चीन ने धरती पर बना दिया 10 गुना अधिक ताकतवर 'नकली सूरज', पूरी दुनिया रह गई हक्का-बक्का, जानें क्या होगा फायदा?
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चीन ने धरती पर बना दिया 10 गुना अधिक ताकतवर 'नकली सूरज', पूरी दुनिया रह गई हक्का-बक्का, जानें क्या होगा फायदा?

China US Artificial Sun: चीन 'नकली सूरज' बना रहा है, यह खबर इन दिनों खूब चर्चा में है. दावा किया जा रहा है कि अमेरिका और चीन दोनों 'नकली सूरज' बना रहे हैं लेकिन चीन ने बाजी मार ली है. जिसके बाद 'नकली सूरज' पर बहस छिड़ गई है. आइए जानते हैं क्या है 'नकली सूरज', इससे क्या होगा फायदा. 

चीन ने धरती पर बना दिया 10 गुना अधिक ताकतवर 'नकली सूरज', पूरी दुनिया रह गई हक्का-बक्का, जानें क्या होगा फायदा?

Artificial Sun: चीन ने कई बड़े देशों को पीछे छोड़ते हुए आर्टिफिशियल सूरज का निर्माण किया है. रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि चीन का ये सूर्य असली सूरज से कई गुना पावरफुल है. Nuclear Newswire की वेबसाइट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सरकार ने 2035 तक पहला औद्योगिक प्रोटोटाइप फ़्यूज़न रिएक्टर बनाने का लक्ष्य रखा है, जिसे उसने "कृत्रिम सूर्य" करार दिया है. अधिकारियों को उम्मीद है कि 2050 तक फ़्यूज़न ऊर्जा का बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उत्पादन शुरू हो जाएगा.

चीन का नकली सूरज 
ग्लोबल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन बिजली की कमी के अंतिम समाधान की तलाश में अब नकली सूरज बनाने पर जोर दे रहा है. चीन के नई पीढ़ी के टोकामक हुआनलियू-3 (HL-3) या कृत्रिम सूर्य को साउथवेस्टर्न इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स (SWIP) में बनाया जा रहा है. मार्च में चाइना नेशनल न्यूक्लियर कॉरपोरेशन (CNNC) ने घोषणा की थी वह अपनी 10 परमाणु प्रौद्योगिकी अनुसंधान सुविधाओं और परीक्षण प्लेटफार्मों को पहली बार दुनिया के लिए खोलेगा, जिसमें चीन की नई पीढ़ी का "कृत्रिम सूर्य" हुआनलियू-3 (HL-3) टोकामक भी शामिल है.

अब दुनिया में चमकेगा चीन का सूरज?
इस कदम से न केवल वैश्विक स्तर पर परमाणु विज्ञान और प्रौद्योगिकी में चीन के प्रभाव को और बढ़ाने की उम्मीद है, बल्कि ऊर्जा संकट से निपटने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा क्योंकि यह मुद्दा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के तेजी से विकास के साथ-साथ प्रौद्योगिकी की चौंका देने वाली ऊर्जा खपत को देखते हुए और भी अधिक जरूरी होता जा रहा है.

नकली सूरज बनाने में चीन मार लिया बाजी
चीन ने पूरी दुनिया को बता दिया है कि वह फ़्यूज़न तकनीक में एक प्रमुख खिलाड़ी है. तभी तो उसने 2011 से 2022 के बीच चीन ने किसी भी अन्य देश की तुलना में फ़्यूज़न तकनीक में अधिक पेटेंट दायर किए हैं. 

चीन ने इस सूरज का निर्माण न्यूक्लियर रिसर्च के जरिए की है. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत वर्ष 2006 में हुई थी. चीन ने इस आर्टिफिशियल सूर्य को एचएल-2एम (HL-2M) नाम दिया . इसे  चीन के नेशनल न्यूक्लियर कॉर्पोरेशन के साथ साउथवेस्टर्न इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स के वैज्ञानिकों ने बनाया है. यह चीन के चेंग्दू में साउथवेस्टर्न इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स ( SWIP ) में स्थित एक टोकामक फ्यूजन रिएक्टर है.

चीन के नकली सूरज से क्या होगा फायदा?
चीन के इस प्रोजेक्ट का मकसद प्रतिकूल मौसम में भी सोलर एनर्जी को बनाए रखना है. इस आर्टिफिशियल सूरज का प्रकाश असली सूर्य की तरह ही तेज होगा. इसे परमाणु फ्यूजन की मदद से तैयार किया गया है. जिसको नियंत्रित भी इसी व्यवस्था के जरिए किया जाएगा.

असली वाले सूरज से कितना ताकतवर है नकली सूरज
चीन ने आर्टिफिशियल सूर्य बनाकर अमेरिका, जापान, रूस जैसे कई देशों को विज्ञान के मामले पीछे छोड़ दिया है. रिपोर्ट्स में कहा गया हैं कि इस सूरज की कार्यप्रणाली में एक शक्तिशाली चुंबकीय इलाके का इस्तेमाल किया जाता है. इस समय ये 150 मिलियन (15 करोड़) डिग्री सेल्सियस तक का तापमान प्राप्त कर सकता है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का आर्टिफिशियल सूरज असली सूर्य के मुकाबले दस गुना ज्यादा गर्म है. यदि असली सूर्य के टेम्प्रेचर की बात करें तो वह लगभग 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है.

ईंधन में नहीं होगी कमी
इस फ्यूजन रिएक्शन से न्यूनतम रेडियोएक्टिव कचरा निकलता है. वहीं असीमित ईंधन स्रोत होता है, जो इसे टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाता है फ्यूजन रिएक्शन जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर सकता है. इस कारण ऊर्जा से जुड़े जियोपॉलिटिकल तनाव कम हो सकते हैं. क्योंकि फ्यूजन में काम आने वाला ईंधन प्रचुर मात्रा में हमारे पास उपलब्ध है.

जलवायु पर क्या पड़ेगा असर?
यह ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन नहीं करता है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन से निपटने और वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को कम करने में महत्वपूर्ण बन सकता है. इसके अलावा अंतरिक्ष खोज में फ्यूजन एनर्जी बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है. इससे मंगल ग्रह या उससे आगे के मिशन में ऊर्जा आसानी से उपलब्ध हो सकेगी. इससे दुनिया में गहराता ऊर्जा संकट खत्म हो सकता है. अब वैज्ञानिकों का दूसरा लक्ष्य 2026 तक कम से कम 300 सेकंड के लिए प्लाज्मा का तापमान 10 करोड़ डिग्री तक बनाए रखना है.

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