IC814 Kandahar Hijack: पाकिस्तान को फोन, ठाकरे की मातोश्री पर निशाना और आतंकी साजिश; IC814 हाईजैक केस को मुंबई पुलिस ने कैसे सुलझाया?
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IC814 Kandahar Hijack: पाकिस्तान को फोन, ठाकरे की मातोश्री पर निशाना और आतंकी साजिश; IC814 हाईजैक केस को मुंबई पुलिस ने कैसे सुलझाया?

How Mumbai Police Cracked IC814 Hijacking Case: 24 दिसंबर, 1999 को काठमांडू से नई दिल्ली जा रहे इंडियन एयरलाइंस के विमान IC814 को नेपाल के काठमांडू हवाई अड्डे से उड़ान भरने के 30 मिनट बाद हाईजैक कर लिया गया था. अधिकारियों को अपहरण की जानकारी मिलते ही पूरे देश को हाई अलर्ट पर रखा गया था. इसके बाद मुंबई पुलिस ने इस आतंकी वारदात की जांच शुरू की थी.

IC814 Kandahar Hijack: पाकिस्तान को फोन, ठाकरे की मातोश्री पर निशाना और आतंकी साजिश; IC814 हाईजैक केस को मुंबई पुलिस ने कैसे सुलझाया?

Kandahar Hijack Real Story: IC814 कंधार हाईजैक पर नई वेब सीरीज ने न केवल  दुनिया को हिलाकर रख देने वाली एक भयानक आतंकवादी वारदात को फिर से सुर्खियों में ला दिया, बल्कि खूंखार आतंकवादियों के नाम बदलने को लेकर विवाद भी खड़ा कर दिया. इसके बाद सरकार को कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा. आइए, इस बीच हम जानते हैं कि मुंबई पुलिस और क्राइम ब्रांच ने इस पेचीदे मामले को कैसे सुलझाया. अब पहली बार इसकी सच्चाई भी दुनिया के सामने आ रही है.

काठमांडू हवाई अड्डे से उड़ान भरने के 30 मिनट बाद प्लेन हाईजैक 
 
24 दिसंबर, 1999 को काठमांडू से नई दिल्ली जा रहे इंडियन एयरलाइंस के विमान IC814 को नेपाल के काठमांडू हवाई अड्डे से उड़ान भरने के 30 मिनट बाद हाईजैक कर लिया गया था. अधिकारियों को हाईजैक की जानकारी मिलते ही पूरे देश को हाई अलर्ट पर रखा गया. इसके बाद मुंबई पुलिस ने इस खतरनाक आतंकवादी वारदात की जांच शुरू कर दी. आज भी यह दुनिया भर में किसी भी पुलिस विभाग द्वारा किए गए सबसे बेहतरीन इनवेस्टिगेशन में से एक है.

मुंबई क्राइम ब्रांच के पूर्व प्रमुख डी शिवानंदन के नेतृत्व में ऑपरेशन

नवंबर 2008 में मुंबई में आतंकवादी हमलों के दौरान बलिदान महाराष्ट्र के आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे IC814 हाईजैक मामले की जांच में शामिल थे. वहीं, महाराष्ट्र के रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त और मुंबई क्राइम ब्रांच के पूर्व प्रमुख डी शिवानंदन पूरे ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने लेखक के रूप में भी पुरस्कार जीते हैं. उनकी आने वाली किताब 'ब्रह्मास्त्र' के एक लेख में इस पूरे मामले की जानकारी दी गई है.

मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच ने IC814 हाईजैक मामले को कैसे सुलझाया था?

इस किताब के कुछ हिस्से के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई पुलिस के तत्कालीन ज्वाइंट कमिश्नर डी शिवानंदन ने कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है. उन्होंने काफी दिलचस्प तरीके से बताया है कि इस मामले में मुंबई पुलिस की क्या भूमिका रही और कैसे कई सबूतों के साथ IC814 हाईजैक मामले को सुलझाया गया था. 

क्रिसमस से एक दिन पहले कंधार हाईजैक की आतंकी वारदात

डी शिवानंदन ने लिखा, 'उस दौरान, मैं मुंबई पुलिस में संयुक्त पुलिस आयुक्त के रूप में तैनात था और विशिष्ट मुंबई अपराध शाखा का प्रमुख था और मेरे बॉस और मुंबई पुलिस आयुक्त, आर एच मेंडोंका ने मुझे घटना के बारे में सूचित किया था और पूरी क्राइम ब्रांच को हाई अलर्ट पर लगाने के लिए कहा था. हम सभी सांस रोककर हो रही घटनाओं पर नजर रख रहे थे. प्लेन हाईजैक के अगले दिन, 25 दिसंबर को क्रिसमस की धूम थी."

