India Pakistan War 1965 Reasons: भारत विभाजन के समय यानी अपनी पैदाइश के समय से ही पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है. इस सब के बीच भारत से नफरत और किसी भी तरह से कश्मीर को हथियाने की नापाक मंसूबे को लेकर वह अपने आवाम को भरमाता रहता है. साथ ही विक्टिम कार्ड दिखाकर दुनिया भर से खैरात भी जुटाता रहता है. इसी सिलसिले में पाकिस्तान हर साल 6 सितंबर को ऑपरेशन जिब्राल्टर की याद को उत्सव की तरह मनाता है कि उसने एक बहुत बड़े दुश्मन का सामना किया था.


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भारत से अब तक लड़े 4 बड़े युद्धों में पाकिस्तान की शर्मनाक हार


भारत से अब तक लड़े चार बड़े युद्धों (पहला  1947-1948, दूसरा 1965, तीसरा 1971 और चौथा 1999) में बुरी तरह हारने के बावजूद पाकिस्तान की जलन कभी शांत नहीं होती. इस बीच साल 1965 के युद्ध से पहले पाकिस्तान की कश्मीर पर धोखे से कब्जा करने की साजिश 'ऑपरेश जिब्राल्टर' फिर से चर्चा में आ गया है. आइए, 'ऑपरेशन जिब्राल्टर' की कहानी जानते हैं, जिसे भारतीय सेना ने फेल कर दिया और कश्मीर को बचा लिया था. 


भारत के खिलाफ पाकिस्तान का 'ऑपरेशन जिब्राल्टर' क्या था?


भारतीय सेना की बहादुरी के सामने हमेशा कड़ी शिकस्त खाने वाला पाकिस्तान 1947 से ही धोखे और साजिश के जरिए कश्मीर को हथियाने की फिराक में है. 1965 में पाकिस्तान की ओर से की गई ऐसी ही एक घटिया मिलिट्री साजिश की नाम है 'ऑपरेशन जिब्राल्टर'. दरअसल, भारत के मुसलमानों का मानना है कि कश्मीर में हजरतबल दरगाह में पैगंबर मुहम्मद का 'बाल' रखा हुआ है. 1965 में इसी बाल के गायब होने की अफवाह फैलाकर पाकिस्तान ने कश्मीरी मुसलमानों में आक्रोश फैलाया था.


कश्मीरी मुसलमानों को मजहब के बहाने भारत के खिलाफ भड़काया


कश्मीरी मुसलमानों के भड़के गुस्से का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान ने उनको भारत के खिलाफ भड़काकर अपने लिए इस्तेमाल करने के नापाक मंशा से अपने करीब 5000 सैनिकों को सादा भेष में कश्मीर के लोगों के साथ रहने के लिए घुसपैठ के जरिए भेज दिया था. पाकिस्तानी सैनिक कश्मीरियों के साथ आम लोग बनकर रहने लगे. मौका मिलते ही वे लोग साजिशन उनको भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए भड़का रहे थे.


कश्मीर के हजरत बल दरगाह की आड़ लेकर पाकिस्तान की साजिश


पाकिस्तान ने इस नापाक साजिश को ही ऑपरेशन जिब्राल्टर का नाम दिया था. पाकिस्तान आर्मी का मेजर जनरल अख्तर हुसैन रिजवी इसे कमांड कर रहा था. दरअसल, पाकिस्तान ऑपरेशन जिब्राल्टर के जरिए कश्मीर में अशांति फैला और भारत विरोधी भावनाएं कर वहां जमीन पर कब्जा करना चाहता था. पाकिस्तान अपने घटिया मंसूबे को पूरा करने के लिए कश्मीर के हजरत बल दरगाह की घटना की आड़ ले रहा था. पाकिस्तानी और दूसरे सैन्य इतिहासकारों के मुताबिक, ऑपरेशन जिब्राल्टर नाम की साजिश पाकिस्तानी आर्मी के कमांड अधिकारी मेजर-जनरल अख्तर हुसैन मलिक द्वारा बनाई गई थी.


