Explainer: नो कॉस्ट ईएमआई की सच्चाई, क्या सच में कोई एक्स्ट्रा पैसा नहीं देना पड़ता?
What Is No Cost EMI: बिना ब्याज वाली ईएमआई (No Cost EMI) में ब्याज या प्रोसेसिंग फी शामिल नहीं होती. लेकिन रेग्युलर ईएमआई में ब्याज और प्रोसेसिंग दोनों शामिल होते हैं.
no cost emi and interest rate: होली का त्योहार है और फेस्टिव सीजन के मौके पर कंपनियों की तरफ से ग्राहकों को लुभाने के लिए तरह-तरह के ऑफर दिये जा रहे हैं. फेस्टिव सीजन में कंपनियां और ई-कॉमर्स वेबसाइट ग्राहकों को सामान की ऑनलाइन खरीद पर बिना ब्याज वाली ईएमआई का ऑप्शन दे रही हैं. सीधा सा मतलब हुआ कि आप जो भी सामान खरीद रहे हैं उसके पैसे आप अभी देने के बजाय, अगले छह महीने या 12 महीने की ईएमआई में दे सकते हैं. नो कॉस्ट ईएमआई स्कीम में आप अलग-अलग प्रोडक्ट को किस्तों में खरीद सकते हैं. इसके तहत दावा किया जाता है कि आपसे किसी तरह का एक्सट्रा ब्याज नहीं लिया जाता.
कुछ मामलों में डाउन पेमेंट भी करना जरूरी
कई बैंकों की तरफ से अलग-अलग ऑप्शन में बिना ब्याज वाली ईएमआई (EMI) सुविधा दिये जाने का दावा किया जाता है. कुछ लोन देने वाले चुनिंदा प्रोडक्ट पर जीरो-डाउन पेमेंट प्लान भी ऑफर करते हैं. इसमें आपको शुरुआत में कोई पैसा नहीं देना होता, लेकिन इसका आप मंथली इंस्टॉलमेंट में भुगतान कर सकते हैं. कुछ मामलों में आपको डाउन पेमेंट भी करना होता है, बाकी का पेमेंट आप ईएमआई में करते हैं. लेकिन क्या यह हकीकत है कि आपको कोई एक्स्ट्रा पैसा नहीं देना पड़ता, इसकी सच्चाई क्या है. आइए जानते हैं नो कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) कैसे काम करती है.
ग्राहक पर किसी तरह का ब्याज नहीं पड़ता
बिना ब्याज वाली ईएमआई (No Cost EMI) में ब्याज या प्रोसेसिंग फी शामिल नहीं होती. लेकिन रेग्युलर ईएमआई में ब्याज और प्रोसेसिंग दोनों शामिल होते हैं. नो कॉस्ट ईएमआई में री-पेमेंट की ईएमआई प्रोडक्ट की कीमत के बराबर होती है. इसमें ब्याज की राशि सेलर (Seller) या मर्चेंट की तरफ से भरी जाती है. ग्राहक पर किसी तरह का ब्याज नहीं पड़ता. कभी-कभी, ब्याज या प्रोसेसिंग फी को छूट या कैशबैक के रूप में एडजस्ट कर दिया जाता है. यह करने का मकसद ईएमआई को प्रोडक्ट की असल कीमत के बराबर करने के लिए किया जाता है.
रेग्युलर और नो-कॉस्ट ईएमआई में फर्क
पैसा बाजार के अनुसार यदि आप 11000 रुपये का कोई प्रोडक्ट खरीदते हैं तो नो-कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) में ब्याज का चार्ज 287 रुपये डिस्काउंट में से एडजस्ट किया जाता है. इसमें आपको 3663 रुपये की तीन ईएमआई में 10990 रुपये का भुगतान करना होगा. लेकिन यदि यही आपकी रेग्युलर ईएमआई होती तो आपको इसमें 3811 रुपये की ईएमआई देनी होती. यानी इस पर लगने वाले 442 रुपये के ब्याज को आपको तीन बराबर ईएमआई में देना होगा. 3811 रुपये की 3 ईएमआई के हिसाब से आपको कुल 11432 रुपये का भुगतान करना होगा.
सेलर और जारीकर्ता बैंक के बीच होता है करार
नो-कॉस्ट ईएमआई की पेशकश आमतौर पर 3, 6 या 9 महीने के लिए की जाती है. यह सेलर और जारीकर्ता बैंक के बीच होने वाले करार पर निर्भर करता है. इस तरह नो-कॉस्ट ईएमआई को कस्टमर के लिए ब्याज मुक्त बनाकर पेश किया जाता है. सीधा सा मतलब यह हुआ कि ग्राहक को लोन पर लगने वाले ब्याज का भुगतान नहीं करना होगा. ब्याज राशि को आमतौर पर प्रोडक्ट सेलर वहन कर लेता है जो ब्याज की भरपाई के लिए सामान को छूट पर देता है. इसका फायदा यह है कि आप बिना किसी एक्सट्रा ब्याज के किस्तों में खरीदारी कर सकते हैं.
नो-कॉस्ट ईएमआई यानी प्रोडक्ट पर मिलने वाली छूट खत्म
ध्यान देनी वाली बात यह है कि कोई भी लोन देने वाला बैंक नो-कॉस्ट ईएमआई के लिए प्रोसेसिंग फी लेता है. बैंक प्रोसेसिंग फी के रूप में ब्याज लेने की अनुमति देता है. नो-कॉस्ट ईएमआई वाली ईएमआई का ऑप्शन सिलेक्ट करते समय आपको उस प्रोडक्ट पर मिलने वाली छूट नहीं मिलती है, जिसका आप दूसरी तरह से लाभ उठा सकते थे. इसे आप इस तरह समझ सकते हैं यदि किसी प्रोडक्ट को सभी ग्राहकों को रियायती दर पर दिया जा रहा है तो नो-कॉस्ट ईएमआई लेने वाले व्यक्ति के लिए यह प्रोडक्ट उसकी रेग्युलर कीमत पर उपलब्ध होगा. 2013 में आरबीआई (RBI) ने नो-कॉस्ट ईएमआई स्कीम को लागू करते हुए नोटिफिकेशन जारी किया था. 2013 के सर्कुलर से यह साफ भी हुआ कि जीरो परसेंट ब्याज या नो-कॉस्ट ईएमआई असर में कुछ है नहीं.