मुंबई क्राइम ब्रांच को रॉ अफसर हेमंत करकरे से मिली जानकारी
 
उन्होंने आगे बताया, "मैं क्रॉफर्ड मार्केट में मुंबई पुलिस मुख्यालय में स्थित अपने कार्यालय में था, जब लगभग 11 बजे मेरे पास एक बिना अप्वाइंटमें के एक गेस्ट आया. यह महाराष्ट्र कैडर के आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे थे. वह उस समय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के मुंबई कार्यालय में तैनात थे. मुझे तुरंत पता चल गया कि यह कोई आम मुलाकात नहीं थी. हेमंत करकरे ने मुझे बताया कि रॉ ने एक फोन नंबर हासिल किया था जो मुंबई में था और पाकिस्तान के एक फोन नंबर के साथ लगातार संपर्क में था. उसने मुझे फोन नंबर दिया और मैं तुरंत काम पर लग गया..."

ऑपरेशन के लिए कई पुलिस टीमों का गठन, स्पेशल असाइनमेंट

ऑपरेशन सुचारू रूप से और कुशलता से चलाने के लिए पुलिस टीमों का गठन किया गया और उन्हें स्पेशल असाइनमेंट दिया गया... कॉलर डिटेल, टेलीफोन डिटेल, सेल टावरों का स्थान, कॉल लॉग और बाकी सारे विवरण हासिल करने के लिए एक टीम को मोबाइल सर्विस नेटवर्क कंपनी के पास भेजा गया. दूसरी टीम को मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगाने और चौबीसों घंटे निगरानी करने को कहा गया. अन्य सभी टीमों को कॉल करने वाले का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

मोबाइल सर्विस कंपनी के पास गई पुलिस टीम से मिली पहली सूचना

जब अधिकारी सांस रोककर इंतजार कर रहे थे तो मोबाइल सर्विस कंपनी के पास गई पुलिस टीम से पहली सूचना मिली. उन्होंने बताया कि इस नंबर का इस्तेमाल जुहू और मलाड के बीच किया जा रहा था क्योंकि यहीं से मोबाइल टावर सिग्नल भेज रहे थे. हालांकि जानकारी बहुत उपयोगी थी, फिर भी वह उतनी उपयोगी नहीं थी, क्योंकि मुंबई जैसे भीड़-भाड़ वाले महानगर में, लाखों लोग जुहू और मलाड के बीच रहते हैं... साल 1999 में, एकमात्र तकनीक जो उपलब्ध थी, वह टेलीफोन पर बातचीत सुनना और उसके कुछ घंटों की देरी के बाद जगह का पता प्राप्त करना था .

जांच के पहले तीन दिनों में कुछ भी नहीं मिलने से पुलिस को निराशा

जांच के पहले तीन दिनों में कुछ भी नहीं निकला. अधिकारी और टीम के साथी निराश हो रहे थे. इससे भी अहम बात यह थी कि भारत सरकार का समय बर्बाद हो रहा था. एकमात्र जानकारी यह थी कि जो टीम फोन पर बातचीत सुन रही थी, वह कॉल के पीछे मवेशियों के बाड़े की आवाज सुन पा रही थी और वे एक फोन कॉल के दौरान अजान की आवाज सुन सकते थे... वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में अपराध शाखा की कई टीमों ने दो दिनों तक जुहू से मलाड तक पूरे इलाके की तलाशी ली. उन्होंने मवेशियों के सभी बाड़े की जांच की. एक तो मस्जिद के बिल्कुल पास थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

कंधार हाईजैक की घटना के मुंबई लिंक के खुलासे की शुरुआत

कंधार हाईजैक की घटना के मुंबई लिंक के बारे में जानकारी मिले तीन दिन हो गए थे और पुलिस के पास अभी भी कोई ठोस जानकारी नहीं थी... 28 दिसंबर, 1999 को  लगभग 6 बजे जैसे ही सूरज डूब रहा था, आशा की एक किरण आई. मोबाइल फोन नंबर की निगरानी कर रही सर्विलांस टीम को अपने सिस्टम पर अलर्ट मिला कि फोन एक्टिव है. पुलिस ने तुरंत कॉल सुनना और रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया.  अधिकारियों को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था!