पाकिस्तान ने साजिश का नाम ऑपरेशन जिब्राल्टर ही क्यों रखा?


दरअसल, स्पेन के पास एक छोटा से टापू का नाम जिब्राल्टर है. माना जाता है कि दुनिया भर में इस्लाम के प्रचार के मिशन के तहत यूरोप जीतने के मकसद से निकली अरबी सेना के पश्चिम की ओर बढ़े काफिले का पहला पड़ाव जिब्राल्टर ही था. यहीं से आगे बढ़कर अरबी सेना ने पूरे स्पेन पर जीत दर्ज की थी. इसी इस्लामिक हिस्ट्री से जोड़कर पाकिस्तान ने अपने इस सीक्रेट मिल्ट्री ऑपरेशन का नाम जिब्राल्टर रखा था. 


पाकिस्तान को इस नाम की वजह से लगता था कि अगर एक बार कश्मीर पर कब्जा कर लिया तो इसे जिब्राल्टर की तरह इस्तेमाल कर पूरे स्पेन की जीत को भारत में भी दोहराकर यहां भी कब्जा कर लेगा. पाकिस्तान का ऑपरेशन जिब्राल्टर इस धारणा पर आधारित था कि गुरिल्ला हमलों से कश्मीर की मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी भारत के खिलाफ विद्रोह कर देगी.


पाकिस्तान में कब शुरू हुई थी 'ऑपरेशन जिब्राल्टर' की प्लानिंग?


रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान ने कश्मीर में 1947-48 में भारतीय सेना के हाथों बुरी तरह हारने के बाद साल 1950 के आसपास ऑपरेशन जिब्राल्टर की प्लानिंग शुरू कर दी थी. इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए पाकिस्तान सही मौके का इंतजार कर रहा था. पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो इस ऑपरेशन को पूरा सपोर्ट कर रहे थे. पाकिस्तान आर्मी ने ऑपरेशन जिब्राल्टर की कामयाबी के लिए 40 हजार से ज्यादा सैनिकों को घुसपैठ के जरिए हमला करने की स्पेशल ट्रेनिंग दी थी. 


ऑपरेशन जिब्राल्टर से पहले तैयारी के लिए चला था ऑपरेशन नुसरत 


पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड जनरल अख्तर हुसैन मलिक ने इस बारे में लिखा है, 'हम ऑपरेशन जिब्राल्टर के जरिए कश्मीर समस्या को हमेशा के लिए खत्म करना चाहते थे, हालांकि हम भारत से युद्ध नहीं चाहते थे. इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान ने पहले जमीनी स्तर पर खुफिया जानकारी जुटाने और बड़े पैमाने पर भारत में घुसपैठ करने के लिए सीमा के खास हिस्से की पहचान करने के लिए ऑपरेशन नुसरत भी चलाया था. हालांकि, दोनों ऑपरेशनों का हश्र एक जैसा हुआ.


पाकिस्तान ने घुसपैठिए सैनिकों का सीक्रेट नाम जिब्राल्टर फोर्स रखा था


इतिहासकारों के मुताबिक, साल 1965 के अगस्त महीने के पहले सप्ताह में 30 हजार से 40 हजार के बीच की संख्या में पाकिस्तानी सैनिक (जो आजाद कश्मीर रेजिमेंटल फोर्स अब आजाद कश्मीर रेजिमेंट का हिस्सा थे.) ने भारतीय सीमा में घुसपैठ करना शुरू कर दिया था. हालांकि, कुछ सूत्रों ने इस घुसपैठ की शुरुआत की तारीख 24 जुलाई, 1965 भी लिखा है. पाकिस्तानी घुसपैठियों का मकसद कश्मीर के चार ऊंचाई वाले इलाकों पीरपंजाल, गुलमर्ग, उरी और बारामूला पर कब्ज़ा करना था ताकि अगर भारी लड़ाई छिड़े तो पाकिस्तान की सेना ऊपर बैठकर भारतीय सेना पर हमला कर सके. 


