What Is The Mirasidari System: दुनिया भर के करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र प्रसिद्ध तिरुपति के लड्डू बनाने में कथित तौर पर पशु वसा के इस्तेमाल को लेकर विवाद ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया है. यह विवाद तब शुरू हुआ जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने बुधवार को कहा कि पिछली वाईएसआर कांग्रेस सरकार के तहत तिरुपति में श्री वेंकटेश्वर मंदिर द्वारा प्रसाद के रूप में दिए जाने वाले लड्डू बनाने में पशु वसा का इस्तेमाल किया गया था.


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भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है तिरुपति मंदिर 


आंध्र सरकार ने तब गुजरात की एक प्रयोगशाला की रिपोर्ट का हवाला दिया. इसमें कहा गया था कि तिरुपति लड्डू में इस्तेमाल किए गए घी के सैंपल में बीफ की चर्बी, मछली का तेल और लार्ड (सूअर की चर्बी) के हिस्से थे. तिरुपति मंदिर भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है. वह भगवान विष्णु के एक अवतार हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि वे मानवता को कलियुग के कष्टों और क्लेशों से मुक्ति दिलाने के लिए धरती पर आए थे.


तिरुपति मंदिर के प्रसादम लड्डू का इतिहास


भगवान वेंकटेश्वर के प्रसादम के रूप में मिलने वाला तिरुपति लड्डू अपने अनोखे स्वाद और बनावट के लिए काफी मशहूर है. इसकी शुरुआत 300 साल पहले की गई थी.  ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक, लड्डू का पहला पवित्र प्रसाद 2 अगस्त, 1715 को  किया गया था. इसे भगवान वेंकटेश्वर के पहाड़ी मंदिर में मंदिर के अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया था. 


वर्तमान में हम जो लड्डू देखते हैं, उसने लगभग छह बार अलग-अलग बनावटों से गुजरने के बाद 1940 के आसपास मद्रास सरकार के तहत अपना वर्तमान आकार प्राप्त किया था. प्राचीन शिलालेखों के अनुसार, लड्डू के अस्तित्व का प्रमाण 1480 में मिला है. तब पहली इसे अच्छी तरह से रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था. तब इसे "मनोहरम" कहा जाता था.


तिरुपति 'लड्डू राजा' कल्याणम अयंगर कौन हैं?


ऐसा माना जाता है कि लड्डू प्रसादम साम्राज्य के राजा यानी आर्किटेक्ट या बनाने वाले कल्याणम अयंगर थे. लड्डू को तिरुपति का पर्याय बनाने के पीछे उन्होंने ही दिमाग लगाया था. रिपोर्टों के मुताबिक, वह एक बेताज बादशाह की तरह थे जिसके “दिव्य प्रसाद के राज्य” में कई सौ लोग काम करते थे. लड्डू बनाने वाले कल्याणम आयंगर ने अपनी थाली, अपनी शादी की चेन और शादी के कपड़े तक जरूरतमंदों को दान कर दिए थे. 


चक्रवर्ती राजगोपालाचारी बीआर ने दिया था नया नाम


एक परोपकारी शख्स के तौर पर उन्होंने गरीबों और दलितों के हित के लिए काम किया. ललित कलाओं के पारखी और संरक्षक तौर पर उन्होंने तिरुमाला में संगीत और नृत्य उत्सव शुरू किए. उनका पालन आज भी किया जा रहा है. अयंगर ने अपने बेटे, भाई, बहनोई और इसी तरह के अन्य लोगों को यह लड्डू साम्राज्य की महान विरासत सौंपी. राजनीतिक जादूगर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी बीआर ने उन्हें कई अच्छे गुणों और विनम्रता के प्रतीक के तौर पर कल्याणम अयंगर नाम दिया था.


मिरासिदरी सिस्टम क्या है? क्या है इसका उद्देश्य


कल्याणम अयंगर ने लोकप्रिय मीरासिदरी प्रणाली शुरू की थी. यह एक वंशानुगत प्रणाली थी, जिसका उद्देश्य मिठाई बनाना था. रसोई में लड्डू तैयार करने के लिए जिम्मेदार लोगों को गेमकर मीरासीदार कहा जाता था. उन्हें 2001 तक बैच से हिस्सा भी मिलता था. 2001 से पहले और उसके बाद भी तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के कर्मचारी खुद ही लड्डू तैयार करते थे. हालांकि, समय के साथ, जैसे-जैसे भक्तों की आमद बढ़ती गई, हर दिन तैयार किए जाने वाले लड्डू की संख्या बढ़ानी पड़ी.


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मंदिर के अधिकारियों ने शुरू की "भगवान की रसोई" 


कई साल बाद, मंदिर के अधिकारियों ने एक "पोटू" की स्थापना की, जिसे आम तौर पर "भगवान की रसोई" के रूप में जाना जाता है. वहां प्रसाद लकड़ी जलाकर तैयार किया जाता था. फिर भी, लड्डू की संख्या भक्तों की मांग के आधे से भी कम थी. इसलिए, प्रतिदिन 70,000 लड्डू बनाने के लिए एक और रसोई जोड़ी गई. बाद में तो इस काम में प्रोफेशनल्स की मदद भी लिए जाने की बात सामने आई. अब लड्डुओं से जुड़ा विवाद भी सामने आया है.


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