मुंबई से पाकिस्तान में हैंडलर को फोन कॉल से मिला बड़ा सुराग
 
डी शिवानंदन ने लिखा, " मुंबई स्थित कॉल करने वाले ने पाकिस्तान में अपने हैंडलर को फोन किया था और उससे कहा था कि उसके पास नकदी की कमी है और उसे तत्काल पैसे की जरूरत है. दूसरी ओर से कॉल करने वाले ने उनसे कहा कि वह 30 मिनट तक इंतजार करें, वह इंतजाम करेंगे और वापस कॉल करेंगे. मुझे पता था कि हमें ब्रेक मिल गया है. मैंने रिकॉर्डिंग रूम में सभी को हाई अलर्ट पर रहने और अगले फोन कॉल के हर शब्द को रिकॉर्ड करने का निर्देश दिया. लंबे और तकलीफदेह इंतजार के बाद आखिरकार 45 मिनट बाद शाम करीब 6.45 बजे कॉल आई."

पाकिस्तान से कॉल करने वाला था जैश-ए-मोहम्मद का आतंकवादी

पाकिस्तान से कॉल करने वाला जैश-ए-मोहम्मद (JeM) का आतंकवादी था. उसने मुंबई में कॉल करने वाले आतंकी से उसका ठिकाना पूछा. वह सतर्क था और उसने अपने ठिकाने के बारे में कोई विवरण या सटीक जवाब नहीं दिया. उसने मुंबई के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र के उपनगर जोगेश्वरी (पूर्व) में कहीं होने का अस्पष्ट जवाब दिया. इसके बाद जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी ने मुंबई में अपने सहयोगी को सूचित किया कि वे 1 लाख रुपये की व्यवस्था करने में कामयाब रहे हैं, जिसे हवाला लेनदेन के जरिए पहुंचाया जाएगा.

मुंबई में उस आतंकी को पैसे लेने के लिए रात करीब 10 बजे दक्षिण मुंबई के मोहम्मद अली रोड स्थित शालीमार होटल में जाने का निर्देश दिया गया. उसे आगे बताया गया कि नीले रंग की जींस और धारीदार शर्ट पहने एक व्यक्ति उससे होटल में मिलेगा और पैसे सौंप देगा. इसके बाद कॉल कट गई.

निगरानी कक्ष में सन्नाटा छा गया... जब पुलिस को मिली सटीक टिप

डी शिवानंदन ने उस पल के बारे में लिखा, " निगरानी कक्ष में एक सन्नाटा छा गया क्योंकि हम सभी को उस जानकारी की क्षमता का एहसास करने में एक पल लगा जो हमें अभी मिली थी... यह निर्णय लिया गया कि अपराध शाखा के अधिकारी सादे कपड़े पहनकर मुलाकात स्थल पर जाएंगे और नजर रखेंगे. जो व्यक्ति वहां पैसे लेने के लिए आएगा. वे न तो उसका सामना करेंगे और न ही उसे पकड़ेंगे बल्कि चुपचाप उसका पीछा करेंगे और उस स्थान की पहचान करेंगे जहां वह छिपा हुआ है"

पुलिस की कई टीम बनाकर होटल पर सख्त निगरानी की शुरुआत

उन्होंने बताया, " मैंने छह टीमें बनाईं जिनमें एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और एक जूनियर शामिल थे. इन सभी को मोहम्मद अली रोड जाने और शालीमार होटल के आसपास निगरानी रखने का निर्देश दिया गया. उनके निर्देश क्लीयर थे, उन्हें उस शख्स का पीछा करना था जो पैसे लेने आएगा. टीमें रात करीब साढ़े नौ बजे घटनास्थल पर पहुंचीं और विभिन्न रणनीतिक स्थानों पर इंतजार किया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें होटल का साफ दृश्य दिखाई दे. रात करीब 10 बजे एक आदमी वहां आया और एंट्री गेट पर उसकी मुलाकात नीली जींस और धारीदार शर्ट पहने एक व्यक्ति से हुई."