पाकिस्तान ने इन सैनिकों का सीक्रेट नाम "जिब्राल्टर फोर्स" रखा था. हालांकि, पाकिस्तान ने इस तरह के फोर्स के गठन की अभी तक आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की है, लेकिन पाकिस्तान सेना के पूर्व प्रमुख, सुरक्षा विशेषज्ञ और लेखक इकराम सहगल ने एक अखबार के लेख में इसे "सेना के स्वयंसेवकों का मिश्रण, मुख्य रूप से आज़ाद कश्मीर से संबंधित लोगों का मिश्रण" के रूप में लिखा किया है.


बुरी तरह नाकाम साबित हुआ ऑपरेशन जिब्राल्टर, क्या थी बड़ी वजह?


पाकिस्तान का ऑपरेशन जिब्राल्टर बुरी तरह से नाकाम साबित हुआ था क्योंकि आम कश्मीरियों ने खुद आगे बढ़कर भारतीय सेना को सरहद पार से आए पंजाबी बोलने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की जानकारी दी थी. भारतीय सेना ने इसके बाद कार्रवाई करते हुए स्पेशल फोर्स पैरा कमांडो को पाकिस्तानी घुसपैठियों को तलाश कर मारने या पकड़ने का जिम्मा दिया था. वहीं, पूरी प्लानिंग के साथ एयर फोर्स को पैरा कमांडो को एयर लिफ्ट कराने की जिम्मेदारी दी गयी थी.


1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का कारण बना था ऑपरेशन जिब्राल्टर 


इसके बाद भारत के जाबांज सैनिकों ने बहुत बड़ी संख्या में घुसपैठियों को पकड़ लिया, लेकिन पाकिस्तान की ओर से घुसपैठिए की शक्ल में पकड़े गए अपने सैनिकों ने बचाने और भगाने के लिए भारी तोपों से जवाबी गोलाबारी शुरू कर दी थी. इस तरह ऑपरेशन जिब्राल्टर को फेल कर भारतीय सेना ने कश्मीर को बचा लिया. हालांकि, यह ऑपरेशन जिब्राल्टर 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का सबसे बड़ा तात्कालिक कारण बन गया था. 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध  द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से टैंकों के माध्यम से लड़ा गया दुनिया का सबसे बड़ा युद्ध साबित हुआ था. 


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लाहौर के नजदीक पहुंच गई थी भारतीय सेना, फिर ताशकंद समझौता


1965 के युद्ध में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान को इतनी बुरी तरह खदेड़ा था कि उसके सैनिक 20 टैंकों को चलती हालत में ही छोड़कर भाग गए थे. इस बीच भारत की सेना पाकिस्तान में घुस गई थी और लाहौर के ठीक बाहर तक पहुंच गई थी. इसके बाद अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता और युद्ध को समाप्त करने के बढ़ते दबाव के बीच पूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद समझौता हुआ था. भारत ने इस समझौते के तहत जीते हुए इलाके पाकिस्तान को वापस लौटा दिए थे.


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पाकिस्तान में तीन साल बाद ही तख्तापलट, आज तक वहम में आवाम


भारत-पाकिस्तान के बीच दूसरे युद्ध यानी 1965 के तीन साल बाद ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान को अवाम के विद्रोह ने सत्ता से उखाड़ फेंका. अमेरिका स्थित रक्षा विश्लेषक डॉ. अहमद फारुकी लिखते हैं, "एक दुखी और टूटे हुए व्यक्ति" के रूप में 1974 में अयूब की मौत हो गई. वहीं, 1965 में पाकिस्तान वायु सेना का नेतृत्व करने वाले एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) नूर खान ने डॉन अखबार के साथ एक इंटरव्यू में कहा कि सेना ने "देश को एक बड़े झूठ से गुमराह किया" कि पाकिस्तान के बजाय भारत ने युद्ध भड़काया. इसी वहम की वजह से पाकिस्तान आज भी इस दिन को बतौर यादगार मनाता है. 


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