूख हड़ताल कर रहे मनोज जरांगे ने आवाज बुलंद की है. उनके साथ जुटी भीड़ ने शिंदे सरकार को कल यानी 20 फरवरी को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए मजबूर किया.


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कल सदन में मराठा समुदाय को आरक्षण देने पर चर्चा होगी. माना जा रहा है कि कल ही कथित तौर पर 10-12% मराठा कोटा वाला बिल पास हो सकता है. हालांकि यह मुद्दा इतना आसान नहीं है. इसका राजनीतिक और सामाजिक असर होगा. 10 साल में यह तीसरी बार है जब सरकार मराठा कोटे के लिए बिल ला सकती है. सर्वे में पता चला है कि यह समुदाय सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है. हर बार यह आरक्षण टॉप कोर्ट से खारिज हो जाता है. इस बार भी यह सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे में आ सकता है जिसने आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत करने की बात कही है. महाराष्ट्र में आरक्षण पहले से ही 52 प्रतिशत है, मराठा कोटे से यह और ऊपर जा सकता है. इस संकट में भाजपा को शामिल कर लें तो चार मुख्य पहलू हैं. 


1. ओबीसी नेता भुजबल की आपत्ति


दरअसल, मराठा वोट अलग-अलग पार्टियों में फैले हैं. हर पार्टी उन्हें अपने साथ जोड़ना चाहती है. मौजूदा हलचल से राज्य के ओबीसी नेता नाराज हो गए हैं. ओबीसी और अपर कास्ट के समीकरण से बीजेपी की अलग टेंशन में है. शिंदे सरकार में भी इस पर आम राय नहीं है. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और NCP के नेता छगन भुजबल ने पिछले दिनों इस्तीफा दे दिया था. वह अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) कोटे में मराठों के ‘बैक डोर एंट्री’ का विरोध कर रहे हैं. 


जी हां, उन्होंने मराठा समुदाय के लोगों को कुनबी (ओबीसी) प्रमाण पत्र देने के फैसले का विरोध किया है. कई ओबीसी नेता इस मुद्दे पर भुजबल के संपर्क में हैं. उन्होंने साफ कहा है कि वह मराठा समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में नहीं हैं लेकिन मौजूदा OBC कोटा साझा करने के खिलाफ हैं. वह अजित पवार के एनसीपी खेमे से आते हैं. 


2. आंदोलन के लीडर जरांगे की चेतावनी


मराठा आरक्षण मांग रहे मनोज जरांगे ने कहा है कि उनका विरोध प्रदर्शन 20 फरवरी तक जारी रहेगा. अगर सरकार उनकी मांगों को पूरा नहीं करती है तो मराठा समुदाय आंदोलन तेज कर देगा. इससे पहले जरांगे ने चेतावनी दी थी कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं तो महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में रुकावट पैदा की जाएगी. इस पर तनाव बढ़ गया. 


उधर, महाराष्ट्र सरकार ने बम्बई हाई कोर्ट को बताया है कि वह पात्र मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र देकर ओबीसी श्रेणी में शामिल करने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है. सरकार की तरफ से बताया गया कि हाल में महाराष्ट्र सरकार ने एक मसौदा अधिसूचना जारी की थी. इसमें कहा गया है कि (पात्र) मराठों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किया जाएगा, लेकिन जरांगे ने पहले ही भूख हड़ताल शुरू कर दी. जरांगे के आंदोलन के कारण कानून-व्यवस्था में बाधा पैदा होने को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. 


कुनबी ही क्यों?


कुनबी (कुर्मी) एक किसान समुदाय है जिन्हें ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण दिया जाता है. जरांगे सभी मराठों के लिए कुनबी प्रमाण पत्र की मांग कर रहे हैं. एनसीपी नेता छगन भुजबल ने कहा है कि वह मराठों को अलग कोटा देने के पक्ष में हैं लेकिन इसकी पड़ताल और सत्यापन किए बिना उन्हें कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी करने के विरोध में हैं. वह मराठा समुदाय को अलग कोटा देने के पक्ष में हैं. भुजबल ने पूछा, ‘राज्य में करीब 374 प्रकार की जातियों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है. मराठा इसका हिस्सा क्यों बनना चाहते हैं?’ 


मराठा समुदाय का सर्वे


महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने मराठा समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर सर्वे किया है. सीएम ऑफिस की तरफ से बताया गया है कि इस रिपोर्ट से सरकार को जरूरी आंकड़े मिले हैं और मराठा समुदाय के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने वाला कानून बनाने में मदद मिलेगी. इस कवायद में करीब 2.5 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया. मराठा समुदाय शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है. 


3. सरकार चला रहे CM शिंदे की उलझन


ऐसे समय में जब लोकसभा चुनाव सिर पर है, एनडीए 400 पार का नारा दे रहा है. राज्य में गठबंधन सरकार चला रहे सीएम एकनाथ शिंदे के सामने जातिगत समीकरण को साधने की चुनौती है जिससे कोई खेमा नाराज न हो. उन्होंने जोर देकर कहा है कि दूसरे समुदायों के मौजूदा आरक्षण को छेड़े बिना मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण दिया जाएगा. 


4. बीजेपी क्या चाहती है?


कांग्रेस के बार-बार टूटने के बावजूद भाजपा को महाराष्ट्र में हमेशा शिवसेना का साथ लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है. वह अब तक अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकी है. शिवसेना को कमजोर करने और मराठों के राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती देने के लिए भाजपा ने ओबीसी और उच्च जातियों का नया सामाजिक समीकरण बुना. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 'शत-प्रतिशत भाजप' का सपना पूरा नहीं हो सका. आखिरकार उसे सत्ता में आने के लिए एनसीपी और शिवसेना को भी साथ लेना पड़ा, वो भी कैसे पूरा देश जानता है. अब मराठा आरक्षण के हर पहलू पर वह गौर कर रही होगी.