पुलिस टीम को आंतकी को पकड़ने नहीं, बस पीछा करने का आदेश

उन्होंने आगे बताया, " कुछ पल होटल के अंदर बिताने के बाद दोनों बाहर निकले, नीली जींस पहने शख्स ने टैक्सी बुलाई और साउथ मुंबई की तरफ निकल गया. अधिकारियों को निर्देश स्पष्ट थे कि उन्हें पैसे लेने वाले शख्स का पीछा करना होगा. वे उस शख्स का इंतजार करने लगे जो अब पैसे ले जा रहा था. कुछ देर बाद उसने भी टैक्सी बुलाई और चला गया. अधिकारियों ने फौरन एक सुरक्षित दूरी बनाए रखते हुए निजी कारों में उसकी निगरानी करना शुरू कर दिया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें कोई शक न हो.

टैक्सी, लोकल ट्रेन, ऑटो और पैदल... आतंकी की सफर में चालाकी

टैक्सी मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पहुंची, जहां पैसेंजर उतर गया और रेलवे स्टेशन के भीतर चला गया. अधिकारी भी तेजी से उसके पीछे-पीछे रेलवे स्टेशन के अंदर चले गए. शख्स प्लेटफॉर्म नंबर एक पर गया और लोकल ट्रेन का इंतजार करने लगा. उसके पीछे कम से कम एक दर्जन परछाइयां थीं. कुछ मिनट बाद लोकल ट्रेन आ गई और वह ट्रेन में चढ़ गया. अधिकारी भी उसी ट्रेन में चढ़ गए, जबकि कुछ उस व्यक्ति के डिब्बे में प्रवेश कर गए, जबकि अन्य बगल के डिब्बे में चढ़ गए.

जोगेश्वरी (पश्चिम) के बशीरबाग इलाके में झुग्गियों के बीच ठिकाना

एक मुश्किल सफर के बाद ट्रेन जोगेश्वरी पहुंची. वहां वह आदमी उतरकर स्टेशन से बाहर चला गया. वह एक ऑटोरिक्शा में बैठ गया; हमारे अधिकारियों ने दूसरे ऑटोरिक्शा में उसका पीछा करना शुरू कर दिया. ऑटोरिक्शा जोगेश्वरी (पश्चिम) में बशीरबाग इलाके में वह रुक और वह उतर गया. उसने रिक्शा वाले को पैसे दिए और झुग्गियों में पैदल चलना शुरू कर दिया. यहीं पर अधिकारियों के लिए मुश्किलें शुरू हो गईं. क्योंकि जोगेश्वरी में बशीरबाग झुग्गियां मुंबई की सबसे घनी आबादी वाली झुग्गियों में से एक हैं. कोई भी व्यक्ति जो स्थानीय नहीं है, उसे आसानी से पहचाना जा सकता है और शक की निगाह से देखा जा सकता है.

पुलिस अधिकारियों के सामने चुनौती ही चुनौती, कैसे पाया पार?

पुलिस अधिकारियों के सामने चुनौती यह थी कि बिना किसी संदेह के इस व्यक्ति का पीछा किया जाए. अधिकारियों ने अपने पूरे अनुभव और कौशल का उपयोग करते हुए उस व्यक्ति का पीछा करना शुरू कर दिया. कुछ मिनटों तक चलने और कई संकरी गलियों से गुजरने के बाद वह व्यक्ति एक छोटी सी चॉल में पहुंचा और एक दरवाजे पर दस्तक दी. एक अज्ञात व्यक्ति ने दरवाजा खोला, वह कमरे में दाखिल हुआ फिर पीछे से कमरा बंद कर दिया गया था...

पुलिस टीम में तुरंत एक प्रोटोकॉल स्थापित किया गया, उस जगह पर कड़ी नजर रखने के लिए चौबीसों घंटे निगरानी रखी गई. कमरे के अंदर और आसपास की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए नागरिक और स्थानीय पोशाक पहने अपराध शाखा के अधिकारियों ने कमरे के आसपास रणनीतिक स्थानों पर कब्जा कर लिया. दो तकलीफदेह दिनों तक अधिकारियों ने किसी को कोई शक होने दिए बिना कड़ी निगरानी बनाए रखी.

बशीरबाग में क्राइम ब्रांच की कमांडो टीम की छापेमारी कामयाब

डी शिवानंदन ने लिखा, " जैसे ही हरी झंडी मिली, मैं मौके पर पहुंचा और ऑपरेशन का निरीक्षण किया, जिसमें मुंबई पुलिस के उच्च प्रशिक्षित कमांडो और मुंबई अपराध शाखा के वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम बशीरबाग स्थित कमरे में घुस गई. छापेमारी इतनी सटीकता से की गई कि आतंकवादियों को प्रतिक्रिया करने का एक क्षण भी नहीं मिला. पूरी टीम उन पर उस तरह टूट पड़ी जैसे कोई चील अपने शिकार को उठा रही हो और कुछ ही समय में आतंकवादियों पर काबू पा लिया गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया."

मुंबई में पांच आतंकवादी गिरफ्तार, हथियारों का जखीरा बरामद

डी शिवानंदन ने बताया कि कुल पांच आतंकियों को गिरफ्तार किया गया. उनकी पहचान इस प्रकार की गई: रफीक मोहम्मद (उम्र 34 साल), अब्दुल लतीफ अदानी पटेल (उम्र 34 साल), मुस्ताक अहमद आज़मी (उम्र 45 साल), मोहम्मद आसिफ उर्फ ​​​​बबलू (उम्र 25 साल) और गोपाल सिंह बहादुर मान (उम्र 38 साल).  हमें पूरी तरह से झटका लगा क्योंकि वहां दो एके-56 असॉल्ट राइफलें, पांच हथगोले, एंटी-टैंक टीएनटी रॉकेट लॉन्चर, गोले और तीन डेटोनेटर और विस्फोटक, छह पिस्तौल, गोला-बारूद का विशाल भंडार और 1,72,000 रुपये सहित हथियारों और गोला-बारूद का एक बड़ा जखीरा बरामद हुआ.

बालासाहेब ठाकरे के घर मातोश्री को निशाना बनाने की आंतकी साजिश

उन्होंने बताया कि आतंकियों के कमरे से नकदी भी बरामद की गई. ऐसा लग रहा था जैसे आतंकियों ने मुंबई में बड़ा आतंकी हमला करने की साजिश रची थी.
दिलचस्प बात यह है कि कमरे से मातोश्री का नक्शा भी बरामद हुआ है. मातोश्री शिवसेना प्रमुख दिवंगत बालासाहेब ठाकरे का निवास स्थान था. यह आज भी शिवसेना प्रमुख उद्धव बालासाहेब ठाकरे का निवास स्थान है.

अमेरिकी डॉलर्स की बरामदगी से अंतरराष्ट्रीय साजिश का खुलासा

जोगेश्वरी और मलाड में दो अन्य स्थानों पर भी एक साथ छापेमारी की गई. एक छापे में, एक नेपाली जोड़े द्वारा किराए पर लिए गए फ्लैट पर छापा मारा गया और जिंदा हथगोले, 2-3 ग्लॉक पिस्तौल और 10,000 अमेरिकी डॉलर नकद बरामद किए गए. अमेरिकी मुद्रा की बरामदगी से यह साफ हो गया कि यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश थी. आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया गया और पूछताछ करने पर उन्होंने अपहरण की पूरी घटना कबूल कर ली और बताया कि वे कैसे इसका हिस्सा थे. 

अब्दुल लतीफ पटेल था आतंकियों का सरगना और मास्टरमाइंड 

फोन करने वाला शख्स जो पैसे लेने भी गया था, उसकी पहचान मुंबई के स्थानीय व्यक्ति अब्दुल पटेल के रूप में की गई. वह मुंबई में मुख्य साजिशकर्ता था जो आतंकियों की टीम का नेतृत्व कर रहा था. वहीं, मोहम्मद आसिफ उर्फ ​​​​बबलू और रफीक मोहम्मद पाकिस्तानी नागरिक पाए गए. गोपाल सिंह मान एक नेपाली नागरिक था जबकि अन्य कश्मीर स्थित 'हरकत-उल-अंसूर' आतंकवादी समूह के आतंकवादी थे. उनसे पूछताछ में यह भी पता चला कि जोगेश्वरी में एक ही कमरे में उनके साथ तीन अन्य पाकिस्तानी नागरिक भी ठहरे थे. ये तीनों छापेमारी के दौरान बाहर चले गये थे और गिरफ्तार नहीं किये जा सके.

मुंबई पुलिस के गिरफ्त में नहीं आए बाकी तीनों पाकिस्तानी आतंकी 

मुंबई पुलिस तुरंत हाई अलर्ट पर आ गई और तीन पाकिस्तानी आतंकवादियों को पकड़ने के लिए जोगेश्वरी और मलाड इलाकों में तलाशी अभियान शुरू कर दिया. हालांकि, वे भाग गए और उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका. अब्दुल लतीफ़ पटेल से निरंतर पूछताछ के दौरान, यह पता चला कि IC814 कंधार हाईजैक करने वाली उनकी पूरी टीम जुलाई 1999 से मुंबई में छिपी हुई थी और हाईजैक की तैयारी कर रही थी.

मुंबई पुलिस ने उजागर किए आतंकियों के असली नाम और पहचान

हाईजैकर्स की पहचान इस प्रकार की गई: बहावलपुर, पाकिस्तान से इब्राहिम अतहर; कराची, पाकिस्तान से शाहिद अख्तर; कराची, पाकिस्तान से सनी अहमद काज़ी; कराची, पाकिस्तान से मिस्त्री जहूर इब्राहिम; सिंध, पाकिस्तान से शाकिर. तब अफगानिस्तान के कंधार में छिपे हाईजैकर्स के वास्तविक नाम और पहचान का पता लगाना एक बड़ी सफलता थी. तब तक हाईजैकर्स दुनिया के लिए अनजान थे और उन्होंने हाईजैक हवाई जहाज के अंदर मंकी कैप पहनकर अपनी पहचान और चेहरे छुपाए थे... यह मुंबई पुलिस ही थी जिसने सबसे पहले उन आतंकियों की असली पहचान और असली नाम दुनिया के सामने उजागर किए थे.

हेमंत करकरे ने दिल्ली तक पहुंचाए आतंकियों के असली नाम और पहचान

हेमंत करकरे दिल्ली में अपने वरिष्ठों को मुंबई के सभी घटनाक्रमों की मिनट-दर-मिनट जानकारी दे रहे थे. उन्होंने तुरंत हाईजैकर्स के नाम और पहचान अपने सीनियर्स को बताए, जिन्होंने भारत के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री, लालकृष्ण आडवाणी को इसकी जानकारी दी. यह जानकारी प्रसारित होने के बाद भारत सरकार और दुनिया को हाईजैकर्स की असली पहचान के बारे में पता चला. 

आगे की जांच और पूछताछ से मुंबई पुलिस को और क्या पता चला था?

आगे की जांच और पूछताछ से पता चला कि हाईजैकर्स मुंबई में हवाई अड्डों की योजना बनाने और टोह लेने के लिए आए थे जो उनकी साजिश के अनुरूप था. मुंबई में उन लोगों ने जोगेश्वरी (पश्चिम) में वैशाली नगर में एक फ्लैट किराए पर लिया था और वहीं रह रहे थे. इसी दौरान, वे कुछ बुनियादी स्किल सीखने के लिए एक कंप्यूटर क्लास में शामिल हुए थे. वे भारी रिश्वत देकर नकली भारतीय पासपोर्ट हासिल करने में भी कामयाब रहे. इसके बाद पांचों आतंकी नेपाल में ही रुके रहे और आखिरकार उन्होंने 24 दिसंबर, 1999 को अपनी साजिश को अमल में लाया.

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पुलिस, ट्रैवल एजेंसियों और पासपोर्ट कार्यालय को आतंकियों ने दी घूस

दरअसल, मास्टरमाइंड अब्दुल पटेल मुंबई में पासपोर्ट कार्यालय में अधिकारियों को रिश्वत देकर लगातार दो दिनों में अपनी एक ही तस्वीर का उपयोग करके दो पासपोर्ट हासिल करने में कामयाब रहा था. आतंकवादियों ने अपने फर्जी पासपोर्ट के लिए मुंबई मध्य में स्थित सेवन स्पाइस ट्रैवल एजेंसी से संपर्क किया था. इसमें शामिल लोगों के खिलाफ एक अलग मामला दर्ज किया गया. जांच से पुलिस सत्यापन प्रणाली की कमजोरी और ट्रैवल एजेंसियों और पासपोर्ट कार्यालय की संलिप्तता का भी पता चला.

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मुंबई पुलिस ने आखिरकार सीबीआई को सौंप दिए हाई प्रोफाइल आतंकी

भारत सरकार के निर्देश के मुताबिक मुंबई पुलिस ने उन आतंकियों को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया, जो उन्हें अमृतसर ले गए जहां हाईजैक का मामला दर्ज किया गया था. सीबीआई की जांच में ये केस बाद में अपने नतीजे तक पहुंची. IC814 कंधार हाईजैक केस को मुंबई पुलिस द्वारा अब तक सुलझाए और पता लगाए गए सबसे हाई-प्रोफाइल मामलों में से एक माना जाता है.

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